हरियाणा-पंजाब में SYL नहर पर 44 साल से पक रही है सियासी खिचड़ी, हर चुनाव में बना मुद्दा

हरियाणा और पंजाब मेें एसवाईएल नहर मुद्दे पर पिछले 44 साल से राजनीतिक खिचड़ी पक रही है। हर चुनाव में यह मुद्दा बनता रहा है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Publish:Wed, 19 Aug 2020 09:39 AM (IST) Updated:Wed, 19 Aug 2020 09:39 AM (IST)
हरियाणा-पंजाब में SYL नहर पर 44 साल से पक रही है सियासी खिचड़ी, हर चुनाव में बना मुद्दा
हरियाणा-पंजाब में SYL नहर पर 44 साल से पक रही है सियासी खिचड़ी, हर चुनाव में बना मुद्दा

चंडीगढ़, [अनुराग अग्रवाल/सुधीर तंवर]। हरियाणा और पंजाब में एसवाईएल नहर हमेशा से राजनीतिक दलों के लिए वोटों की खान रही है। आज तक नहर में पानी की एक बूंद भले नहीं आई, लेकिन इस सूखी नहर में सियासी फसलें खूब लहलहाईं। पांच दशकों से लोकसभा चुनाव हों या विधानसभा, सियासी दलों की खिचड़ी पकती रही। प्यास बुझने की आस में जनता ने कभी किसी दल को सर-माथे पर बैठाया तो कभी उम्मीद टूटने पर सत्ता से बाहर की हवा खिलाई, मगर नहर सूखी ही रही। सियासी दलों की नूरा कुश्ती में सबसे बड़े पंच (सुप्रीम कोर्ट) ने दो बार हरियाणा के पक्ष में फैसला भी सुनाया, लेकिन बड़ा भाई पंजाब हक देने को तैयार नहीं।

44 साल में हरियाणा में नौ मुख्यमंत्रियों ने सत्रह बार सरकारें बनाईं, लेकिन पंजाब से पानी कोई नहीं ला पाया

हरियाणा और पंजाब के मुख्‍यमंत्रियों के बीच मंगलवार पहले दौर की बातचीत हो चुकी और इसे सफल होने के दावे किए जा रहे हैं, लेकिन जिस तरह से पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने कह दिया कि वह अपने राज्य में बाकी दलों से बात करेंगे तथा उनके पास देने को फालतू पानी नहीं है, उससे नहीं लगता कि सब कुछ इतनी आसानी से हल हो जाएगा, जितना दावा किया जा रहा है।

नौ सीएम ने 17 बार बनाई सरकारें

लंबी कानूनी और राजनीतिक लड़ाई के बाद भी मामले में कोई हल नहीं निकला है। केंद्र सरकारें भी लगातार जहां सीधे दखल से बचती रहीं, वहीं दो राज्यों से जुड़ा मसला होने के कारण राष्ट्रीय दलों के सुर पंजाब में कुछ और होते हैं तो हरियाणा में कुछ और। नहर निर्माण की अधिसूचना जारी हुए 44 साल बीत गए हैं। इस दौरान हरियाणा में नौ मुख्यमंत्रियों ने 17 बार सरकारें बनाईं, लेकिन पंजाब से पानी कोई नहीं ला पाया। कई मौके आए जब पंजाब, हरियाणा और केंद्र में एक ही पार्टी या सहयोगी दलों की सरकारें रहीं, लेकिन पानी का विवाद सुलझाने में किसी ने दिलचस्पी नहीं दिखाई।

देवीलाल ने की थी नहर निर्माण की शुरुआत

1970 और 80 के दशक में नहर के निर्माण की शुरुआत चौधरी देवीलाल ने की। बाद के दशकों में वोट के लिहाज से नहरी पानी भले ही ज्यादा फायदेमंद न रहा हो, मगर राजनेताओं ने मुद्दे को मरने नहीं दिया। 1976 में तत्कालीन मुख्यमंत्री बनारसी दास गुप्ता की अगुवाई में हरियाणा ने अपने हिस्से में नहर की खोदाई शुरू की। 1980 में नहर निर्माण का काम पूरा कर लिया गया। चुनावों में इसका पूरा फायदा कांग्रेस को मिला और तत्कालीन मुख्यमंत्री भजनलाल ने फिर सरकार बनाई। 1987 में चौधरी देवीलाल को सत्ता दिलाने में एसवाईएल ने मुख्य किरदार निभाया।

