हेलो जागरण: आधुनिकीकरण से आई पराली की समस्या, हैपीसीडर से करें प्रबंधन, बढ़ाएं उत्पादन

जागरण संवाददाता हिसार किसानों के साथ-साथ अब पराली और इससे पैदा होने वाला प्रदूषण लोग

By JagranEdited By: Publish:Tue, 19 Nov 2019 02:40 AM (IST) Updated:Tue, 19 Nov 2019 06:21 AM (IST)
हेलो जागरण: आधुनिकीकरण से आई पराली की समस्या, हैपीसीडर से करें प्रबंधन, बढ़ाएं उत्पादन
हेलो जागरण: आधुनिकीकरण से आई पराली की समस्या, हैपीसीडर से करें प्रबंधन, बढ़ाएं उत्पादन

जागरण संवाददाता, हिसार :

किसानों के साथ-साथ अब पराली और इससे पैदा होने वाला प्रदूषण लोगों के जीवन के लिए खतरा बनता जा रहा है। किसान अक्सर कहते हैं कि उनके पास समाधान नहीं है तो सरकार लाख सब्सिडी दे मगर जमीनी स्तर पर उसका प्रयोग नहीं हो रहा। इसको लेकर दैनिक जागरण ने पिछले कई दिनों से लोगों को जागरूक करने की मुहिम चलाई है। इसी के तहत सोमवार को जागरण कार्यालय में हेलो जागरण कार्यक्रम के तहत चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय से वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डा. समंदर सिंह ने किसानों को पराली न जले इसके लिए उपाय सुझाए। डा. सिंह बताते हैं कि इस समस्या के उपाय समझने से पहले किसानों को समस्या समझना जरूरी है। पराली की समस्या में आधुनिकता और मशीनीकरण का अहम योगदान है। अब इसी रास्ते से हमें समाधान निकालना होगा। अब मल्चिग और हैपीसीडर से किसान पराली के प्रबंधन से लेकर आगामी गेहूं की फसल में अधिक पैदावार तक पा सकते हैं। विवि कई बार इस प्रयोग को सफलता के साथ पूरा कर चुका है।

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ऐसे मशीनीकरण से उत्पन्न हुई समस्या

कृषि वैज्ञानिक डा. समंदर सिंह ने बताया कि हमारा समाज जैसे-जैसे मशीनीकरण की ओर आगे बढ़ा हमारी समस्याएं भी उसी तेजी से बढ़ती गईं। पहले खेतों में किसान हाथ से धान की फसल काटता था, जिसमें ऐसी प्रैक्टिस थी कि पौधे को एकदम नीचे से काटना है। मगर अब मशीन करीब एक हाथ की ढुंठल छोड़ देती है, जिसके लिए किसान के पास कोई समाधान नहीं था तो किसान कुछ वर्षों से इसमें आग ही लगाने लगे। अब इससे उर्वरक शक्ति कम हुई तो मित्र कीट भी मर गए। हमारा दोहरा नुकसान हुआ।

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मल्चिग और हैपीसीडर ऐसे करेगा मदद

हेलो जागरण के दौरान कई किसानों ने कृषि वैज्ञानिक को फोन पर पराली का समाधान पूछा, जिसमें उन्होंने बताया कि किसानों को सबसे पहले यह ध्यान रखना है कि वह पराली में आग न लगाएं। सबसे पहले किसान मल्चर मशीन को पराली वाले खेतों में चलाएं। यह मशीन पराली के ढुंठलों को छोटे-छोटे टुकड़ों में काट देती है, फिर हैपीसीडर मशीन के माध्यम से बिजाई करें, इससे पराली के छोटे टुकड़े खेतों में बिखर जाएंगे। डा. सिंह बताते हैं जब यह दोनों काम किसान कर लें फिर उन्हें गेहूं की फसल के लिए जुताई करने की आवश्यकता नहीं है। इस प्रक्रिया से कई फायदे होंगे। सबसे पहले तो जुताई पर लगने वाली लागत और समय दोनों बचा, इससे गेहूं की फसल जल्दी तैयार हो जाएगी, मार्च-अप्रैल में जब अधिक गर्मी होती तो पराली मिलाने से उस खेत का तापमान दो से तीन डिग्री सेल्सियस कम मिलेगा तो पैदावार भी अच्छी होगी। उन्होंने कहा कि किसान यह उपाय अपनाएं, उन्हें निश्चित ही लाभ मिलेगा।

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आर्गेनिक कार्बन की बढ़ेगी मात्रा

हरियाणा में आर्गेनिक कार्बन लगातार घट रहा है। मौजूदा समय में प्वांइट तीन या चार ही मिट्टी में आर्गेनिक कार्बन पाया जा रहा, जिसका मतलब सीधे उपजाऊ शक्ति से होता है। अगर किसान पराली को मल्चिग और हैपीसीडर का प्रयोग कर खेतों में ही मिलाते हैं तो उस खेत में आर्गेनिक कार्बन की मात्रा बढ़ेगी।

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