खौफजदा परिवारों के लिए "भगवान'' बना शवों का संस्कार करने वाला स्टाफ

कोरोना के चलते मृतकों के परिवारों के सदस्य अपने कर्मों को कोसते नजर आते हैं। दूर से खड़े होकर बिछड़ों को श्रद्धांजलि और उनका संस्कार करने वालों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करते हैं। उनकी पसंद का भोजन स्टाफ के लिए लाते हैं।

By Umesh KdhyaniEdited By: Publish:Sat, 01 May 2021 04:34 PM (IST) Updated:Sat, 01 May 2021 04:34 PM (IST)
खौफजदा परिवारों के लिए "भगवान'' बना शवों का संस्कार करने वाला स्टाफ
झज्जर में एक दिन में कोविड के मृतकों के अंतिम संस्कार का आंकड़ा दहाई को पार करने लगा है।

झज्जर [अमित पोपली]। मानो इन दिनों में श्मशान घाट की शांति को किसी की नजर ही लग गई है। एक-एक दिन में कोविड के मरीजों के अंतिम संस्कार का आंकड़ा दहाई को पार करने लगा है। ऐसे समय में चिता से दूर रहकर मृतक के परिवार के सदस्य हर हद तक भावुक हो रहे हैं और संस्कार का धर्म निभा रहे स्टाफ के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त कर रहे हैं।

नगर परिषद के ट्रैक्टर पर कोरोना संक्रमित व्यक्ति के शव को लेकर आने वाला चालक हो या संस्कार करने वाली टीम, पीपीई किट पहनकर जब संस्कार कर रहे होते हैं तो उस दौरान परिवार के सदस्य छांव में खड़े रहकर अपने कर्मों को कोस रहे होते हैं। क्योंकि, वे पाबंदियों के चलते उस धर्म को नहीं निभा पा रहे जो कि परंपरागत नियम हैं। ऐसे में एक तय सीमा तक दूर खड़े रहकर वह संस्कार की पूरी प्रक्रिया को देखते हैं फिर स्टाफ के सदस्यों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हुए उन्हें भगवान का दर्जा दे रहे हैं।

हालांकि, ऐसे में जब कोई ज्यादा नजदीक जाने की जिद करता है तो मौजूद रहने वाले स्टाफ को हाथ जोड़कर काम चलाना पड़ता हैं। ड्यूटी संभाल रहे दरोगा मुकेश ने बातचीत ने बताया कि दिन में एक परिवार के सदस्य ने संस्कार का कर्म पूरा हो जाने के बाद हाथ जोड़कर कहा कि आप तो भगवान की तरह हमारे परिवार के सदस्यों को संभाल रहे हैं।

संस्कार करने वालों के लिए ला रहे मृतक की पसंद का भोजन

हिंदू मान्यताओं के मुताबिक बेशक ही अंतिम संस्कार की क्रिया को मृतक के परिवार का सदस्य पूरा नहीं कर पा रहा है। लेकिन, मौजूद रहने वाले परिवार के सदस्य जरूर प्रयास करते हैं कि वह परंपराओं का निर्वाह करने का प्रयास जरूर करें। वह क्रिया को पूरा करने वाले स्टॉफ के मृतक की पसंद का भोजन भी लेकर आ रहे हैं। ताकि, वे अपनी भावनाओं को कुछ हद तक संयम में रख पाए। इधर, सैनिटाजेशन के बाद शव की पैकिंग, फिर पीपीई किट में अपने अंतिम संस्कार और फिर हर संस्कार के बाद स्नान। यह शमशान घाट पर ड्यूटी दे रहे स्टॉफ सदस्य गुलाटी, राजेश, महेश, जितेंद्र कुमार का अब रूटीन बन गया है। जबकि, कोरोना की वजह से अपनों को खोने वाले इस कदर खौफजदा हैं कि अब उफ भी नहीं निकल रही है। कई दफा तो स्थिति ऐसी बन रही हैं कि एक चिता के बुझने से पहले दूसरे शव का अंतिम संस्कार शुरू कर दिया जाता है। 

9 की जगह लग रहीं 11 मन लकड़ियां

प्रक्रिया के तहत 9 मन लकड़ी का अंतिम संस्कार के लिए इस्तेमाल होता हैं। मौजूदा समय में 11 मन लकड़ियां लगाइ्र जा रही हैं। जिसका रेट 3520 रुपये तय किया गया हैं। संस्कार के अगले दिन लोगों को फूल चुगने के लिए बुलाया जाता है ताकि देर न हो। कोविड संक्रमण के मृतकों के लिए शमशान में लकड़ियां सहित सभी जरूरी सामान भी रखे गए हैं ताकि किसी को परेशान होना न पड़े। हालांकि, धार्मिंक अनुष्ठान के लिए सभी सामग्री की जरूरत के हिसाब से अधिक खर्च भी कई लोग कर रहे हैं।

नम आंखों से अपनों को दे रहे अंतिम विदाई

शवों के अंतिम संस्कार के दौरान साथ पहुंचने वाले परिवार के दूसरे सदस्य मास्क लगाकर अकेले में अश्रुपूर्ण विदाई देते नजर आए। सभी के गले रुंधे हुए तो गम के इस माहौल में हर कोई यही प्रार्थना कर रहा था कि और किसी परिवार के साथ ऐसा न हो। इनमें से कुछ ऐसे भी लोग थे, जिनके स्वजनों की सांसें ऑक्सीजन की कमी से आखिरी सांसें बन गईं। सभी के चेहरे पर दुख के साथ साथ रोष भी दिख रहा था।

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