12 साल सीएम रहे चौ. भजनलाल की कर्मभूमि आज भी गांव, 51 सालों से कायम वर्चस्‍व

9 बार यहां से भजनलाल एक बार उनकी पत्‍नी जसमा देवी दो बार उनके पुत्र कुलदीप बि‍श्‍नोई एक बार उनकी पुत्रवधू रेणुका ब‍िश्‍नोई व‍िधायक रहे हैं। जानें कैसा रहा भजनलाल का राजनीतिक सफर

By manoj kumarEdited By: Publish:Thu, 11 Apr 2019 04:16 PM (IST) Updated:Fri, 12 Apr 2019 11:21 AM (IST)
12 साल सीएम रहे चौ. भजनलाल की कर्मभूमि आज भी गांव, 51 सालों से कायम वर्चस्‍व
12 साल सीएम रहे चौ. भजनलाल की कर्मभूमि आज भी गांव, 51 सालों से कायम वर्चस्‍व

हिसार [गौरव तंवर] सैफई। आदमपुर मंडी। एक उत्तरप्रदेश के मैनपुरी संसदीय क्षेत्र में वहां के पूर्व मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री रहे मुलायम सिंह की तपोभूमि तो दूसरा हरियाणा के मशहूर तीन लालों में से एक और सूबे के सबसे अधिक समय तक मुख्यमंत्री रहे भजनलाल की कर्मभूमि। दोनों में बड़ी समानताएं। दोनों जगह सुविधाएं ऐसी कि इनके आगे महानगर भी पानी मांगते नजर आएं। सैफई जहां एशिया का सबसे विकसित गांव वहीं आदमपुर मंंडी में महाद्वीप की सबसे बड़ी ग्वार मंडी। कॉटन मिलों और एजुकेशन का हब। लेकिन सबसे बड़ी समानता इतने हाईटेक होने के बावजूद दोनों आज भी गांव ही हैं।

हरियाणा के संदर्भ में बात करें तो कितनी ही सरकारें आईं और गईं, भजन का अभेद दुर्ग तोडऩे को प्रलोभन दिए गए मगर ग्रामीण गांव से नगर पालिका बनाने को कतई तैयार नहीं हुए। उनका आज भी मानना है कि ग्राम पंचायत को अपग्रेड करने से भाईचारा टूटेगा। दूसरा सबसे बड़ी वजह पालिका बनने पर कई तरह के टैक्स देने होंगे और इसकी सीधी मार उन्हीं पर पड़ेगी। क्षेत्र का विकास भी प्रभावित होगा। वजह, पंचायतों को विकास के लिए पैसा सरकार देतीे है जबकि नगर पालिका टैक्‍स वसूल करके क्षेत्र का विकास करवाती है। इसलिए ग्रामीण दो टूक कहते हैं कि इस गांव को गांव ही रहने दो।

फ‍िलवक्‍त लोकसभा चुनाव का ब‍िगुल बज चुका है। हाॅॅॅट सीट ह‍िसार संसदीय सीट से कांग्रेस हाईकमान भजनलाल के पुत्र कुलदीप ब‍िश्‍नोई को चुनाव लड़ाने के पक्ष में है तो कुलदीप भजन पर‍िवार की तीसरी पीढ़ी यानी अपने बेटे भव्‍य ब‍िश्‍नोई को यहां से बतौर प्रत्‍याशी उतारने की कवायद में हैं। भजनलाल, कुलदीप ब‍िश्‍नोई के बाद क्‍या उनकी तीसरी पीढ़ी संसद पहुंचेगी, ये तो वक्‍त ही बताएगा। मगर ये तय है कि‍ भजनलाल परिवार का एक सदस्‍य चुनाव मैदान में ताल ठोंकेगा।

आइए चलते हैं गांव आदमपुर

सुबह के साढ़े 11 बजे हैं। स्थान आदमपुर अनाज मंडी। दक्षिणी छोर से अंदर घुसते ही सरसों की ढेरियों से सामना होता है। दूर-दूर तक सरसों ही सरसों। उसकी साफ-सफाई के साथ नाप-तौल का काम चल रहा है। दाईं ओर घूमे तो नजर पड़ी दुकान नंबर 107 पर। ऊपर एक तरफ लिखा है भजनलाल तो दूसरी तरफ कुलदीप सिंह यानी एक तरफ पूर्व सीएम का नाम तो दूसरी तरफ उनके बेटे और आदमपुर मंडी से वर्तमान विधायक का नाम। अदंर घुसेे तो पूरे कमरे में बिछे गद्दे और उस पर जगमगाती सफेद चादरें नजर आईं।
कोने में एक तरफ असली बही खाते रखे थे तो वहां गद्दों पर बैठे 9-10 युवाओं के हाथों में थी 'लोकतंत्र की बही' यानी वोटर लिस्ट।

