Lockdown नहीं रोक पाया बीड़ सूजरा के फूलों की खुशबू, कश्मीर की वादियों तक महक

4 साल पहले गांव में ही शुरू कर दी फूलों की मंडी। 100 क्विंटल तक आते हैं फूल मंडी में। 200 एकड़ में होती है फूलों की खेती। फूलों की खेती और व्यापार से विशेष पहचान मिली।

By Anurag ShuklaEdited By: Publish:Thu, 21 May 2020 03:52 PM (IST) Updated:Thu, 21 May 2020 03:52 PM (IST)
Lockdown नहीं रोक पाया बीड़ सूजरा के फूलों की खुशबू, कश्मीर की वादियों तक महक
Lockdown नहीं रोक पाया बीड़ सूजरा के फूलों की खुशबू, कश्मीर की वादियों तक महक

पानीपत/कुरुक्षेत्र,[जगमहेंद्र सरोहा]। फूल की खुशबू किसी के रोके भी नहीं रुक सकती। इसी तरह बाबैन खंड के बीड़ सूजरा गांव के फूलों की खूशबू को लॉकडाउन भी नहीं रोक पाया। प्रदेश ही नहीं राजधानी चंडीगढ़, पंचकूला, शिमला, लुधियाना, सोलन, जम्मू-कश्मीर और दिल्ली में फैल रही है। 

बीड़ सूजरा छोटा सा गांव है। कभी गांव में लोग दिल्ली से आकर बसे थे। कुछ समय पहले पारंपरिक खेती से मोह भंग हो गया था। तब ग्रामीणों ने गांव में फूलों की खेती शुरू की। फूलों को दूर शहर में ले जाने में दिक्कत आने लगी और दाम भी पूरे नहीं मिले तो ग्रामीणों ने एकजुट हो गांव में ही मंडी शुरू कर दी। किसानों ने गांव में अपने स्तर पर फूल मंडी चार साल पहले शुरू की थी। लॉकडाउन में एक बार फूलों की खुशबू खेत में दबकर रह गई थी, लेकिन धरतीपुत्र ने इसका रास्ता भी निकाल लिया। अब गाडिय़ों की परमिशन लेकर दूसरे राज्यों तक फूल पहुंचा रहे हैं। बीड़ माजरा का फूल आज भी पूर्व की भांति दूसरे प्रदेशों को महका रहा है। आज आसपास के गांवों के किसान भी फूलों की खेती को अपनाने लगे हैं। 

दिल्ली से आकर बसें हैं ग्रामीण 

गांव में ज्यादातर लोग दिल्ली से आकर बसें हैं। ऐसे में गांव को दिल्ली माजरा के नाम से भी जाना जाता है। गांव के पूर्वज मध्यप्रदेश के उज्जैन स्थित गांव सैनिकपुरा के थे। इसके बाद वह दिल्ली के चांदनी चौक जाकर बस गए थे। 1908 में दिल्ली को राजधानी बनाने के लिए गांव खाली कराने का नोटिफिकेशन आया तो सैनी बिरादरी के लोग 1914 में बीड़ यानी जंगल में आकर बस गए। इसी कारण से इस गांव को बीड़ सूजरा, दिल्ली वाला व दिल्लीमाजरा कहने लगे। यह गांव वर्ष 1952 में ग्राम पंचायत बीड़ कालवा में शामिल हुआ और 1978 में गांव बीड़ कालवा से अलग कर दिया गया। गांव बीड़ सुजरा की भूमि में पारंपरिक खेती छोड़ फूलों की खेती कर किसान लाखों रुपये कमा रहे हैं।

गेंदे और गुलाब का अपनाया

गांव बीड़ सुजरा के किसान श्यामलाल ने गेहूं, धान व गन्ने की खेती छोड़कर गेंदे व गुलाब की खेती को अपनाया है। फूलों की खेती व फूलों के व्यापार करने से श्यामलाल केवल आर्थिक रूप से मजबूती मिली है। आज उनको फूलों से विशेष पहचान भी मिली है। श्यामलाल ने बताया कि पूरे बाबैन इलाके के लोग शादी के सीजन में यहां पर कार सजवाने के लिए आते हैं। गांव में चार साल पहले मंडी शुरू की। यहां सीजन में हर रोज 100 क्विंटल फूल आते हैं। 

सातवीं तक पढ़ा किसान आज महका रहा प्रदेश 

फूल व्यापारी श्यामलाल ने बताया कि वह सातवीं कक्षा तक पढ़ा है। उसने अपने रिश्तदारों को फूलों की खेती करते देखा था। इसके बाद उसके मन फूलों की खेती करने का विचार आया और गांव में आकर फूलों की खेती शुरू की। अब दो लाख रुपये की आमदनी हुई है। सबके साथ मिलकर गांव में फूल मंडी बनाई और अब पूरे इलाके का फूल हमारे गांव में बिकता है। यह मंडी देवराज, मुकेश, श्यामलाल व ओमप्रकाश के सहयोग से बनाई गई है। आगे इसे बड़ी मंडी बनाने के लिए कार्य किया जा रहा है।

अब लॉकडाउन में ढील से मिला फायदा

किसान तिलकराज ने बताया कि गांव के किसान फूलों की खेती करते हैं। उनको दूसरी खेती करना पसंद ही नहीं है। लॉकडाउन के दौरान फूलों को शहरों में पहुंचाना मुश्किल लग रहा था। अब लॉकडाउन-3 व 4 में छूट के बाद राहत मिली है। किसान अब फूलों को बाहर भेजने लगे हैं। इससे खेती के साथ जीवन में भी खुशबू आने लगी है। 

शादी बंद होने से पड़ रहा फर्क

किसान गुरदयाल सिंह ने बताया कि फूलों की खेती में अपना अलग ही आनंद है। सिंचाई, निलाई और गुड़ाई के साथ फूलों की खेती पर नियमित ध्यान देते हैं। तीन महीने में फूल तैयार हो जाते हैं। फिर पुराने पौधे को निकालकर नया पौधा लगाते हैं। लॉकडाउन के चलते शादी समारोह बंद हैं। जो भी कर रहे वे सामान्य कार्यक्रम तक सीमित हैं। ऐसे में मंडी में फूलों की मांग घटी है। 

सरकार से मिले आर्थिक मदद 

किसान मनोज कुमार ने बताया कि फूलों की खेती के लिए आस-पास के किसानों को भी प्रेरित कर रहे हैं। धान की फसल में पानी अधिक लगने के साथ उसके अवषेशों में आग लगाने से पर्यावरण प्रदूषण बढ़ता है। फूल की खेती करने से आस पास का वातावरण स्वच्छ रहता है। इससे आमदनी अच्छी होती है। सरकार को फूल उत्पादक किसानों के लिए पैकेज तैयार करना चाहिए। 

गांव की आबादी करीब 2500 है। अधिकतर लोग फूलों की खेती करते हैं। गांव के किसानों ने अपने स्तर पर मंडी बना रखी है। ग्रामीण फूलों की खेती पर ही निर्भर हैं। लॉकडाउन में फूलों को नुकसान हुआ है। सरकार को इसके लिए बजट जारी करना चाहिए। 

ज्योति सैनी, सरपंच, ग्राम पंचायत बीड़ सूजरा।

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