अरावली के स्वरूप को तराशने की कोशिश

पूनम, गुड़गांव : अरावली के मूल पेड़ पौधों से सुंदर बनने लगा है बॉयोडायवर्सिटी पार्क । लगभग 350 एकड़ के

By Edited By: Publish:Tue, 14 Jul 2015 03:54 PM (IST) Updated:Tue, 14 Jul 2015 03:54 PM (IST)
अरावली के स्वरूप को तराशने की कोशिश

पूनम, गुड़गांव : अरावली के मूल पेड़ पौधों से सुंदर बनने लगा है बॉयोडायवर्सिटी पार्क । लगभग 350 एकड़ के बॉयोडायवर्सिटी पार्क को एक ऐसी जगह में बदला गया है जहा भागदौड़ की जिंदगी में सुकून पाया जा सके। प्रकृति के बीच पुराने जमाने के सुकून भरे पल को फिर से जिया जा सके। सुंदर फूलों की खुशबू, साइकिल ट्रैक पर साइकिलिंग या टहलने का काम हो या सास्कृतिक कार्यक्रमों का आनंद या खूबसूरत तितलियों की अठखेलिया देखनी हो तो लोग बॉयोडायवर्सिटी पार्क जाते हैं। अरावली से सटे इस अनगढ़ सौंदर्य को तराशने का काम आइएम गुड़गांव कर रहा है। अरावली बॉयोडायवर्सिटी पार्क की शुरुआत वर्ष 2010 में पौधरोपण के साथ हुई। तत्कालीन निगमायुक्त राजेश खुल्लर ने आइएम गुड़गांव संगठन को इसमें पेड़- पौधे लगाने की जिम्मेदारी सौंपी। फिर साइकिल ट्रैक, वॉकिंग ट्रैक, एम्पी थियेटर बना। पेड़-पौधों के सौंदर्य के बीच इस विविधता वाले पार्क में गुडगाव महोत्सव शुरू हुआ जहा कई बड़े गायकों, कलाकारों ने संस्कृति और संगीत की खुशबू का रंग भरा।

पेड़-पौधे लगाने पर जोर

आइएम गुड़गांव टीम के सदस्य पर्यावरण विशेषज्ञ विजय धसमान बताते हैं कि हम लोगों ने इस बात का अध्ययन किया कि किस तरह के पौधे लगाए जाएं। वैसे पेड़ पौधे जो सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखला अरावली की पहाड़ियों में प्राकृतिक रूप से मिलते रहे हैं। बॉयोडायवर्सिटी पार्क के भीतर ऐसी दो नर्सरी हम लोगों ने बनाई है। ऐसे पेड़ों को लगाया गया है जो पुराने समय से अरावली का हिस्सा रहे हैं। जैसे धौ, धाक सलई, कुल्लू कुमच, गुग्गल, बरना, दूधी, खिरनी काला इंद्रजौ, इंद्र जौ, बिस्तेंदु, मिश्वाक, वज्रदंती, गुड़मार बेल, अश्वगंधा, शतावरी बेल, सर्पगंधा जैसे औषधीय महत्व के पौधे भी शामिल हैं। इनमें से कई ऐसे पेड़ हैं जो अब अरावली में नहीं मिलते। हम लोग देहरादून, राजस्थान मध्य भारत के जंगलों से इनके बीज एकत्र किए। इसके लिए शोध में भी काफी समय लगा। कई जगह से एकत्र कर लाए गए बीजों को नर्सरी में उगाकर लगा रहे हैं। कई ऐसे पेड़ जिनका रोगों के इलाज के प्रयोग होता है। सलई को कैंसर में प्रयोग किया जाता है। सलई और गुग्गल की लकड़ियों को हवन धूप के तौर पर पूजा में प्रयोग किया जाता है। हम लोगों ने खनन के कारण खाली हुई जमीन को पेड़ पौधों से भर दिया है। अब वन विभाग और विभिन्न राज्यों के शोध करने वाले यहा आने लगे हैं। पक्षियों की करीब 180 किस्में इस पार्क में देखी गई हैं। नील गाय, खरगोश, मोर, सियार, गोह, कई तरह की बिल्लिया और अन्य जीव जंतु भी इस पार्क में देखे जाते हैं।

प्रकृति बचाने की भी है कोशिश

वर्ष 2010 से शुरू हुए इस सफर में कई सफलता मिली है। नगर निगम की जमीन पर 350 एकड़ के इस जैव विविधता वाले पार्क में पौधरोपण कर अरावली के पुराने स्वरूप को जीवंत करने की कोशिश है। इसमें करीब 20 लाख लीटर पानी प्रति वर्ष संरक्षित हो रहा है। प्रकृति को बचाने की जगह यह बना है। 130 किस्मों के पौधे 145 हेक्टेयर के पार्क एरिया में लगाए गए हैं। मानसून में लोग यहा आकर पौधरोपण करते हैं।

- लतिका ठुकराल, आइएम गुड़गांव

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