जोर आजमाइश, हत्या, गतिरोध और पटाक्षेप

जागरण संवाददाता, जींद : धरौदी गांव में पिछले करीब तीन साल से पांच एकड़ जमीन पर बीपीएल परिवारों

By Edited By: Publish:Thu, 30 Jul 2015 11:27 PM (IST) Updated:Thu, 30 Jul 2015 11:27 PM (IST)
जोर आजमाइश, हत्या, गतिरोध और  पटाक्षेप

जागरण संवाददाता, जींद :

धरौदी गांव में पिछले करीब तीन साल से पांच एकड़ जमीन पर बीपीएल परिवारों के लिए काटे गए 100 गज के प्लाटों पर जोर आजमाइश चलती रही। तीन साल की रस्सा-कस्सी के बाद 18 जुलाई को भड़के विवाद में विक्रम की हत्या के बाद जोर आजमाइश गतिरोध में बदल गई। हत्या के बाद पोस्टमार्टम होने तक गतिरोध बना रहा। बदली परिस्थितियों में अनुसूचित जाति के परिवारों का गांव से पलायन, फिर वापसी। 21 जुलाई तक सब सामान्य दिखाई देने लगा। 29 जुलाई को शोकसभा के बाद मांगों को लेकर प्रशासन के साथ बातचीत में बना गतिरोध दिल्ली-फिरोजपुर रेलवे ट्रैक पर जाम तक पहुंच गया। डेढ़ घंटे की बातचीत के बाद ट्रैक जाम होने से पहले बना गतिरोध का बृहस्पतिवार दोपहर करीब 12 बजे रेलवे ट्रैक खाली होने के साथ पटाक्षेप हो गया। समझौता वार्ता सफल होने के बाद एक तरफ जहां प्रशासन व सरकार ने राहत की सांस ली, वहीं सर्वखाप पंचायत रेलवे ट्रैक खाली करने से पहले ट्रैक पर मौजूद भीड़ के सामने जीत का दावा किया, परंतु जानकार इस पूरे प्रकरण में न किसी की जीत देख रहे है तथा न ही किसी की हार। कारण बुधवार दोपहर करीब ढ़ाई घंटे चली वार्ता जिन मुद्दों पर गतिरोध बना था, बृहस्पतिवार को उन्हीं पर समझौता भी हो गया। ऐसे में हत्या, पलायन व गतिरोध तथा समझौते की यह प्रक्रिया अंत में कई ऐसे सवाल छोड़ गई, जिनके जवाब जानने को हर कोई आतुर है। सबसे पहले व बड़ा सवाल तो यह है कि विक्रम की मौत के अपनी मांगे मानने तक शव का पोस्टमार्टम करवाने से इंकार कर दिया गया था। 18 जुलाई की रात करीब 45 दिन बाद प्रशिक्षण कर लौटे डीसी अजीत बालाजी जोशी ने जींद में कदम रखते हुए सीधे नरवाना का रुख किया था तथा परिजनों से बातचीत के बाद 19 जुलाई को शव का पोस्टमार्टम हो पाया था। इसके एक दिन बाद गांव में शांति बहाली के लिए गठित शांति कमेटी ने मृतक की पत्नी को नौकरी, 25 लाख रुपये का मुआवजा, सरपंच व अन्य आरोपियों के साथ बीडीपी को आरोपी बनाने सहित कई मांगें सरकार व प्रशासन के सामने दोहरा दी थी। 19 से 29 जुलाई के बीच कई बार शांति कमेटी ने जींद पहुंचकर अपनी मांगें दोहराई तथा प्रशासन का रुख भी सकारात्मक देखने को मिला, बावजूद इसके सरकार व प्रशासन तथा शांति कमेटी 10 दिन के समय में भी एक दूसरे का विश्वास क्यों नहीं जीत पाया। 29 जुलाई को मुआवजा पर बना गतिरोध व रेलवे ट्रैक जाम दोनों पक्षों में आपसी विश्वास की कमी का परिणाम ही माना जा रहा है। क्योंकि यदि देखा जाए तो बृहस्पतिवार को भी उन्हीं बातों पर समझौता हुआ, जहां बुधवार को गतिरोध बना था। फर्क केवल इतना रहा कि बुधवार को एसडीएम ने नियमानुसार मुआवजा की फाइल सरकार के पास भेजने की बात कही थी, जबकि बृहस्पतिवार को पांच लाख की मुआवजा राशि सर्वखाप को नकद मिल गई। ऐसे में यह कहा जाए तो शायद गलत नहीं होगा कि बुधवार को बातचीत के सभी मांगों पर सहमति बनने के बाद 25 लाख के मुआवजे पर टूटी गई थी, तो बृहस्पतिवार को डीसी व एसपी तथा भाजपा प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य एवं रोहतक के प्रभारी जवाहर सैनी की मौजूदगी में अन्य शर्ते तो वैसी थी ही तथा मुआवजे का समझौता भी 25 की बजाय नकद मिले पांच लाख रुपये में हो गया। विक्रम के पिता धर्मबीर ने भी बेटे के मुआवजे के रूप में मिले पूरे पांच लाख रुपये की राशि न केवल गौशाला में दान दे दी, बल्कि विवाद पांच एकड़ जमीन भी गौशाला के नाम करवाने पर प्रशासन व सरकार की सहमति भी ले ली। यदि इन दो बातों को छोड़ दे तो बुधवार को वार्ता विफल व बृहस्पतिवार को वार्ता सफल होने में कोई फर्क नजर नहीं आता। फिर भी राहत की बात यह है कि आखिरकार दोनों पक्ष बातचीत के बाद नतीजे पर पहुंचने में सफल हो ही गए।

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