दिव्यांगता को हथियार बना दी सपनों को उड़ान

कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों। उक्त कथन सत्य कर दिखाया है उपमंडल के गांव डिढ़ारा की दिव्यांग शर्मिली कृष्ण जांगिड़ ने।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 23 Mar 2021 04:44 PM (IST) Updated:Tue, 23 Mar 2021 04:44 PM (IST)
दिव्यांगता को हथियार बना दी सपनों को उड़ान
दिव्यांगता को हथियार बना दी सपनों को उड़ान

शीशपाल सहरावत, तावड़ू

''कौन कहता है कि आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों''। उक्त कथन सत्य कर दिखाया है उपमंडल के गांव डिढ़ारा की दिव्यांग शर्मिली कृष्ण जांगिड़ ने।

20-21 मार्च को कर्नाटक के बेंगलुरु में आयोजित नेशनल पैरा पावरलिफ्टिग चैंपियनशिप में 73 किलो भार वर्ग में रजत पदक जीत शर्मिली कृष्ण जांगिड़ ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। शर्मिली इससे पूर्व भी वर्ष 2017-18 में महाराष्ट्र में राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में दो स्वर्ण व एक रजत पदक जीत चुकी हैं।

शर्मिली का कहना है कि सरकार से सहायता व सुविधाएं मिलें तो वह राष्ट्रमंडल खेल व ओलंपिक में भी देश का नाम चमका सकती हैं। शर्मिली मूल रूप से महाराष्ट्र के कोल्हापुर से हैं। दो वर्ष की में ही एक गलत टीका लग जाने से उनका बायां पैर बेकार हो गया था। गरीबी के चलते पूरा उपचार नहीं होने से उनकी जिदगी अंधेरे में डूब गई। लेकिन समय के साथ उन्होंने अपनी दिव्यांगता को ही अपना हथियार बना लिया और पावरलिफ्टिग में अपना भविष्य तलाश लिया।

उनके गुरु वी. पाटिल व सारिका सरनाईक ने उनका मनोबल बढ़ाया और महाराष्ट्र में दो बार स्वर्ण पदक व एक बार रजत पदक झटकने के बाद उनके सपने सच होते दिखाई देने लगे। उसके बाद वर्ष 2019 में उन्होंने क्षेत्र के डिढ़ारा निवासी कृष्ण कुमार से विवाह कर लिया। उनके पति कृष्ण कुमार ने इनका मनोबल बढ़ाया और तैयारियां जारी रखने को कहा। उसके बाद तावडू में भूपेश भोगीपुरिया व सोमवीर ने प्रशिक्षण देकर उनके सपनों की उड़ान को जारी रखा।

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