छोटी उम्र में पापा के साथ अखाड़े में लगाती थी दांव, अब बनी दंगल गर्ल

फिल्म दंगल में गीता और बबीता ने जिस धोबी पछाड़ दांव से विरोधी पहलवानों को चित किया था, ऐसा ही दांव पानीपत की बेटियों ने जिला कुश्ती अखाड़े में भी दिखाया।

By Edited By: Publish:Sun, 17 Feb 2019 07:16 AM (IST) Updated:Sun, 17 Feb 2019 03:08 PM (IST)
छोटी उम्र में पापा के साथ अखाड़े में लगाती थी दांव, अब बनी दंगल गर्ल
छोटी उम्र में पापा के साथ अखाड़े में लगाती थी दांव, अब बनी दंगल गर्ल

पानीपत [जगमहेंद्र सरोहा]। फिल्म दंगल में गीता और बबीता ने जिस धोबी पछाड़ दांव से विरोधी पहलवानों को चित किया था, ऐसा ही दांव पानीपत की बेटियों ने जिला कुश्ती अखाड़े में भी दिखाया। सामान्य परिवार से निकली ये बेटियां अपने माता-पिता के सपनों को पूरा करने के लिए मैदान पर उतरीं। छोटी उम्र में पिता को पहलवानी करते देखा और फिर उम्र बढ़ने के साथ पापा के साथ दांव लगाने लगी। फिर धीरे-धीरे अपने पापा को अपना सपना बना लिया। आज ये बेटियां उन्हीं सपनों को पूरा करने के लिए मैदान में पसीना बहा रही हैं। दैनिक जागरण ने जिला अखाड़ा प्रतियोगिता में जिला केसरी (महिला) सुताना की नैना और जिला कुमारी बनीं कारद की रजनी से बात कर उनके संघर्ष की कहानी जानी।

नैना ने 10-0 से दर्ज की एकतरफा जीत, बनीं जिला केसरी सुताना गांव की नैना जिला केसरी (महिला) बनी हैं। उन्होंने फ्री स्टाइल कुश्ती में अपनी प्रतिद्वंदी खिलाड़ी इसराना की अमीशा को 10-0 से पटखनी दी। नैना इंटरनेशनल, ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी में पदक जीत चुकी हैं। गत दिनों रोमानिया में आयोजित व‌र्ल्ड चैंपियनशिप में पांचवीं रैंक हासिल किया।

पिता को पहलवानी का शौक
नैना ने बताया कि उसके पिता रामकरण व मां बाला देवी गांव की पूर्व सरपंच रही हैं। पिता को पहलवानी का शौक था। उनके साथ थोड़ा बहुत खेल लेती थी। अब कुश्ती को ही अपना लक्ष्य बना लिया है। ओलंपिक चैंपियन रशियन खिलाड़ी रासिद सैहदुलेब को आदर्श मानती हैं। सर छोटूराम स्टेडियम रोहतक में कोच मनदीप की देखरेख में प्रेक्टिस कर रही हैं।

सुबह साढ़े चार बजे पहुंचाजाती स्टेडियम
सुबह साढ़े चार बजे उठकर स्टेडियम पहुंच जाती हैं। शाम को फिर पांच बजे प्रेक्टिस शुरू कर देती हैं। पहलवानी के साथ-साथ बीए की पढ़ाई भी कर रही हैं। जिला कुमारी बनी रजनी पांच किमी. दूर आकर करती है प्रेक्टिस कारद गांव की रजनी के सिर जिला कुमारी का ताज सजा है। उन्हें अपने मुकाबले में बाई मिली। रजनी ने बताया कि पिता रामचंद्र मजदूरी करते हैं और मां राजबाला गृहणी हैं। छह बहन-भाइयों में पांचवें नंबर की है।

पिता के सपनों को पूरा करने उतरी अखाड़े में
पिता पहलवानी करते थे। बचपन में उनको खेलते देखती थी। पिता के अधूरे सपनों को पूरा करने के लिए कुश्ती में उतरी। वह मतलौडा स्थित राजकीय कॉलेज में बीए द्वितीय वर्ष में पढ़ती थी और इसराना में कोच अनुज जागलान के पास कुश्ती के गुर सीख रही है। अपने कोच को ही अपना आदर्श मानती हैं। वहां से आकर सीधे कॉलेज और शाम को चार बजे फिर प्रेक्टिस पर चली जाती हैं।

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