इंजीनियर बिटिया बनी सरपंच तो बदली गांव की सूरत, 23 साल की प्रवीण बनी नजीर

हरियाणा के कैथल के एक गांव की इंजीनियर बेटी ने अपने सुनहरे भविष्‍य की जगह लोगों की सेवा करने की ठानी। उसने सरपंच के रूप में गांव की कमान संभाली और पूरे गांव की तस्‍वीर बदल दी।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Publish:Fri, 08 Mar 2019 10:54 AM (IST) Updated:Fri, 08 Mar 2019 08:59 PM (IST)
इंजीनियर बिटिया बनी सरपंच तो बदली गांव की सूरत, 23 साल की प्रवीण बनी नजीर
इंजीनियर बिटिया बनी सरपंच तो बदली गांव की सूरत, 23 साल की प्रवीण बनी नजीर

कैथल, [सुरेंद्र सैनी]। आइये, आपको हरियाणा के एक ऐसे गांव में ले चलते हैं, जहां की सरपंच 23 साल की एक इंजीनियर बिटिया है। नौकरी छोड़कर उसने जब सरपंची की राह पकड़ी तो गांव विकास की मंजिल की ओर बढ़ चला। गांव वालों ने उसे सर्वसम्मति से अपना मुखिया चुना तो बिटिया ने भी बेहतर काम कर दिखाया।

23 वर्षीय बीटेक सरपंच प्रवीण कौर की कहानी देती है प्रेरणा

कैथल के गांव ककराला कुचिया की सरपंच प्रवीण कौर से जब जागरण ने पूछा कि आप सरपंच क्यों बनीं और शादी के बाद क्या गांव छोड़ देंगी, तब उनका जवाब था- जब मैं छोटी थी, तब गांव में पानी की निकासी, पीने के पानी सहित कई समस्याएं थी, महिलाएं दूर-दराज से पानी लाती थी। बच्चों को पढऩे के लिए सुविधा नहीं थी। बड़ी होकर गांव के लिए कुछ करने का सपना था, इसलिए सरपंच बनी।

प्रवीण ने कहा, जहां तक शादी की बात है, इस बारे में अभी सोचा नहीं है। कार्यकाल खत्म होने के बाद इस बारे में विचार किया जाएगा। अगर लगा कि गांव में अभी काम करना है, अगले पांच साल फिर गांव में काम करने का मौका मिला तो शादी की बजाए गांव का विकास करवाना ही प्राथमिकता रहेगी।

इंजीनियर बेटी ने नौकरी छोड़ सरपंची संभाली तो खुशहाली की तरफ बढ़े गांव के कदम

प्रवीण ने पूरा गांव घुमाया और हमें बताया कि सबसे पहले उन्होंने यहां पानी का प्रबंध कराया और महिलाओं-बेटियों की सुरक्षा के लिए सीसीटीवी लगवाए। प्रवीण फिलहाल चंडीगढ़ से वेब डिजाइनिंग का कोर्स भी कर रही हैं। हरियाणा सरकार ने उन्हें बेटी-बचाओ-बेटी पढ़ाओ अभियान का ब्रांड एंबेसडर बनाया हुआ है। प्रवीण घर की सबसे बड़़ी बेटी हैं। एक छोटा भाई और बहन है।

जरूरतमंद बच्चों की पढ़ाई को लेकर उन्होंने गांव के पंचायत घर में क्लास शुरू कराई है। इसमें 60 बच्चे पढ़ाई करने आते हैं। खुद भी पढ़ाती हैं। नतीजा, न केवल बच्चों की पढ़ाई का स्तर बढ़ रहा है, बल्कि बेहतर करने की सीख हासिल कर रहे हैं। अंग्रेजी भी बोलने लगे हैं। गांव का सरकारी स्कूल भी पहले दसवीं कक्षा तक था, अब अपग्रेड होकर 12वीं तक कर दिया है।

प्रवीण की टीम में चार महिला पंच भी हैं। पंचायत का फोकस महिला विकास पर रहता है। प्रवीण ने बताया कि महिला पंच होने से फायदा यह रहता है कि महिलाएं अपनी बात खुलकर रख सकती हैं। बेटियों को पढ़ाना हो, उनकी निजी समस्या हो या फिर कोई घरेलू विवाद, महिलाएं इन पंचों के सामने सभी समस्याएं रख सकती हैं। इससे समाधान निकालने में आसानी रहती है। प्रवीण को वर्ष 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सम्मानित कर चुके हैं।

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