Indo Pak Partition Tragedy: विभाजन के दर्द की भावुक कर देने वाली कहानी, जमीन छोड़ी, भाई ने रास्‍ते में तोड़ा दम

Indo Pak Partition Tragedy भारत पाकिस्‍तान के विभाजन का दर्द आज भी लोग नहीं भूले हैं। जान बचाकर पाकिस्‍तान छोड़ना पड़ा था। लोगों ने जमीन-मकान-जेवरात मुस्लिम को सुपुर्द कर दिया। पानीपत के रहने वाले अजीत सिंह ने बयां किया दर्द।

By Anurag ShuklaEdited By: Publish:Tue, 09 Aug 2022 04:55 PM (IST) Updated:Tue, 09 Aug 2022 04:55 PM (IST)
Indo Pak Partition Tragedy: विभाजन के दर्द की भावुक कर देने वाली कहानी, जमीन छोड़ी, भाई ने रास्‍ते में तोड़ा दम
Indo Pak Partition Tragedy: विभाजन का दर्द बयां करते अजीत सिंह।

पानीपत, जागरण संवाददाता। Indo Pak Partition Tragedy: मैं अजीत सिंह.....असली आयु 98 साल 07 माह है। आधार कार्ड में दो साल कम दर्ज है। अंग्रेजों की गुलामी से आजादी के बाद भारत-पाकिस्तान विभाजन के समय मेरी आयु करीब 24 साल थी। हमारा घर पाकिस्तान के जिला गुजरांवाला के मुगलचक शहर में था। मार-काट और लूटमार मची हुई थी। परिवार की जान को बचाने के लिए पिता ने सवा नौ किला जमीन, बड़ा मकान, जेवरात, बर्तन व अन्य सामान मौला नाई के सुपुर्द कर दी थी।

हारमोनियम बनाने का काम करता था

मेरे पिता वीर सिंह मुगलचक शहर में काम करते थे। मैं हारमोनियम बनाने का काम करता था। अगस्त का महीना था, मैं चबूतरे पर बैठा रोटी खा रहा था। मौला नाई मेरे पास आया, कहा कि रोटी बाद में खा लेना पहले पिता को बुलाकर ले आ। मैं पिता को बुला लाया। उसने बताया कि माहौल खराब है, परिवार पर हमला हो सकता है। कल सुबह सामान समेटकर कहीं चले जाना।

पिता के पास सिर्फ 10 हजार रुपये थे

पिता ने कहा कि कल नहीं, मुझे आज ही निकलना है। जमीन के कागज, भरे-भराये मकान की चाबी उसे सौंपी और परिवार घर छोड़कर चल दिया। डर इतना हावी था कि पूर्वजों की जमीन को छोड़ने का दुख होने के बावजूद आंखों में आंसू नहीं थे। पिता की जेब में मात्र 10 हजार रुपये थे।

ये लोग थे साथ में

घर छोड़ने वाले परिवार में मैं और मेरे पिता, मां संतकौर, भाई बलवंत सिंह, वरज्ञान सिंह, सादा सिंह, जोगेंद्र सिंह, महेंद्र सिंह, बहन मंगलकौर, महेंद्र कौर शामिल थे।जान बचाने के लिए घर तो छोड़ दिया था, पर असल मुश्किल शुरू हो चुकी थी।

विभाजन की त्रासदी आज भी तरोताजा

उम्र का तकाजा होने के कारण याददाश्त कुछ कमजोर हुई है, लेकिन विभाजन की त्रासदी का मंजर आज भी सताता है। इस सफर में भाई महेंद्र सिंह की बीमारी से मौत हो चुकी थी। मेरी मंगनी जिस लड़की से हुई थी, बाद में पता चला कि उसका पूरा परिवार कत्ल कर दिया गया था।

