उद्यमी की पौबारह तो किसान घाटे में

- अध्यादेश से मिलेगा बड़ा फायदा - झज्जर में है आठ हजार एकड़ जमीन शैलेंद्र गौतम, झज्जर 2005 में ज

By Edited By: Publish:Sat, 28 Feb 2015 01:00 AM (IST) Updated:Sat, 28 Feb 2015 01:00 AM (IST)
उद्यमी की पौबारह तो किसान घाटे में

- अध्यादेश से मिलेगा बड़ा फायदा

- झज्जर में है आठ हजार एकड़ जमीन

शैलेंद्र गौतम, झज्जर

2005 में जब कांग्रेस की सरकार ने दिल्ली के साथ सूबे में कमान संभाली तो लगा था कि झज्जर का विकास अब गुड़गांव सरीखा हो सकेगा। सेज की अवधारणा लागू होने के बाद यहां औद्योगिक हब बनना था लेकिन अब ये लुभावने नारे कहां दफन होकर रह गए ज्यादातर लोगों को पता ही नहीं है। आज सेज की कहानी दफन होती जा रही है तो उस बीच में जो अध्यादेश अब आने जा रहा है उसमें रिलायंस की पौबारह हो जाएगी, क्योंकि झज्जर में जो आठ हजार एकड़ जमीन रिलायंस ने खरीदी वह सेज बनाने के नाम पर खरीदी थी। जमीन को लेकर उठते रहे सवाल इससे कानूनी व प्रशासनिक तौर पर पूरी तरह थम जाएंगे।

एसईजेड पॉलिसी के तहत हरियाणा सरकार ने वर्ष 2005 में रिलायंस (मुकेश ग्रुप) के साथ विशेष आर्थिक जोन स्थापित करने के लिए विशेष करार किया था। उस दौरान रिलायंस व एचएसआइडीसी के बीच करार हुआ और सेज लि. बनी। इसमें 25 हजार एकड़ का जोन बनना था और उसका 90 फीसद हिस्सा रिलायंस का और 10 फीसद एचएसआइडीसी के पास स्वीट इक्विटी के तौर पर रहना था। यानि हरियाणा केवल प्रोजेक्ट को सुविधा मुहैया कराएगा, पैसा कोई नहीं खर्चेगा बदले में उसे मुफ्त में दस फीसद हिस्सेदारी मिलेगी। काम में तेजी आ पाती कि उससे पहले ही आर्थिक मंदी ने देश को जकड़ लिया और सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद सरकार ने सेज का आकार घटाकर छोटा कर दिया। सेज को दो हिस्सों में बांटा गया और उसका आकार साढ़े बारह-बारह हजार में कर दिया गया। यानि अब दो जगहों पर जमीन खरीदी जा सकती थी। सारी कहानी सेज के नाम पर शुरू हुई थी। रिलायंस ने तकरीबन आठ हजार एकड़ जमीन की खरीद बादली के इलाके में की। कंपनी ने सेज के रूप में इस जमीन को सरकार के पास नोटिफाई नहीं कराया इस वजह से सारी योजना ठंडे बस्ते में चली गई। रिलायंस के पास इस इलाके में फिलहाल 279 एकड़ का इंडस्ट्रियल कालोनी का लाइसेंस है। 22 गांवों की आठ हजार एकड़ में से औद्योगिक तेजी लाने के नाम पर रिलायंस ने 74 एकड़ में 72 करोड़ रुपये 99 साल के पंट्टे के तौर पर वसूलकर पैनासानिक को दी है तो 18 एकड़ जमीन 37 करोड़ लेकर लीज पर तीस साल के लिए डेंसो को दी है। इसके अलावा और कोई काम रिलायंस की जमीन पर नहीं हुआ। चुनाव के दौरान हरियाणा के कृषि मंत्री ओम प्रकाश धनखड़ ने साइकिल यात्रा निकालकर रिलायंस की जमीन वापस किसानों को देने की मांग की थी क्योंकि जमीन खरीदे पांच साल से ज्यादा हो चले थे और सेज की दिशा में काम नहीं हुआ। हालांकि रिलायंस से यह जमीन वापस नहीं ली जा सकती क्योंकि उसने यह सीधे किसानों से खरीदी और सेज में इसे नोटिफाई नहीं कराया। इस जमीन का क्या होगा यह भविष्य के गर्भ में है। पुराने कानून के तहत गढ़ी हरसरू गुड़गांव में रिलायंस ने सेज का करार सरकार से किया था। पांच साल में सेज नहीं बना तो 1385 एकड़ जमीन उसे सरकार को लौटानी पड़ी।

गुरु जंभेश्वर विश्वविद्यालय के रिटायर्ड एसोसिएट प्रो. डा. रामकंवार का कहना है कि 2013 के कानून में जो बदलाव मोदी सरकार ने किया है उसके बाद जमीन को अधिग्रहण करने में सरकार को किसी तरह की परेशानी पेश नहीं होगी और सेज जैसे प्रोजेक्ट के लिए कोई कंपनी जमीन हासिल करती है तो उस पर यह बाध्यता नहीं होगी कि वह कब तक काम करे। पहले कानून था पांच साल का और अब है असीमित। जमीन अधिग्रहण के रास्ते में आने वाली अड़चनों को सरकार ने खत्म कर दिया है। जनमत संग्रह के अतिरिक्त सामाजिक तौर पर खड़ी की गई बाधाएं अध्यादेश में पूरी तरह से समाप्त की गई हैं। इससे जमीन के मालिकों के अधिकार सरकार को मिल गए।

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