बीबीएमबी को पक्षकारों की सूची से हटाने का राजस्थान ने किया विरोध

-राजस्थान-हरियाणा जल विवाद -भाखड़ा व्यास मैनेजमेंट बोर्ड ने की है स्वयं को पक्षकारों की सूची से हटा

By Edited By: Publish:Wed, 22 Oct 2014 07:56 PM (IST) Updated:Wed, 22 Oct 2014 07:56 PM (IST)
बीबीएमबी को पक्षकारों की सूची से हटाने का राजस्थान ने किया विरोध

-राजस्थान-हरियाणा जल विवाद

-भाखड़ा व्यास मैनेजमेंट बोर्ड ने की है स्वयं को पक्षकारों की सूची से हटाने की मांग

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माला दीक्षित, नई दिल्ली :

राजस्थान सरकार ने हरियाणा-पंजाब के साथ चल रहे जल विवाद मामले में भाखड़ा व्यास मैनेजमेंट बोर्ड (बीबीएमबी) को मुकदमे में पक्षकार की सूची से हटाने का विरोध किया है। राजस्थान का कहना है कि बोर्ड मामले में महत्वपूर्ण पक्षकार है और उसे नहीं हटाया जा सकता। बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर स्वयं को पक्षकार की सूची से हटाने का अनुरोध किया है। अगली सुनवाई 27 अक्टूबर को होगी।

यह मामला राजस्थान, हरियाणा और पंजाब के बीच जल बंटवारे का है। राजस्थान ने इन राज्यों के खिलाफ मुकदमा दाखिल कर भाखड़ा मुख्य लाइन से 0.17 मिलियन एकड़ फिट (एमएएस) पानी दिलाए जाने की मांग की है। इस मुकदमे में राजस्थान ने हरियाणा, पंजाब और केंद्र सरकार के अलावा भाखड़ा व्यास मैनेजमेंट बोर्ड को भी पक्षकार बनाया है। बोर्ड ने पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर उसे पक्षकार सूची से हटाने का अनुरोध किया था। इस अर्जी पर कोर्ट ने राजस्थान व अन्य जवाब मांगा था।

राजस्थान ने अर्जी का विरोध किया है। उसका कहना है कि जल बंटवारा विवाद में बोर्ड एक महत्वपूर्ण पक्षकार है और उसे पक्षकारों की सूची से नहीं हटाया जा सकता। भाखड़ा व्यास मैनेजमेंट बोर्ड एक विधायी संस्था है और भारत सरकार ने पंजाब रिआर्गेनाइजेशन एक्ट के तहत इसका गठन किया था। बीबीएमबी का काम भाखड़ा नंगल और व्यास प्रोजेक्ट के तहत पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली और चंडीगढ़ के बीच जल व बिजली बंटवारे की आपूर्ति नियमित करना है। इसलिए बोर्ड द्वारा किया जा रहा काम इस विवाद के मूल तक जाता है। इस मामले में राजस्थान अपनी सिद्धमुख और नोहर परियोजनाओं के लिए भाखड़ा मुख्य लाइन से पानी मांग रहा है, जबकि हरियाणा इसका विरोध कर रहा है। उधर पंजाब ने वकील जगजीत सिंह छाबड़ा के जरिये अपना जवाब दाखिल कर दिया है। पंजाब का कहना है कि 31 दिसंबर, 1981 के समझौते के मुताबिक राजस्थान का जितना हिस्सा बनता है, राजस्थान उतना पानी ले सकता है और उसमें पंजाब को कोई एतराज नहीं है।

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