यहां दीवारें सुनाती हैं वीरों की गाथा, खासियत ऐसी कि गेट-वे-ऑफ हरियाणा पड़ गया नाम

दीवारों पर शहीदों और क्रांतिकारियों से लेकर वीर राजाओं वैज्ञानिकों दार्शनिक ही नहीं बल्कि देश और राज्य की हर शख्सियत की सूरत और उनकी भूमिकाओं को इन दीवारों ने ही संजो रखा है। इनमें गौरवशाली इतिहास की झलक साफ दिखती है।

By Manoj KumarEdited By: Publish:Mon, 26 Oct 2020 01:46 PM (IST) Updated:Mon, 26 Oct 2020 01:46 PM (IST)
यहां दीवारें सुनाती हैं वीरों की गाथा, खासियत ऐसी कि गेट-वे-ऑफ हरियाणा पड़ गया नाम
तस्वीरों में छिपा आकर्षण देखने वालों की रगों में लहू के साथ जोश बनकर दौड़ने लगता है।

बहादुरगढ़ [प्रदीप भारद्वाज] गेट-वे-आफ हरियाणा के नाम से पहचाने जा रहे बहादुरगढ़ में आकर यदि कोई वीरों की गाथा सुनना चाहे, तो यहां के बाशिंदों से पहले दीवारें ही बोल उठेंगी। यह जानकर ताज्जुब तो होगा कि आखिर दीवारों में ऐसा क्या है, मगर इस शहर की दीनबंधु छोटूराम धर्मशाला में पहुंचकर इसका जवाब स्वत: मिल जाता है। यहां शहीदों और क्रांतिकारियों से लेकर वीर राजाओं, वैज्ञानिकों, दार्शनिक ही नहीं बल्कि देश और राज्य की हर शख्सियत की सूरत और उनकी भूमिकाओं को इन दीवारों ने ही संजो रखा है। इनमें गौरवशाली इतिहास की झलक साफ दिखती है। पहली नजर में ही इन तस्वीरों में छिपा आकर्षण देखने वालों की रगों में लहू के साथ जोश बनकर दौड़ने लगता है।

बहादुरगढ़ में यह धर्मशाला दीनबंधु छोटूराम की स्मृति में वर्ष 1990 में बनी थी। प्रदेश में हुकुम सिंह मुख्यमंत्री थे। तब इस धर्मशाला के संचालन के लिए सोसायटी का गठन हुआ और प्रस्ताव पारित करके भेजा गया। इस धर्मशाला से एक बड़ी खासियत तब जुड़ी, जब इसे सिर्फ छोटूराम ही नहीं बल्कि देश और राज्य की उन सभी शख्सियतों को भी समर्पित किया गया, जिन्होंने देश और समाज के लिए किसी भी रूप में अपना योगदान दिया।

एक-एक करके मकान क्रांतिकारियों, शहीदों, समाज सेवियों, दानवीरों, वैज्ञानिकों, पुलिस और सेना के अफसरों, बुद्धिजीवियों, जन नेताओं, दार्शनिक, बुद्धिजीवियों, संतों, धर्म रक्षकों समेत देश-समाज के लिए समर्पित हर विभूति की यादों को तस्वीरों के जरिये यहां बसाने की कवायद शुरू हुई। इस धर्मशाला में धर्म, जाति, लिंग का कोई भेद नही दिखता। जितने उत्साह से यहां हिंदू राजाओं, वीर बहादुरों की तस्वीरें दीवारों पर सजी हैं उतनी ही शिद्दत से दूसरे धर्मो के महापुरुषों के चित्र भी आगंतुकों में जोश भरते हैं।

जिन क्रांतिकारियों ने आजादी की लड़ाई लड़ी, जिन्होंने अपने जीवन से आदर्श स्थापित किए, जो राजनीतिक व सामाजिक सुचिता के लिए जाने गए, जिन्होंने उसूलों से कभी समझौता नही किया और जो बलिदान देकर भावी पीढ़ियों को संघर्ष और मेहनत का पाठ पढ़ा गए, उन सबके यहां दर्शन होते हैं।

यहां सीखने को मिलता है जज्बा :

