आधार नहीं तो निराधार हो गया नीतीश का बचपन, सरकारी स्कूल ने भी दाखिला देने से किया मना

आधार कार्ड नहीं होने के कारण सरकारी स्कूल ने दिव्यांग बच्चों को दाखिला देने से मना किया।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 07 Apr 2018 12:09 PM (IST) Updated:Sat, 07 Apr 2018 04:45 PM (IST)
आधार नहीं तो निराधार हो गया नीतीश का बचपन, सरकारी स्कूल ने भी दाखिला देने से किया मना
आधार नहीं तो निराधार हो गया नीतीश का बचपन, सरकारी स्कूल ने भी दाखिला देने से किया मना

मनोज राणा, करनाल

उसका कसूर सिर्फ इतना है कि वह दिव्यांग है। दोनों हाथ व पांव की अंगुलियां जन्म से सामान्य नहीं हैं। छह साल के नितीश ने इस सच्चाई को कबूल कर खुशी से जीना सीख लिया था। लेकिन मन में टीस तब हुई जब समाज ने पग-पग पर इसका एहसास कराना शुरू किया। असामान्य अगूंठों के कारण आधार कार्ड नहीं बनाया। धक्के भी खाए मिन्नतें भी की, पर सब व्यर्थ। अब पढ़ाई में आधार बाधा बन गया। राजकीय स्कूल ने एडमिशन से पहले आधार कार्ड मांगा। साफ कहा कि इसके बिना दाखिला नहीं लेंगे। शिक्षा पर बात आई तो ऐसा लगा मानो आधार के बिना उसका जीवन ही निराधार हो गया। चार चमन निवासी नितीश पढ़ना चाहता है। पिता अशोक बच्चे के भविष्य से हो रहे खिलवाड़ से दुखी हैं। मां मीना के आंसू नहीं रुक रहे। लेकिन दोनों मजबूर हैं। डर है कि बिना आधार कार्ड के उनका बच्चा शिक्षा से ही वंचित न रह जाए। पूरा सिस्टम तमाशबीन बनकर सब देख रहा है। समझ नहीं आ रहा कि दिव्यांग नितीश है या फिर हमारा सिस्टम। पिता तीन साल से भटक रहे, नहीं बन रहा आधार

नितीश के पिता अशोक ने बताया कि बेटे का आधार कार्ड बनवाने के लिए वह तीन साल से भटक रहे हैं। शुरुआत में सनातन धर्म मंदिर में बनाए गए सेंटर में गए। 100 रुपये भी दिए, फार्म भी भरा। लेकिन उन्होंने हाथ पांव देखते ही मना कर दिया। बस स्टैंड के पीछे सेंटर जाने की सलाह दी। वहां से लघु सचिवालय में बने सेंटर में समस्या का समाधान होने की बात कही गई। लेकिन नितीश को देखकर उन्होंने भी हाथ खड़े कर दिए। निगम में बेटे का जन्म प्रमाण पत्र लेने गया तो उन्होंने भी आधार मांगा। नितीश के पास आज तक अपने जन्म का प्रमाण भी नहीं है। एडमिशन के लिए आधार जरूरी, इसलिए स्कूल ने मना किया

अशोक ने बताया कि शुरुआत में उन्होंने नितीश को विवेकानंद पब्लिक स्कूल में पढ़ाया। लेकिन आमदनी कम होने के कारण इसकी फीस नहीं देने में सक्षम नहीं थे। इसलिए सेक्टर-13 के राजकीय स्कूल में दाखिला कराने के लिए गए थे। लेकिन उन्होंने इसके लिए आधार जरूरी बताया। अध्यापकों ने तर्क दिया कि बिना आधार के तो दाखिला हो ही नहीं सकता। उनकी मजबूरी है इसलिए पहले आधार कार्ड लेकर आएं। ऐसे सिस्टम से भले की उम्मीद भी क्या करें

जागरण ने नितीश की पीड़ा और उसके मां-बाप की मजबूरी को समझा। जानने का प्रयास किया कि आखिर आधार कार्ड क्यों नहीं बन रहा? अधिकारियों को फोन घुमाए। लेकिन सभी ने इसे अनदेखा कर दिया। जिला समाज कल्याण अधिकारी सत्यवान ने कुछ देर बाद फोन करने के लिए कहकर फोन काट दिया। बाद में फोन स्विच ऑफ हो गया। उच्च अधिकारियों ने फोन नहीं उठाया। मैसेज भी भेजा, लेकिन उन्होंने इसका जवाब तक नहीं दिया। ऐसे सिस्टम से भले की उम्मीद भी क्या की जा सकती है। अब सीएम से ही उम्मीदें

नितीश के पिता अशोक ने हारकर अब सीएम ¨वडो पर जाने की ठानी है। लेकिन बड़ा सवाल है कि क्या मुख्यमंत्री मनोहर लाल अपने विधानसभा क्षेत्र में किराये के मकान में रह रहे नितीश का दर्द समझेंगे। या फिर वह भी एक दिव्यांग बच्चे के अरमानों को अनदेखा कर देंगे। यदि ऐसा हुआ तो यह मासूम पढ़ाई से वंचित रह जाएगा। अशोक की आखिरी उम्मीद अब सीएम ही हैं।

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