युद्ध में वायरलैस पर मिली थी पिता की मौत की सूचना, लेकिन दुश्मनों को खदेड़ने के बाद ही पहुंचा घर : रामेश्वर

सुभाष चंद्र हिसार कारगिल युद्ध के दौरान वायरलैस पर पिता की मौत की सूचना मिली सीनियर अधिक

By JagranEdited By: Publish:Tue, 31 Dec 2019 02:51 AM (IST) Updated:Tue, 31 Dec 2019 02:51 AM (IST)
युद्ध में वायरलैस पर मिली थी पिता की मौत की सूचना, लेकिन दुश्मनों को खदेड़ने के बाद ही पहुंचा घर : रामेश्वर
युद्ध में वायरलैस पर मिली थी पिता की मौत की सूचना, लेकिन दुश्मनों को खदेड़ने के बाद ही पहुंचा घर : रामेश्वर

सुभाष चंद्र, हिसार : कारगिल युद्ध के दौरान वायरलैस पर पिता की मौत की सूचना मिली, सीनियर अधिकारियों ने कहा आपके पिता की मौत हो गई है, आप जाना चाहते है तो युद्ध छोड़ कर जा सकते है। लेकिन मैंने कहा जो होना था वो हो चुका है, लेकिन दुश्मनों को कारगिल से खदेड़ने के बाद ही जाउंगा। यह जानकारी नारनौंद के गांव हैबतपुर निवासी पूर्व एनएसजी कमांडो रामेश्वर श्योराण ने दी। वह शहर के जागृति स्कूल में एक कार्यक्रम में उपस्थित हुए थे। दैनिक जागरण संवाददाता से बातचीत में उन्होंने बताया कि दुश्मनो को खदेड़ने के बाद ही वह अपने घर पहुंचे। कारगिल युद्ध के दौरान पिता की मौत की सूचना पर आंखे नम हुई, लेकिन दौगुनी ताकत से दुश्मनों से लड़े और कई दुश्मनों को कारगिल से खदेड़ा। ट्रेनिग करके सीधे कारगिल युद्ध में उतरे

रामेश्वर श्योराण ने आर्मी ज्वाइन करने के बाद ट्रेनिग की। ट्रेनिग के दौरान उन्होंने निशानेबाजी में गोल्ड मेडल जीता। उनके कहने पर ब्रिगेडियर ने उन्हें कारगिल युद्ध में भेजा। रामेश्वर श्योराण ने ब्रिग्रेडियर से कहा कि उन्होंने निशाने बाजी कबूतर मारने के लिए नई सीखी है। वह दुश्मनों की आंखों को अपना निशाना बनाना चाहते है, नहीं तो उनका निशानेबाजी में गोल्ड जीतने का कोई अर्थ नहीं है। उनकी यह बात सुनकर बिग्रेडियर ने उन्हें कारगिल युद्ध में लड़ने के लिए भेजा था। मुंबई हमले में भी आतंकियों से किए दो-दो हाथ

कमांडो रामेश्वर श्योराण ने बताया कि वह ट्रेनिग के बाद देश की सर्वोच्च मानी जाने वाली एनएसजी कमांडों में शामिल हुए थे। मुंबई हमलों के दौरान होटल ताज में उन्हें भेजा गया था, जहां आतंकियों से मुठभेड़ हुई थी। 16 वर्ष तक भारतीय सेना में सेवाएं देने के बाद वह 6 साल से वीआरएस पर है।

पिता से प्रेरणा पाकर सेना में हुआ भर्ती

कमांडो रामेश्वर श्योराण ने बताया कि वह अपने पिता से प्रेरणा पाकर सेना में जाने के लिए प्रेरित हुए थे। उनके पिता 1971 में पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध में रिजर्व सेना में शामिल हुए थे। उस समय गांव से युवाओं को सेना में शामिल होने के लिए ले जाया गया था। उनके पिता भी अन्य युवाओं के साथ सेना में युद्ध लड़ने के लिए पहुंचे थे, उन्हें रिजर्व सेना में रखा गया। वह यह बात बताया करते थे तो मैंने भी सेना में जाने के लिए ठान लिया।

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