भाजपा व इनेलो ने किया आंदोलन

नहर को लेकर राजीव-लोंगोवाल समझौते का लोकदल व भाजपा ने पुरजोर विरोध किया। तब तक भजनलाल केंद्र में चले गए थे और बंसीलाल के हाथों में कमान आ चुकी थी। समझौते में हरियाणा के हिस्से के पानी को घटाने पर देवीलाल ने न्याय युद्ध छेड़ा और 23 जनवरी 1986 को जेल भरो आंदोलन किया। नतीजन, 1987 में लोकदल व भाजपा ने हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों में से 85 पर जीत दर्ज करते हुए इतिहास रच दिया। अब फिर राजनीतिक दल इसी मुद्दे पर रार कर रहे हैं। हाल ही में इनेलो नेता अभय चौटाला ने इस मुद्दे पर जोरदार आंदोलन भी किया था।

एसवाईएल नहर की स्थिति

212 किलोमीटर कुल लंबाई।

91 किमी के अपने हिस्से की नहर बना चुका हरियाणा। अंबाला से करनाल के मूनक तक जाती नहर।

121 किमी नहर बननी थी पंजाब में, टुकड़ों में निर्माण के बाद अधिकतर हिस्सा फिर पाटा।

42 किलोमीटर हिस्सा पटियाला-रोपड़ में समतल कर दिया किसानों ने।

6 जिलों रेवाड़ी, महेंद्रगढ़, मेवात, गुरुग्राम, फरीदाबाद और झज्जर को नहर बनने पर सर्वाधिक फायदा।

ऐसे चला विवाद

- 24 मार्च 1976 : केंद्र सरकार ने एसवाईएल की अधिसूचना जारी करते हुए हरियाणा के लिए 3.5 एमएएफ (मीट्रिक एकड़ फीट) पानी तय किया।

- 31 दिसंबर 1981 : हरियाणा में एसवाईएल का निर्माण पूरा। पंजाब रहा निष्क्रिय।

- 8 अप्रैल 1982 : तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पटियाला के कपूरी गांव में नहर की नींव रखी। आतंकवादियों ने इसे मुद्दा बना लिया जिससे पंजाब में हालात बिगड़ गए।

- 24 जुलाई 1985 : राजीव-लौंगोवाल समझौता हुआ।

- 5 नवंबर 1985 : पंजाब विधानसभा में दिसंबर 1981 में हुई जल समझौते के खिलाफ प्रस्ताव पारित।

- 30 जनवरी 1987 : राष्ट्रीय जल प्राधिकरण ने पंजाब को उसके हिस्से में नहर निर्माण तुरंत पूरा करने का आदेश दिया।

- 1996 : समझौता सिरे नहीं चढ़ने पर हरियाणा पहुंचा सुप्रीम कोर्ट।

- 15 जनवरी 2002 : सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब को एक साल में एसवाईएल बनाने का निर्देश दिया।

- 4 जून 2004 : सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ पंजाब की याचिका खारिज हुई।

- 12 जुलाई 2004 : पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार ने विधानसभा में पंजाब टर्मिनेशन ऑफ एग्रीमेंट्स एक्ट 2004 को लागू किया।

संघीय ढांचा खतरे में देख राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट से रेफरेंस मांगा। 12 साल मामला ठंडे बस्ते में रहा।

- 20 अक्टूबर 2015 : मनोहर सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से राष्ट्रपति के रेफरेंस पर सुनवाई के लिए संविधान पीठ गठित करने का अनुरोध किया।

- 14 मार्च 2016 : पंजाब विधानसभा में सतलुज-यमुना लिंक कैनाल (मालिकाना हकों का स्थानांतरण) विधेयक पास कर नहर के लिए अधिगृहीत 3,928 एकड़ जमीन वापस किसानों को वापस कर दी गई। पंजाब में एसवाईएल के लिए कुल 5,376 एकड़ जमीन अधिग्रहीत की गई थी जिसमें 3,928 एकड़ पर एसवाईएल और बाकी हिस्से में डिस्ट्रीब्यूट्रीज बननी थी। पंजाब ने हरियाणा सरकार का 191 करोड़ रुपये का चेक लौटा दिया जिसके बाद स्थानीय किसानों ने नहर को पाट दिया।

- 10 नवंबर 2016 : सुप्रीम कोर्ट ने फिर हरियाणा के पक्ष में दिया फैसला। पंजाब ने अभी तक शुरू नहीं किया निर्माण। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को दिया है मामले मध्यस्थता कर विवाद सुलझाने का निर्देश।

- 10 जनवरी 2019 : प्रकाश सिंह बादल की सरकार ने एसवाईएल नहर के लिए अधिगृहीत जमीन को डी-नोटिफाई कर दिया और जमीनें लौटानी शुरू कर दी। विवाद अभी बरकरार है।

- 18 अगस्त 2020 : हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल और पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र शेखावत की मध्य्सता के चलते बातचीत हुई।

 यह भी देखें: कैप्‍टन अमरिंदर सिंह की चेतावनी, नहर बनी तो पंजाब जलने लगेगा

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