वैसे तो धर्मशालाएं हर शहर में मिलती हैं, मगर जो मुसाफिरों को ठहरने के लिए आसरा बनने के साथ ही देश भक्ति का जज्बा सिखाएं और इतिहास का बोध कराते हुए सामाजिक समरसता का संदेश भी दें, ऐसी धर्मशाला विरली ही मिलती हैं। यही खासियत बहादुरगढ़ की इस धर्मशाला को अहमियत देती हैं। इसके हॉल में प्रवेश करते ही जिधर नजर पड़े, उधर की दीवारें खामोशी के साथ बहुत कुछ सुनाती प्रतीत होती हैं। इन पर सजी तस्वीरें हर किसी को अतीत में खींच ले जाती हैं। हर शख्सियत का, तस्वीर के साथ परिचय भी कराती हैं। शहीद भगत सिंह से लेकर राजा नाहर सिंह और शहीद हुकमचंद जैन से लेकर हैदर अली तक के अलावा ऐसे बहुत से नाम हैं, जिनसे लोग यहां आकर पहली बार वाकिफ होते हैं। अहमद उल्लाह फैजाबादी, वीर हेमचंद्र रेवाड़ी, शहीद राणा बख्तावर, हसन खां मेवाती, दामोदर चापेकर, वासुदेव चापेकर, बालकृष्ण चापेकर, मदन लाल ढींगरा, पुणे के विष्णु गणेश पिंगले, भाई परमानंद, लाला हरदयाल दिल्ली, सूफी अम्बा प्रसाद, गुजरात के श्यामजी कृष्ण वर्मा, बंगाल के शहीद कन्हाई लाल दत्त, पंडित चमूपति, स्वामी श्रद्धानंद, पंडित गुरुदत्त विद्यार्थी, महात्मा आनंद स्वामी, पंडित रामचंद्र देहलवी, स्वामी सत्यप्रकाश से लेकर बहुत से ऐसे वीर सपूत और महापुरुष हुए, जो सिर्फ देश और समाज के लिए जिए, मगर उनके नाम और पहचान के बारे में यहां आकर जानकारी मिलती है। आजादी के बाद से ही सीमा के प्रहरी बनकर बलिदान देने वाले रणबांकुरों और यौद्धाओं का यहां सहचित्र परिचय मिलता है। विक्टोरिया क्रास रिसलदार बदलू सिंह, कवि मेहर सिंह दहिया, बिग्रेडियर होशियार सिंह तो इस क्षेत्र की आन, बान और शान रहें हैं। इसके साथ ही लाला लाजपतराय, शहीद उधम सिंह, महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु, सुखदेव सरीखे अमर बलिदानी जिनका देशप्रेम ही उनकी पहचान बना, उनकी तस्वीरें तो अपने आप ही यहां की महत्ता बढ़ा देती हैं। कितने ही पुलिस और सेना के वीर जवान ऐसे हैं, जो देश और फर्ज के लिए मर मिटे, उनका बोध भी यहां सहज ही होता है। कर्म के साथ धर्म से जुड़ी विभूतियां भी यहां जीवन पाठ पढ़ाती दिखती हैं। 1857 की क्रांति से लेकर आजादी आंदोलन के कई बड़े घटनाक्रमों को यहां चित्रों में पिरोया हुआ है।

वीरांगनाओं के साहस और त्याग की भी झलक 

लिंग भेद से इतर इस धर्मशाला की जिस विशेषता का हम जिक्र कर रहें हैं, उसकी झलक यहां के कई कोनों में दिखती हैं। देश और समाज के लिए समर्पित हुई पुरुष शख्सियत ही नहीं बल्कि नारियों के साहस और त्याग से भी यह धर्मशाला रूबरू करवाती हैं। उनकी करुणा, ममता, संकल्प की अनगिनत गाथाएं किताबों में तो हर किसी ने सुनी-पढ़ी होंगी, मगर यहां की तस्वीरें उन वीरांगनाओं के प्रचंड रूप को सीधे ब्यां करती दिखती हैं। यहां कुछ नाम ऐसे भी मिलते हैं, जो यहां से पहले कभी न जाने गए हों। झांसी की रानी को तो सभी जानते हैं, मगर दीपशिखा रानी रघुवीर कौर, मां कर्माबाई, भक्ति सिद्धा देवी फूला बाई, वीरांगना शिव देवी, कुमारी जय देवी, महारानी तोमरिस जैसी वीर नारियों की तस्वीरें यहां उनकी बहादुरी को दर्शाते हुए सजाई गई हैं। भारतीय नारी का यह ओज हर किसी के आत्मिक बल को बढ़ा देता है।

राजनीति पर भी है प्रभाव  

वैसे तो यह धर्मशाला एक सामाजिक स्थल है, जहां किसी एक के लिए नही बल्कि सबके लिए दरवाजे खुले हैं, मगर इसका राजनीति पर भी प्रभाव है। इसलिए जिस नेता को यहां हर साल होने वाले जयंती समारोह के लिए आमंत्रित किया जाता है, वह ना कर ही नहीं पाता। वर्षो तक पूर्व एमएलसी स्व. उदय सिंह मान और रघबीर जून ने इसका संचालन किया है। कई साल तक यहां की सोसायटी के प्रधान रहे रिटायर्ड मास्टर सज्जन सिंह दलाल कहते हैं कि देश और राज्य की जो महानता है वह शहीदों, क्रांतिकारियों, बलिदानियों और वीर बहादुरों की बदौलत ही है। आने वाली पीढ़ियां इन्हें भूल न जाएं, इसीलिए धर्मशाला में इन तस्वीरों को सजाया गया है।

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