समय के पन्नों की तरह वोटर लिस्ट के पेज जोड़-घटा के गणित के साथ आगे सरक रहे थे। पूछने पर वहां बैठे शख्स बोले- मेरा नाम भूप सिंह है और यहां मुनीम हूं। चुनावी तैयारी चल रही है। उसी में व्यस्त हैं। हिसार लोकसभा क्षेत्र से कुलदीप चुनाव लड़ेंगे या फिर उनके बेटे भव्य।  
हमारी सबसे बड़ी जिज्ञासा थी कि क्या सूबे पर सबसे अधिक राज करने वाले भजनलाल ने यहीं से आढ़त का काम शुरू किया था तो भूप बोले-ये नई अनाजमंडी हैं। वे यहां भी बैठते थेे मगर असली आढ़त की दुकान पुराने बाजार में थी।

खैर सिलसिला शुरू हुआ कि इतना सब होने के बावजूद आदमपुर मंडी गांव क्यों, तो वहां बैठे मनोहर लाल गोदारा (74) बोले - इस गांव में हर सुविधा है। दो पंचायतें हैं, रेलवे लाइनपार जवाहर नगर की अलग पंचायत है। चौधरी साहब की सोच थी कि यदि नगर पालिका बनी तो टैक्स लगेंगे और इसकी मार यहां के लोगों पर ही पड़ेगी, दूसरे भाईचारा भी खराब होगा। इसलिए यहां के बाशिंदे आज भी चाहते हैं कि आदमपुर मंडी गांव ही रहे।
भजनलाल की आढ़त की दुकान से कुछ दूर चले तो मुलाकात हुई कृष्णलाल रार से। बातों का सिलसिला शुरू हुआ तो बोले चौधरी भजनलाल की दूरगामी सोच थी। एजूकेशन व इंफ्रास्ट्रक्चर सेक्टर उन्होंने यहां बहुत मजबूत कर दिया। यहां सब चीजें हैं। अब गांव रहे या शहर इससे क्या फर्क पड़ता है?


अगली कड़ी में हम पहुंचे बाजार। कहने को गांव मगर यहां का बाजार किसी शहर से कम नहीं था। सूई से लेकर सोने तक आप कुछ भी लीजिए। वहां मुलाकात हुई करियाने की दुकान पर बैठे भजनलाल के साथी रहे उम्र के आठ दशक पार कर चुके मूलचंद जैन से। बोले- भजना का कोई सानी नहीं। वे यहां जो काम कर गए, कोई कर नहीं सकता।

आदमपुर मंडी गांव ही ठीक है, सब कुछ तो है यहां। तभी पास खड़े प्रिंस बैन बोले- यहां 1985 में चौधरी साहब के कार्यकाल में पॉलटेक्निक कॉलेज खुल गया था। उस समय प्रदेश में केवल नीलोखड़ी, अंबाला और सिरसा में ही तीन अन्य कॉलेज थे। गांव में पॉलटेक्निक बड़ी बात है। आदमपुर एजूकेशन का हब है।

उसके बाद हम पहुंचे मॉडल टाउन, कहने को गांव मगर ये पॉश एरिया, बड़ी-बड़ी कोठियां। उन्हीं में से एक कोठी में मुलाकात हुई 85 वर्षीय पंडित शिवदयाल से। बोले- अपने तीसरे कार्यकाल में भजनलाल 1991 से 1996 तक मुख्यमंत्री रहे। भजन के कार्यकाल में तो खूब विकास हुआ मगर उसके बाद से विकास की गति को यहां ब्रेक लग गए।
इसके बाद मुलाकात हुई सुभाष अग्रवाल से। बोले-कभी यहां 40 कॉटन मिलें होती थींं। लेकिन अब थोड़ी कम हुई हैं। मगर आज भी ये कॉटन मिल का हब है। हालांकि पिछले करीब 20-22 साल से सुविधाएं न मिलने से कुछ उद्योग पलायन कर गए।