लाहौर में छीने 10 हजार रुपये

पाकिस्तान के कच्चा सुरदा से ट्रेन में बैठे। शेखुपुरा पहुंचने पर ट्रेन को रुकवा लिया गया। किसी डिब्बे में बम है, इस सूचना से हडकंप मचा हुआ था। एक घंटा तलाशी के बाद ट्रेन रवाना हुई तो लाहौर स्टेशन पर रुकवा ली। यहां भी लगभग 150 अंग्रेज सिपाहियों ने हर डिब्बे में तलाशी ली।

मास्टर तारा सिंह देगा 10 हजार रुपये

लाहौर स्टेशन पर तलाशी के दौरान अंग्रेज सिपाही ने पिता से 10 हजार रुपये छीन लिए थे। अंग्रेज अफसर से शिकायत करने पहुंचे तो पिता को पीटते हुए कहा कि मास्टर तारा सिंह आजादी मांगता है, वही 10 हजार रुपये देगा। अफसर ने मुझे भी धक्का दिया था।

मैं हरी मिर्च खाकर निकला

मैं घर से हरी मिर्च खाकर निकला था ताकि अधिक प्यास न लगे। बड़ा भाई बलविंद्र सिंह प्यास से तड़प रहा था। एक हिंदुस्तानी सिपाही मुझे ट्रेन के इंजिन के पास ले गया। वहां गर्म पानी था, उसे डिब्बे में भर लिया। उसी पानी से सभी ने दो-दो घूंट पिए थे। घर से मां चने-गुड़ लेकर चली थी, उसी से सभी ने पेट भरा।

अटारी में बम से हमला

ट्रेन अटारी पहुंची तो फिर रुकवा लिया गया। पता चला कि ट्रेन के किसी डिब्बे में बम रखा हुआ है। कुछ देर ही हुई होगी कि युवाओं की भीड़ ने ट्रेन को घेर लिया। युवाओं ने ट्रेन पर देसी बम से हमला किया था।

पहला पड़ाव अमृतसर

पाकिस्तान के एक कस्बे से ट्रेन में परिवार चढ़ा और अमृतसर पहुंचा। वहां दो दिन रहे और गुरुद्वारा भैनी साहिब पहुंच गए और 10 दिनों तक रहे। ठहरने और लंगर तो मिलता था, रोजगार नहीं मिला। इसके बाद सिरसा, राइंया मस्तान गढ़ में भी रहे।

पानीपत में नई जिंदगी शुरू

पानीपत पहुंचने के बाद रोशन महल के नजदीक तीन-चार रुपये महीना किराये पर घर लिया। हारमोनियम तैयार करना जानते थे, मैंने वही काम किया। अन्य भाई मजदूरी करने लगे थे। इसके बाद सनौली रोड, भीमगौडा मंदिर के पास भी किराये का घर लिया। वर्ष 1949 में जीटी रोड (मौजूदा आवास) पर 15 हजार रुपये मेें 250 वर्गगज जमीन खरीदी थी।

घर-जमीन देखने का मन बहुत

मौला नाई को घर-जमीन सौंपते हुए पिता ने कहा कि जीवित बचे तो लौटकर आएंगे। नहीं आएं तो तुम ही संभालना। पाकिस्तान जाकर अपना घर-जमीन देखने का मन बहुत बार हुआ, लेकिन यह सोचकर नहीं गया कि अब हमारा वहां कुछ नहीं बचा है। दोनों देशों के बीच भाईचारा होता तो शायद वहां कई बार चले जाते।

अब परिवार साधन संपन्न

मेरे तीन बेटे बलविंद्र सिंह, अवतार सिंह, सतनाम सिंह। बलविंद्र सिंह का बेटा सेवा सिंह आस्ट्रेलिया में इंग्लिश की कोचिंग देते हैं। इससे पहले वे चीन में थे। बाकी दोनों बेटों के पास बेटियां हैं। सभी शादीशुदा, परिवार वाली है। पूरा परिवार खुशहाल है।

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