फुटबॉल नहीं थी तो बचपन में डिब्बे के साथ खेला अश्विनी

अश्विनी कुमार। बचपन से नेत्रहीन। उपलब्धि ऐसी जो सबकी आंखें खोल दे। भारतीय ब्लाइंड फुटबॉल टीम में हरियाणा के इकलौते खिलाड़ी हैं। राष्ट्रीय स्तर पर तीन बार खेल चुके हैं। मार्च 2018 में अंतराष्ट्रीय स्तर पर भी देश का प्रतिनिधित्व किया। अब दूसरी बार केरल के शहर कोच्चि में मैदान में हैं। भारतीय नेत्रहीन टीम, आस्ट्रेलिया को 2-0 से एक मैच हराकर बढ़त बना चुकी है। 19 सितंबर के मैच में करनाल के फुटबॉलर अश्विनी का प्रदर्शन शानदार रहा। इस डिफेंडर ने आस्ट्रेलिया की हर रणनीति को ध्वस्त कर दिया। आस्ट्रेलियाई फुटबॉलरों ने अंत तक प्रयास किया, लेकिन खाता नहीं खोल पाए। इस जीत में अश्विनी की अहम भूमिका रही। अश्विनी ने दैनिक जागरण से अब तक के सफर के अनुभव साझा किए।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 22 Sep 2018 01:49 AM (IST) Updated:Sat, 22 Sep 2018 01:49 AM (IST)
फुटबॉल नहीं थी तो बचपन में डिब्बे के साथ खेला अश्विनी
फुटबॉल नहीं थी तो बचपन में डिब्बे के साथ खेला अश्विनी

जागरण संवाददाता, करनाल : अश्विनी कुमार। बचपन से नेत्रहीन। उपलब्धि ऐसी जो सबकी आंखें खोल दे। भारतीय ब्लाइंड फुटबॉल टीम में हरियाणा के इकलौते खिलाड़ी हैं। राष्ट्रीय स्तर पर तीन बार खेल चुके हैं। मार्च 2018 में अंतराष्ट्रीय स्तर पर भी देश का प्रतिनिधित्व किया। अब दूसरी बार केरल के शहर कोच्चि में मैदान में हैं। भारतीय नेत्रहीन टीम, आस्ट्रेलिया को 2-0 से एक मैच हराकर बढ़त बना चुकी है। 19 सितंबर के मैच में करनाल के फुटबॉलर अश्विनी का प्रदर्शन शानदार रहा। इस डिफेंडर ने आस्ट्रेलिया की हर रणनीति को ध्वस्त कर दिया। आस्ट्रेलियाई फुटबॉलरों ने अंत तक प्रयास किया, लेकिन खाता नहीं खोल पाए। इस जीत में अश्विनी की अहम भूमिका रही। अश्विनी ने दैनिक जागरण से अब तक के सफर के अनुभव साझा किए।

बचपन से ही था फुटबॉल का शौक

नेत्रहीन होने के बावजूद अश्विनी को बचपन से ही फुटबॉल खेलने का शौक था। फुटबॉल नहीं थी, इसलिए घर में डब्बे के साथ अकेले ही अभ्यास किया करता था। 2004 में देहरादून के एनआइवीएच ब्लाइंड स्कूल में दाखिला लिया। यहां नेत्रहीन फुटबॉल टीम के साथ जुड़ गया। 2015 के बाद से नियमित अभ्यास शुरू कर दिया। 2017 में 12वीं कक्षा पास करने के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय में एडमिशन लिया। अब अश्विनी बीए-द्वितीय वर्ष का स्टूडेंट है। हरियाणा की नेत्रहीन फुटबॉल की टीम नहीं है। इसलिए राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में दिल्ली की तरफ से ही खेलता है।

कोच नरेश ने पहचानी प्रतिभा

अश्विनी ने 2015 में पहली बार राष्ट्रीय प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। उसका खेल देखते ही कोच नरेश ¨सह नयाल ने उसकी प्रतिभा को पहचान लिया। इसके बाद उसे लगभग हर कैंप में लेकर गए। कोच नरेश ने बताया कि सामान्य खिलाड़ियों की फुटबॉल टीम में 11 प्लेयर होते हैं जबकि ब्लाइंड फुटबॉल में गोलकीपर सहित कुल पांच खिलाड़ी होते हैं। इसमें गोलकीपर को छोड़कर बाकी सभी नेत्रहीन होते हैं।

मैदान में कोच व फुटबॉल की आवाज पर ही फोकस

अश्विनी ने बताया कि नेत्रहीनों की फुटबॉल सामान्य से अलग होती है। इसमें से आवाज आती है। मैदान में इस आवाज पर फोकस करना पड़ता है। इसके अलावा कोच, गोलकीपर व बॉल गाइड के दिशा-निर्देश भी काम आते हैं। इससे पता चलता है कि किस दिशा में प्रहार करना है। किस तरफ से प्रतिद्वंद्वी खिलाड़ी गोल करने की फिराक में हैं।

परिजनों को बेटे पर नाज

अश्विनी के पिता कृष्ण लाल व मां अलका ने बताया कि उन्हें अपने फुटबॉलर बेटे पर नाज है। उसने देश के साथ ही हरियाणा और करनाल का भी नाम रोशन किया है। मार्च 2018 में अश्विनी ने जापान में भी तिरंगा लहराया था। यह अश्विनी की पहली अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता थी। भारतीय टीम चैंपियन बनकर स्वदेश लौटी थी।

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