बबीता फोगाट बोलीं- पापा सुबह 3 बजे कराते थे प्रैक्टिस, हमने तंग हो दे दिया था जमाल घोटा
वह बताती हैं कि वह छोटी थीं तब उन्हें इन बातों के प्रभाव का मतलब भी नहीं पता था मगर आज जब इस मुकाम पर पहुंचने के बाद वह पीछे देखती हैं तो हंसी आती है।
हिसार, जेएनएन। दैनिक जागरण के फिल्म फेस्टीवल के आगाज पर दंगल गर्ल बबीता फोगाट ने अपने जीवन से जुड़े कई किस्सों को लोगों के साथ साझा किया। उन्होंने युवाओं को प्रेरित करने योग्य ऐसी कई बातें साझा की। वे बताती हैं कि अगर जीवन में उन्हें अपनाया जाए तो किसी भी बड़े टारगेट को पाया जा सकता है।
जो दंगल फिल्म में भी नहीं दिखाया गया ऐसे पहलू के बारे में उन्होंने हास्य के रूप में बचपन को एक किस्सा भी साझा किया कि जब उनके पिता रोज सुबह 3 बजे प्रैक्टिस कराते थे तो एक दिन तंग आकर उन्होंने खाने में जमाल घोटा मिलाकर दे दिया, जिससे उनके पिता के पेट में दिक्कत हो गईं। वह बताती हैं कि वह छोटी थीं, तब उन्हें इन बातों के प्रभाव का मतलब भी नहीं पता था, मगर आज जब इस मुकाम पर पहुंचने के बाद वह पीछे देखती हैं तो हंसी आती है। हालांकि उन्होंने युवाओं से यह भी कहा कि आप कभी इस तरीके को न अपनाना।
1- समाज की सोच का आपने किस तरह से सामान किया
बबीता- जब हमने कुश्ती शुरू की तब हमें कुछ पता नहीं था, 8 वर्ष की उम्र रही होगी। उस समय में लड़कियों के लिए आगे आना बहुत मुश्किल था। तब हरियाणा में लड़कियां घर से बाहर ही नहीं आने दी जाती थीं। इस का श्रेय मैं मेरे पिता को दूंगी, जिन्होंने उस समय हमें आगे आने का मौका दिया, और वही मौका हमें यहां तक लेकर आया। एक किस्सा याद आता है हम एक दंगल में गए। वहां एक व्यक्ति ने हमने कहा कि कौन से शास्त्र में लिखा है लड़कियां दंगल करती हैं, तब हम छोटे थे तो मन में सोचते थे कि यह किस शास्त्र में लिखा है कि लड़कियां दंगल नहीं लड़ सकती हैं। धीरे-धीरे जब हम आगे बढ़ तो गांव की दूसरी 8 से 10 लड़कियों ने हमारे साथ कुश्ती की प्रेक्टिस शुरू की। मगर उनके परिजनों ने समाजिक तानों के डर से एक-एक कर उन्हें घर बैठा लिया।
2- आपके माता-पिता ने रुढि़वादि सोच को कैसे दरकिनार किया
बबीता- मेरे पिता बहुत ही जिद्दी इंसान हैं। उन्होंने एक बार जो करने की ठान ली बस करके ही दम लेते हैं। वह ऐसे थे कि कई बार मेरी दादी भी कहती कि लड़कियों को कुछ पढ़ाई करा दे कम से कम डाक्टर इंजीनियर बन जाएंगी, लेकिन पिता कहते थे कि मुझे मेरे बेटियों को ऐसा बनाना है कि एक दिन वह कहीं बड़े मंच पर बैठकर भाषण दें। जब हम 1 वर्ष के थे, तब से वह यह सपना दे रखा था। मेरे माता पिता की मेहनत का ही फल है कि आज हम बहनें इस मुकाम पर पहुंची हैं। समाज की सोच को एक तरफ रखकर उन्होंने हमें आगे बढ़ाया। उन्होंने समाज की न सुनकर अपने दिन की सुनी। इसी लिए मैं कहती हैं कि अभिभावकों अपने बच्चों के मामले में दिल की सुननी चाहिए।
3- आप गांव में पली बढ़ीं मगर शहर के जीवन में आप किस प्रकार ढल पाईं
बबीता- शहर या गांव नहीं कहूंगी, मगर हर काम हर माहौल में हमारे माताञपिता ने हमें बचपन से ही परिस्थिति के हिसाब से ढलना सिखाया है। आप किसी भी मुसीबत में फंसे हो आपको लडऩा आना चाहिए। जब भी हम घर से बाहर जाते थे, मेरी मां कहती थी कि बेटी पहले किसी को छेडऩा नहीं और कोई छेड़े तो उसे छोडऩा नहीं।
4- आपकी मेहनत में मां का क्या योगदान है
बबीता- पिता के बराबर ही हमारे इस मुकाम में मां का भी योगदान है। प्रैक्टिस के दिनों में ही नहीं बल्कि आज भी मां सुबह 3 बजे उठना अपने सभी काम करने के साथ हमारी तैयारी भी कराना उनके रोजमर्रा के कार्यों में शामिल रहा। कई बार थक जाते तो प्रैक्टिस से बचने के लिए तरह तरह के बहाने खोजते तो मां पिता को सच्चाई बताकर हमें लाइन पर लाने का भी काम करती।
5- जीवन में जीत हार लगी रहती है, आम दोनों में कैसे बैलेंस करती हैं
बबीता- जीत-हार जीवन का एक अहम हिस्सा है। मैंने कभी भी हार को अपने दिमाग पर हावी नहीं होने दिया। अगर मैं हार भी जाती तो मन में सोचती कि इससे भी कुछ सीखने को मिला है। अगर आपको आगे बढऩा है तो जीत को सिर पर नहीं चढ़ाना है और हार को कभी गले नहीं लगाना है।
6- आपको यहां देखने से लग रहा है कि आप दंगल में कुछ और होती हैं और मंच पर कुछ और ही लग रही हैं
बबीता- देखिए दंगल में आपको एग्रेसिव बनना पड़ता है और बनने से ज्यादा तो दिखाना भी पड़ता है क्योंकि अगर आप सामान्य व्यवहार करेंगे तो दंगल में आपके सामने वाला आपको कमजोर समझेगा। हमारे अंदर जीत और जुनून का जज्बा हरदम रहना चाहिए। मेरे दिमाग में खेल के समय यही बातें ध्यान रहती हैं।