आदमपुर मंडी में ये-ये सुविधाएं
गवर्नमेंट पॉलिटेक्निक कॉलेज
फिरोज गांधी मेमोरियल पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज
गुरु द्रोणाचार्य गर्ल्‍स कॉलेज
जेबीटी कॉलेज
फार्मेसी कॉलेज
बस स्टैंड
रेलवे स्टेशन
आइटीआइ
कॉटन मंडी, ग्वार मंडी
कॉटन मिलें, ग्वार मिलें  

एशिया की सबसे पहली और बड़ी ग्वार मंडी
आढ़ती किशोरीलाल, सुभाष, प्रिंस ने दावा किया कि आदमपुर मंडी में एशिया की सबसे पहली ग्वार मंडी बनी। यही नहीं, यह महाद्वीप की सबसे बड़ी ग्वार मंडी है। यहां का ग्वार से बना गम विदेशों में निर्यात होता है। हालांकि गम पर भारी टैक्स के चलते अब निर्यात कुछ कम हो गया है। दूसरे विदेशों से मांग भी घटी है। अमेरिका बड़ा खरीददार है।

मंडी का टर्न ओवर जिला मुख्यालय की मंडी से दस गुणा ज्यादा
आंकड़ा हैरतअंगेज है। मगर है सोलह आने सच। आदमपुर मंडी का सालाना टर्न ओवर हिसार अनाज मंडी से दस गुणा ज्यादा है। हिसार मार्केट कमेटी के सचिव सुल्तान सिंह बताते हैं कि हिसार में तो बचा-कुचा अनाज ही आता है। यहां आदमपुर मंडी की बनिस्पत सिर्फ दसवें हिस्से का व्यापार होता है।  

एक नजर में गांव
कुल आबादी : करीब 30 हजार
कुल वोट आदमपुर और आदमपुर मंडी : 16 हजार 
विधानसभा क्षेत्र : आदमपुर मंडी
संसदीय क्षेत्र : हिसार
 

1968 के बाद से आदमपुर भजन का अभेद क‍िला

जैसे ही राजनीत‍ि के चाणक्‍य' , राजनीत‍ि के पीएचडी और 'आया राम-गया राम' की राजनीति के जनक का ज‍िक्र होता है तो जुबां पर सीधा स्‍वर्गीय चौधरी भजनलाल का नाम आ जाता है। 1980 में उनका तत्‍कालीन जनता पार्टी के 40 के 40 व‍िधायकों काेे कांग्रेस में लेकर चले जाने का प्रकरण हो या 1991 से लेकर 1996 के बीच केंद्र में कांग्रेस की पीवी नरसिम्‍हा राव की अल्‍पमत सरकार का अपना पूरा कार्यकाल पूरा करना। इनके पीछे भजन का कुशल 'राजनीतिक कौशल' ही था। शुरू में भजनलाल ओढ़ने (महिलाओं के पहनने का वस्‍त्र) बेचने का काम करते थे। उसके बाद उन्‍होंने घी का काम किया। दोस्‍त व धर्म भाई पोकरमल के साथ मिलकर आढ़त की दुकान की। उसके बाद में पंच बने, राजनीति में कदम रखा। फ‍िर ब्‍लॉक सम‍िति चेयरमैन बने।

धीरे-धीरे बढ़ते-बढ़ते व‍िधायक, मंत्री, सीएम, केंद्रीय मंत्री तक जा पहुंचे। सत्‍ता के श‍िखर को छुआ। आदमपुर व‍िधानसभा क्षेेेत्र उनका अभेद दुर्ग है। देवीलाल पर‍िवार हो या बंंसीलाल परिवार, दोनों ने अपने-अपने हलकों में कभी न कभी मात खाई मगर भजनलाल पर‍िवार ऐसा है क‍ि आदमपुर हलके में उसने कभी मात नहीं खाई। 1967 से अब तक यहां 14 चुनाव हुए हैं। 1968 में पहली बार भजन विधायक का चुनाव लड़े और विजयी रहे। इस बाद से यहां भजन परिवार का एक छत्र राज है।

9 बार यहां से भजनलाल, एक बार उनकी पत्‍नी जसमा देवी, दो बार उनके पुत्र कुलदीप बि‍श्‍नोई, एक बार उनकी पुत्रवधू रेणुका ब‍िश्‍नोई व‍िधायक रह चुके हैं। भजनलाल ने सूबे पर 11 साल, 9 मास और 22 दिन शासन किया।  वे 29 जून 1979 से 22 जनवरी 1980, 22 जनवरी 1980 से 5 जुलाई 1985 , 23 जुलाई 1991 से 9 मई 1996 तक प्रदेश के मुख्‍यमंत्री रहे।

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