रोजगार की मार, गांव जाने के लिए तैयार

कोरोना संक्रमण के चलते किए गए लॉकडाउन से पहले सब ठीक था। कोई अकेले ही गृहस्थी की गाड़ी चला रहा था तो किसी की पत्नी व बच्चे भी काम पर लगे थे।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 28 May 2020 05:32 PM (IST) Updated:Thu, 28 May 2020 07:53 PM (IST)
रोजगार की मार, गांव जाने के लिए तैयार
रोजगार की मार, गांव जाने के लिए तैयार

सत्येंद्र सिंह, गुरुग्राम

कोरोना संक्रमण के चलते लागू किए गए लॉकडाउन से पहले सब ठीक था। कोई अकेले ही गृहस्थी की गाड़ी चला रहा था तो किसी की पत्नी व बच्चे भी काम पर लगे थे। काम के चलते दिन भर की थकान से सुकून की नींद आती थी। मगर कोरोनाकाल ने सब कुछ बदल दिया। जिस कंपनी, सोसायटी या घर में काम करने जाते थे वहां गेट पर नो-एंट्री हो गई। ऐसे में दो महीने तक तो इस उम्मीद में जमापूंजी से परिवार को पाला कि जल्द राहत मिल जाएगी।

मगर ऐसा हुआ नहीं और लॉकडाउन-4 लगते ही उम्मीद जाती रही और घर में राशन नहीं बचा। ऊपर से सरकारी सहायता भी ठीक तरह से नहीं मिली तो निकल पड़े गांव जाने के लिए साधन की तलाश में। बड़ी जद्दोजहद के बाद श्रमिक ट्रेन में रजिस्ट्रेशन हुआ तो शाम को चलते वाली ट्रेन के लिए दो बजे दोपहर में ही ताऊ देवीलाल स्टेडियम पहुंच गए।

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मैं, एक आइटी कंपनी में हेल्पर था। कंपनी प्रबंधन ने जून के बाद ही आने के लिए कहा। तब तक रहें कहां क्योंकि किराए के कमरे का दो माह का भुगतान मकान मालिक ने करा लिया। अब जमापूंजी भी नहीं है। ऐसे में गांव जाना ही बेहतर विकल्प है। चार दिन चक्कर काटने के बाद रेल का टिकट मिला है।

मुजाबिन हक, निवासी मालदा, पश्चिम बंगाल

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एक सोसायटी में काम करता था। वहां से मना कर दिया गया। किराया चुकाने के लिए भी रकम नहीं रही। दो माह का किराया तो किसी तरह से चुकता किया। सरकारी सहायता के नाम पर केवल फूड पैक मिल जाते थे। घर जाने के लिए एक माह से प्रयास कर रहा था। अब जाकर आज के लिए टिकट मिली।

लुत्फर मियां, निवासी मालदा, पश्चिम बंगाल

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काम-धंधा रहा नहीं। प्रशासन की ओर से भी कोई सहायता नहीं मिली। जिस मुहल्ले में रहती थी वहां के लोगों ने जरूरत मदद की। गांव जाने के लिए एक माह से प्रयास कर रही थी। एक सज्जन की मदद से रेल टिकट के लिए रजिस्ट्रेशन हुआ। किसी तरह गांव में रह लूंगी।

रोकेला, निवासी जिला मालदा, पश्चिम बंगाल रोजगार के लिए यहां आए थे। अब रोजगार ही नहीं रहा तो कब तक मकान मालिक को किराया इधर-उधर से लेकर देते रहेंगे। सरकारी सहायता भी ठीक से नहीं मिल रही। जब हालात सहीं होंगे तो लौटकर आ जाएंगे।

कोहिनूर, निवासी पुरुलिया, पश्चिम बंगाल

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