बतौर लोक गायक नाम कमाया है कनीना के विशेष शिक्षक ने

प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती यह कहावत सिद्ध करके दिखाई है कनीना के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में कार्यरत विशेष शिक्षक(स्पेशल टीचर) अमृतलाल ने।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 05 Jan 2021 05:48 PM (IST) Updated:Tue, 05 Jan 2021 05:48 PM (IST)
बतौर लोक गायक नाम कमाया है कनीना के विशेष शिक्षक ने
बतौर लोक गायक नाम कमाया है कनीना के विशेष शिक्षक ने

संवाद सहयोगी, कनीना: प्रतिभा किसी की मोहताज नहीं होती यह कहावत सिद्ध करके दिखाई है कनीना के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में कार्यरत विशेष शिक्षक(स्पेशल टीचर) अमृतलाल ने। अमृत लाल का हरियाणवी रागिनी गायकों में एक नाम है, उनकी रागनी विशेष अवसरों पर ध्यान पूर्वक सुनी जाती है। दिव्यांग विद्यार्थियों के शिक्षण के साथ ही रागिनी गायकी में आनंद भी लेता है यह शिक्षक।

अमृतलाल ने बताया कि उनका जन्म राजस्थान की तहसील बहरोड़ के छोटे से गांव कोहड़ में पिता स्वर्गीय नेपाल सिंह व माता निर्मला देवी के घर हुआ। बचपन से ही अमृत प्रतिभा के धनी रहे हैं। केवल 14 साल की उम्र में गांव की रामलीला में अपने ताऊ हीरा सिंह के सानिध्य में रहकर लक्ष्मण का अभिनय किया। लक्ष्मण के अभिनय के साथ-साथ अंगद, मंदोदरी, केवट का भी समय-समय पर अभिनय किया। रामलीला क्लब में सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार प्राप्त किया। रागिनी भजन गाने का शौक 14 साल की उम्र से लगा जब गांव की सत्संग मंडली के साथ बाबा भगवान दास महाराज के मंदिर में जाते थे। तब गांव वाले कलाकार नत्थू सिंह, गणपत सिंह ,नरेश कुमार शर्मा, सुभाष जांगिड़ आदि भजन गाते थे। तब यह विचार किया कभी मैं भी कलाकार बनूंगा। यह आस लगाकर सर्वप्रथम नरेश कुमार शर्मा व गुरु मुकेश सिंह राघव से ज्ञान लेकर राधा बन गई जिलाधीश भजन गाकर शुरुआत की। फिल्मी रागिनी की तरफ रुख अपनाया। पहली बार गांव में ही रात्रि में जयमल फत्ता के इतिहास की रागनी गाकर गांव वालों का मन मोह लिया। उनके पिता स्व पाल सिंह भी रागिनियों के बहुत शौकीन थे। वे अपने पिता के पास बैठकर रागिनी सुनाते थे। पहली रागिनी के बाद मुड़कर नहीं देखा। उसके बाद सन 2006 में अपनी पत्नी रविता के साथ कनीना में आकर यहां भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। वर्तमान में अमृत सिंह घड़वा, बैंजो के साथ पंडित लखमी चंद, पंडित मांगेराम के द्वारा रचित किस्से गाकर लोगों के बीच विशेष अवसरों पर, छठी की रात्रि में, कुआं पूजन पर, विवाह उत्सव पर रागिनी गाकर जनता का मन मोह लेते हैं। सुर और ताल के साथ ऊंची आवाज में किस्से सुनाते हैं। आज उनका नाम विशेष गायकों में हैं। रागिनी गाकर कई सम्मान पा चुके हैं।

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