प्री मानसून में सामान्य से 89 फीसद कम बरसा पानी, अब आगे मानसून से भरपाई की उम्‍मीद

हरियाणा में इस बार प्री मानसून की ब‍ारिश सामान्‍य से कम रही। राज्‍य में प्री मानसून बारिश 89 प्रतिशत कम रही। अब सारी उम्‍मीदें मानसून पर टिक गई है।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Publish:Sun, 09 Jun 2019 10:56 AM (IST) Updated:Sun, 09 Jun 2019 09:17 PM (IST)
प्री मानसून में सामान्य से 89 फीसद कम बरसा पानी, अब आगे मानसून से भरपाई की उम्‍मीद
प्री मानसून में सामान्य से 89 फीसद कम बरसा पानी, अब आगे मानसून से भरपाई की उम्‍मीद

करनाल, जेएनएन। हरियाणा में इस साल प्री मानसून की बारिश ने निराश किया। इस बार 89 फीसद कम बारिश हुई है। मौसम विशेषज्ञ इसे चिंताजनक मान रहे हैं। प्री मानसून की बारिश तापमान को बढऩे से रोकने में अहम होती है। ऐसे में फिलहाल गर्मी से राहत की कोई उम्‍मीद नहीं है। अब सारी उम्‍मीद मानसून पर टिक गई है। संभावना जताई जा रही है कि मानसून इस कमी को पूरा कर देगा।

मौसम विशेषज्ञों के अनुसार मई के अंतिम सप्ताह और 10 जून तक प्री मानसून की बारिश होती है। इस बार इस समयावधि में हरियाणा, दिल्ली और चंडीगढ़ में महज 0.7 एमएम बरसात दर्ज की गई है, जो कि औसत बरसात 6.0 एमएम से 89 फीसद कम बरसात हुई है।

मानसून में देरी संभव, पश्चिमी विक्षोभ देगा राहत

मानसून में अभी एक सप्ताह की देरी देखी जा रही है। हरियाणा में भी 22 जून के बाद ही मानसून आने की संभावना है। ऐसे में फिलहाल लोगों को लू व भीषण गर्मी झेलनी पड़ेगी। राहत भरी बात यह है कि 11 व 12 जून को एक बार फिर पश्चिमी विक्षोभ सक्रिय हो सकता है। इससे हरियाणा और एनसीआर के क्षेत्र में धूलभरी आंधी के साथ गरज के साथ हल्की बरसात हो सकती है।

प्री मानसून की बरसात कम होने से ये हैं नुकसान

कृषि विशेषज्ञों के अनुसार प्री मानसून की बरसात में धान रोपाई करने का काम शुरू हो जाता था। उसके तुरंत बाद मानसून की बरसात शुरू हो जाती थी। इससे किसानों को धान रोपाई के लिए ज्यादा जद्दोजहद नहीं करनी पड़ती थी। मगर प्री मानसून की बरसात न होने से पहले से गहरा चुके भूजल स्तर पर इसका प्रभाव पड़ेगा। किसान ट््यूबवेल के पानी से ही धान रोपाई का काम शुरू करेंगे।

प्री मानसून कमजोर रहने का कारण अल नीनो तो नहीं

मौसम विशेषज्ञ डॉ. डीएस बुंदेला के मुताबिक अल-नीनो के प्रभाव से प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह गर्म हो जाती है। इससे हवाओं के रास्ते और रफ्तार में परिवर्तन आ जाता है। साथ ही मौसम चक्र भी प्रभावित होता है। भारत में अल नीनो के कारण सूखे का खतरा सबसे ज्यादा रहता है। प्री मानसून पर इसका कोई ज्यादा असर नहीं है, लेकिन बावजूद इसके प्री मानसून ने निराश किया है। 1970 के बाद से अब तक 9 साल अल नीनो रहा है। इस दौरान केवल एक बार मानसून पर इसका असर नहीं दिखा। वर्ष 1997 में सबसे मजबूत अल नीनो के बावजूद मानसून की बारिश सामान्य से दो फीसद ज्यादा रही थी।

जुलाई के पहले सप्ताह में पहुंचेगा मानसून

केरल में मानसून ने दस्तक दे दी है और इसके साथ ही देशभर में मानसून का इंतजार शुरू हो गया है। मौसम विभाग के निदेशक सुरेंद्रपाल के अनुसार इस बार मानसून हफ्तेभर की देरी से केरल तट पर पहुंचा है। जुलाई महीने के पहले हफ्ते में मानसून के पहुंचने की उम्मीद है।

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