वतन से कोसों दूर रहकर खिलाड़ियों की हरसंभव कर रहे मदद
विदेशों में रहने वाले भारतीयों का दिल आज भी अपनी मिट्टी के लिए धड़कता है और वे दूर बैठकर भी अपने देश के लिए कुछ करने की तमन्ना रखते हैं। ऐसा ही एक उदाहरण गांव हाबड़ी में देखने को मिलता है।
संजय तलवाड़, पूंडरी: विदेशों में रहने वाले भारतीयों का दिल आज भी अपनी मिट्टी के लिए धड़कता है और वे दूर बैठकर भी अपने देश के लिए कुछ करने की तमन्ना रखते हैं। ऐसा ही एक उदाहरण गांव हाबड़ी में देखने को मिलता है। यहां के युवा जो रोजगार और उच्च शिक्षा के लिए विदेश में गए हुए हैं। वे आज भी अपने गांव के युवाओं को खेलों के प्रति प्रोत्साहित करने के लिए मदद भेजते रहते हैं। बेशक यह युवा वतन से कोसों दूर रहते हैं, लेकिन अपने गांव के खिलाड़ियों को बुलंदियों तक पहुंचाने का प्रयास यह लगातार कर रहे हैं।
वैसे तो जिले के गांव हाबड़ी के कई युवा अलग-अलग देशों में बसे हुए हैं। वे समय-समय पर अपने गांव के युवाओं को हॉकी की किट व खेलों से संबंधित अन्य सामान भेजते रहते हैं, क्योंकि हॉकी और हाबड़ी का बहुत पुराना नाता है। हाबड़ी ने देश की हाकी को कई अच्छे खिलाड़ी दिए हैं, जो अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय स्तर पर हाबड़ी को पहचान दिला चुके हैं।
गांव की युवा पीढ़ी को हाकी के प्रति प्रोत्साहित करने के लिए गांव में हाकी क्लब बनाया गया है, जो राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं का आयोजन करवाकर खिलाड़ियों को अच्छा खेलने के लिए प्रेरित करता है।
हाकी के प्रति समर्पित है गांव के युवा:
हाकी क्लब के प्रधान सुखरूप कोटिया ने बताया कि क्लब उभरते हुए खिलाड़ियों के लिए हर वर्ष प्रतियोगिताओं के माध्यम से उनके खेल में निखार लाने का प्रयास करते हैं। उन्होंने बताया कि गांव में प्रतियोगिताओं को करवाने व खेल की किट के लिए गांव के ही युवा जो विदेशों में रह रहे है वह सहायता करते हैं। उन्होंने बताया कि वैसे तो 50 के करीब ऐसे युवा हैं, जो खिलाड़ियों को खेलों का सामान भेजकर प्रोत्साहन देते हैं।
इनमें कुछ नाम ऐसे हैं जो हाकी के लिए अपना योगदान देते हैं, जिनमें कुलदीप लाडी अमेरिका, विक्रम जर्मनी, विनोद इटली, बछत्तर सिंह जर्मनी, सतनाम सिंह जर्मनी, काबल सिंह पुर्तगाल व गुरनाम सिंह पुर्तगाल के नाम शामिल हैं।
उन्होंने बताया कि गांव के जो युवा विदेशों में रह रहे हैं वे खेलों के लिए ही नहीं, बल्कि समाजसेवा के कार्याें में भी हरसंभव मदद करते हैं। खास बात यह है कि वे अपने सहयोग के बारे में कोई प्रचार भी नहीं चाहते हैं।