कोहरे से गेहूं की फसल को फायदा, अन्य को नुकसान

सर्दी बढ़ने से क्षेत्र में घना कोहरा छाया रहता है जिससे गेहूं की फसल को फायदा और अन्य फसलों को नुकसान हो सकता है।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 14 Jan 2021 07:08 PM (IST) Updated:Thu, 14 Jan 2021 07:08 PM (IST)
कोहरे से गेहूं की फसल को फायदा, अन्य को नुकसान
कोहरे से गेहूं की फसल को फायदा, अन्य को नुकसान

संवाद सहयोगी, हथीन: सर्दी बढ़ने से क्षेत्र में घना कोहरा छाया रहता है, जिससे गेहूं की फसल को फायदा और अन्य फसलों को नुकसान हो सकता है। जिले में बृहस्पतिवार को मकर संक्रांति के दिन भी कोहरा छाया रहा। ठंड बढ़ने से जनजीवन अस्त-व्यस्त रहा। क्षेत्र में कुछ दिनों पहले हुई बारिश से फसलों को बहुत ही लाभ पहुंचा है। कृषि विशेषज्ञ डा. महावीर सिंह मलिक ने बताया कि थोड़े समय तक पड़ने वाले कोहरे का फसलों पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता। लेकिन, कोहरा ज्यादा दिनों तक छाया रहता है तो उससे पौधे की आंतरिक क्रियाएं प्रभावित होने लगती हैं। यह घना कोहरा गेहूं की फसल के लिए बहुत फायदेमंद होता है। इससे फसल अच्छा फुटाव करती है।

किसान को पानी की कम जरूरत पड़ती है। कोहरा लगातार कई दिनों तक छाया रहने और हवा में ज्यादा नमीं से सरसों, सिगरी, आलू, धनिया आदि फसलों को नुकसान हो सकता है। क्योंकि इन फसलों में चेपा कीट व रतवा रोग, मटर में सफेद चूर्ण रोग, आलू में झुलसा रोग बढ़ने की संभावना हो जाती है। कोहरा होने के कारण मधुमक्खियां फसलों पर नहीं पहुंच पाती हैं, जिसके कारण सरसों, मटर, सिगरी आदि फसलों में परागण ठीक से नहीं हो पाता है। इससे फलियों में दाने कम बनते हैं। भूमि से पौधे पोषक तत्व व पानी लेकर अपनी पत्तियों या हरे भाग द्वारा निश्चित अवधि तक धूप मिलने पर हवा से कार्बन-डाइआक्साइड लेकर अपना मुख्य भोजन कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन, विटामिन आदि का निर्माण करते हैं।

यह क्रिया प्रकाश संश्लेषण क्रिया कहलाती हैं। ज्यादा दिनों तक कोहरा पड़ने से फसलों व पौधों की प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया बाधित होने लगती है, जिससे फसलों में हल्का पीलापन, कमजोर, कीट व रोग बढ़ने से उत्पादन पर भी असर पड़ने की संभावना बढ़ जाती है। घना कोहरा छाया रहने से गेहूं की फसल को फायदा और अन्य फसलों में विपरीत प्रभाव पड़ता है। यदि गेहूं की फसल में पीलापन आ जाए तो मौसम साफ होने पर तीन प्रतिशत यूरिया को पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।

- डा. महावीर सिंह मलिक, कृषि विशेषज्ञ पलवल

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