दूर से राखी आने पर भी सूनी नहीं रहेगी भाइयों की कलाई, रविवार खुले रहेंगे पोस्ट आफिस

रक्षाबंधन पर बहनों द्वारा भेजी गई राखियां उनके भाइयों तक पहुंचें इसके लिए डाक विभाग ने उस दिन आफिस खुला रखने का फैसला किया है।

By Edited By: Publish:Thu, 23 Aug 2018 05:44 PM (IST) Updated:Sat, 25 Aug 2018 05:20 PM (IST)
दूर से राखी आने पर भी सूनी नहीं रहेगी भाइयों की कलाई, रविवार खुले रहेंगे पोस्ट आफिस
दूर से राखी आने पर भी सूनी नहीं रहेगी भाइयों की कलाई, रविवार खुले रहेंगे पोस्ट आफिस

जेएनएन, हिसार। रक्षाबंधन पर हर भाई अपनी कलाई पर बहनों द्वारा रक्षा सूत्र बंधवाना चाहता है। बहन भी इसके लिए लालायित रहती है। मगर जो बहनें रक्षाबंधन पर भाई के पास नहीं पहुंच पाती वो अपने भाई तक राखियां पोस्ट करके पहुंचाती हैं। मगर कई बार ऐसा होता है कि राखियां पहुंचने तक त्योहार ही बीत चुका होता है। मगर इस बार ऐसा नहीं होगा और रविवार को रक्षा बंधन होने के चलते छुट्टी के दिन भी डाकखाने खुले रहेंगे।

इसके लिए अधिकारिक तौर पर पत्र लिख निर्देश जारी कर दिए गए हैं। ऐसे में दूर से भेजे जाने वाली राखियां भी भाइयों तक पहुंच सकेंगी। रक्षा बंधन का महत्व हर किसी के लिए बेहद खास है। इस बार चार साल बाद ऐसा संयोग भी बना है कि रक्षा बंधन को पूरे दिन राखी बांधी जा सकती है। रक्षाबंधन के पुरानी मान्यता के आधार पर भी कई मायने हैं और इससे कई कहानियां भी जुड़ी हुई है।

धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व रक्षा बंधन भाई और बहन के रिश्ते की पहचान माना जाता है। राखी का धागा बाध बहन अपने भाई से अपनी रक्षा का प्रण लेती है। यूं तो भाई-बहनों के प्रेम और कर्तव्य की भूमिका किसी एक दिन की मोहताज नहीं, लेकिन रक्षाबंधन के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व की वजह से ही यह दिन इतना महत्वपूर्ण बना है।

महाभारत में रक्षाबंधन महाभारत में भी रक्षाबंधन के पर्व का उल्लेख है। जब युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा कि मैं सभी संकटों को कैसे पार कर सकता हूं, तब कृष्ण ने उनकी तथा उनकी सेना की रक्षा के लिए राखी का त्यौहार मनाने की सलाह दी थी। शिशुपाल का वध करते समय कृष्ण की तर्जनी में चोट आ गई तो द्रौपदी ने लहू रोकने के लिए अपनी साड़ी फाड़कर उनकी अंगुली पर बांध दी थी। यह भी श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था। कृष्ण ने चीरहरण के समय उनकी लाज बचाकर यह कर्ज चुकाया था।

हुमायूं ने निभाई राखी की लाज

चित्तौड़ की विधवा महारानी कर्मावती ने जब अपने राज्य पर संकट के बादल मंडराते देखे तो उन्होंने गुजरात के बहादुर शाह के खिलाफ मुगलसम्राट हुमायूं को राखी भेज मदद की गुहार लगाई और उस धागे का मान रखते हुए हुमायूं ने तुरंत अपनी सेना चित्तौड़ रवाना कर दी। इस धागे की मूल भावना को मुगल सम्राट ने न केवल समझा बल्कि उसका मान भी रखा।

सिकंदर ने अदा किया राखी का कर्ज

कहते हैं, सिकंदर की पत्‍‌नी ने अपने पति के हिंदू शत्रु पुरु को राखी बाध कर उसे अपना भाई बनाया था और युद्ध के समय सिकंदर को न मारने का वचन लिया था। पुरु ने युद्ध के दौरान हाथ में बंधी राखी का और अपनी बहन को दिए हुए वचन का सम्मान करते हुए सिकंदर को जीवन दान दिया था

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