जिंदगी जीना इन दिव्‍यांगों से सीखिए, कभी शर्ट का बटन लगाना नहीं जानते थे, अब साध रहे गोल्ड पर निशाना

2002 में रोहतक के बहू अकबरपुर स्थित मंदिर से तीन दिव्यांग बच्चों के साथ चेतनालय शुरू किया गया था। अब रोहतक व आसपास के जिलों के करीब 70 विशेष दिव्यांग बच्चे यहां प्रशिक्षित किए जा रहे हैं। तीन विशेष बच्चों ने विदेश में जाकर खेलों में इतिहास रचा है

By Manoj KumarEdited By: Publish:Wed, 11 Nov 2020 08:35 AM (IST) Updated:Wed, 11 Nov 2020 10:53 AM (IST)
जिंदगी जीना इन दिव्‍यांगों से सीखिए, कभी शर्ट का बटन लगाना नहीं जानते थे, अब साध रहे गोल्ड पर निशाना
ये दिव्‍यांग खुद को समाज की मुख्य धारा में जोड़ने और आत्मनिर्भर भारत के सपने को आत्मसात कर रहे हैं।

रोहतक [अरुण शर्मा] जो दिव्यांग बच्चे कुछ साल पहले तक शर्ट का बटन तक लगाना नहीं जानते थे अब वह खेलों में गोल्ड पर निशाना साध रहे हैं। खुद को समाज की मुख्य धारा में जोड़ने के लिए आत्मनिर्भर भारत के सपने को आत्मसात कर रहे हैं। हम बात कर रहे हैं रोहतक से महज 10 किमी दूर बहू अकबरपुर में नाबार्ड(राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक) की मदद से संचालित चेतनालय की। यहां फिलहाल 70 विशेष दिव्यांग बच्चों को प्रशिक्षित किया रहा है।

चेतनालालय के संयोजक सतीश कुमार ने बताया कि यहां तीन श्रेणियों के बच्चों को पढ़ाने का कार्य हो रहा है। मूक बधिर, डाउन सिंड्रोम और विशेष तरह के दिव्यांग बच्चे। साल 2002 में बहू अकबरपुर स्थित राधा-कृष्ण मंदिर में तीन विशेष बच्चों के साथ चेतनालय शुरू किया गया। अब यहां बहू अकबरपुर, मोखरा, निडाना, समर गोपालपुर, सिंहपुरा के अलावा निकट आसपास के जिलों के बच्चों को लेकर स्वजन आते हैं। फिलहाल यहां दो मंजिला इमारत में संस्थान संचालित है।

तमाम घरों की दीपावली यह विशेष बच्चे करते हैं रोशन

नाबार्ड के जिला विकास प्रबंधक (रोहतक-झज्जर) विजय राणा कहते हैं कि विशेष बच्चों को यहां विशेष पढ़ाई के साथ ही रोजगार का प्रशिक्षण भी दिया जाता है। प्रति माह पांच-दस हजार रुपये तक की मोमबत्तियां यह बच्चे तैयार करते हैं। 30 बेटियों को चूड़ियां तैयार करने का भी प्रशिक्षण दिया गया था और खुद काम भी करती हैं। अब इन्हीं बच्चों के हाथों से तैयार मोमबत्तियों से तमाम घरों में दीपावली रोशन होती है।

इन तीन बच्चों ने स्पेशल ओलंपिक में कमाया दुनिया में नाम

विजय राणा ने बताया कि बहू अकबरपुर के तीन बच्चों ने स्पेशल ओलंपिक में बेहतर प्रदर्शन करके दुनिया में नाम कमाया। 2013 में सोनू ने आस्ट्रेलिया फुटबाल में शिरकत की और पांचवें स्थान पर रहे। 2015 में सुनील ने अमेरिका में आयोजित हुए स्पेशल ओलंपिक में फुटबाल टीम में खेलकर ब्रांज मेडल जीता। 2017 में रितु ने आस्ट्रिया में आयोजित फ्लोर हॉकी में शिरकत की और पांचवें स्थान पर रहीं। 2019 में सोनू ने आबूधाबी में आयोजित स्पेशल ओलंपिक में जूडो में गोल्ड मेडल जीता। इन सभी बच्चों को सरकार ने पांच-पांच लाख रुपये की पुरस्कार राशि दी। सोनू को नौकरी का भी आश्वासन मिला है।

 चार श्रेणियों में बांटी क्लास, पांच श्रेणियों में प्रशिक्षण

यहां उम्र के बजाय सीखने, बोलने, समझने के आधार पर क्लास में प्रवेश दिया जाता है। प्री-प्राइमरी, प्राइमरी, सेकंडरी, वोकेशनल(व्यावसायिक प्रशिक्षण) श्रेणियों में बांटा गया है। यहां एकेडेमिक प्रशिक्षण में पढ़ना-लिखना सिखाया जाता है। कुछ साल के अंदर ही बच्चे नाम, फोन नंबर लिखने-पढ़ने के अलावा अखबार तक पढ़ने में सक्षम हो गए। एएलडी यानी रोजमर्रा की जिंदगी में जरूरत के हिसाब से प्रशिक्षण जैसे खाना, नाखून काटना, कुकिंग, डांस, सफाई आदि सिखाया जाता है। स्पीच थेरेपी, थेरेपी में व्यवसायिक चिकित्सा, फिजियोथेरेपी व खेलों का नियमित प्रशिक्षण दिया जाता है।

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