प्रापर्टी टैक्स के आंकड़े वेबसाइट से गायब

By Edited By: Publish:Mon, 01 Sep 2014 06:44 PM (IST) Updated:Mon, 01 Sep 2014 06:44 PM (IST)
प्रापर्टी टैक्स के आंकड़े वेबसाइट से गायब

जागरण संवाददाता, गुड़गांव : जून 2008 में नगर निगम अस्तित्व में आया लेकिन अभी तक उसकी वेबसाइट राम भरोसे ही चल रही है। यहां तक उसने प्रापर्टी टैक्स संबंधित आंकड़े ही गायब हैं। आनलाइन काम करने में भी खासी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। वेबसाइट की विसंगतियां दूर करने के बजाए निगम अधिकारी नागरिक सुविधा केंद्र का काम देखने वाली पुरानी एजेंसी पर ठिकरा फोड़ने में लगे हैं। दूसरी ओर टैक्स बिल की तमाम समस्याओं को लेकर शहर के लोग हर रोज परेशान हो रहे हैं।

चुनाव सिर पर हैं और नगर निगम ने चार साल के प्रापर्टी टैक्स बिल भेजना शुरू कर दिया। साथ ही इस बिल में तमाम प्रकार की गड़बड़ी के अलावा निगम की नागरिक सुविधा केंद्र पर भी टैक्स संबंधित डाटा नहीं है। यहां तक निगम की वेबसाइट से टैक्स संबंधित सारा डाटा ही गायब है। वर्तमान में निगम ने जो पचास हजार बिल का वितरण किया मात्र उसकी डिटेल निगम की वेबसाइट में है। जबकि 70 हजार लोगों ने बिल में तमाम प्रकार की गड़बड़ियों को लेकर आपत्तियां दर्ज कराई थी। इनमें से भी निगम के पास करीब 20-25 हजार का ही रिकार्ड है। बाकी आपत्तियां कहां गई उसका कहीं कुछ पता नहीं चल रहा।

एजेंसी की कार्यशैली पर सवाल

निगम अधिकारी वेबसाइट में पुराने टैक्स की जानकारी व डाटा गायब होने के लिए नागरिक सुविधा केंद्र का संचालन करने वाली पुरानी एजेंसी को दोषी बता रहे हैं। यदि उसकी गलती है, तो वर्तमान एजेंसी व आईटी मैनेजर ने पुरानी एजेंसी से बिना डाटा आदि लिए बिना कैसे उसे जाने दिया। इसके लिए यदि पुरानी एजेंसी दोषी है, तो उसके साथ क्षेत्रीय कराधान अधिकारी, आईटी मैनेजर एवं वर्तमान एजेंसी की कार्यप्रणाली भी शंका के दायरे में है।

पैसे की बर्बादी पर उठ रहे सवाल

नागरिक सुविधा केंद्र संचालन के लिए निगम पुरानी एजेंसी को हर माह सात-आठ लाख रुपये दिए जाते थे। केंद्र पर सिटीजन चार्टर संबंधित कार्य होते हैं। निगम ने पुरानी एजेंसी द्वारा टैक्स संबंधित कार्य का रिकार्ड अपलोड नहीं करने सहित अन्य प्रकार की गड़बड़ी बताकर उसे बाय-बाय कर दिया। नई एजेंसी को करीब पांच लाख रुपये प्रति माह के हिसाब से काम दे दिया। जबकि काम करने वाले कर्मियों को वेतन देने से लेकर अन्य दूसरे कार्य का खर्चा खुद निगम उठा रहा है। बावजूद न तो वेबसाइट ठीक से चल रही न ही उसमें टैक्स संबंधित पुराने डाटा हैं। ऐसे में सवाल उठ रहा कि आखिरकार पांच लाख रुपये किस बात के लिए निगम खजाने से दिए जा रहे हैं।

पुराने अधिकारी फिर पहुंचे निगम

लगता है कि तत्कालीन निगमायुक्त डा. प्रवीण कुमार के निगम से स्थानांतरण के बाद रिलीव होते ही पुराने अधिकारियों का निगम में पहुंचने का दौर जारी है। टैक्स ब्रांच में टैक्स सुपरिटेंडेंट प्रशांत पराशर के अलावा क्षेत्रीय कराधान अधिकारी लक्ष्मण भी वापिस पहुंच गए हैं। जबकि इन पर कई प्रकार के आरोप व शिकवा-शिकायत थी। बावजूद इनके दोबारा यहां आने से निगम की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान लग सकते हैं।

माफ टैक्स कैसे ले सकता है निगम

निगम ने चार साल के जो बिल भेजे उसमें वर्ष 2008-09 एवं 2009-10 के दौरान माफ बिल का पैसा सरचार्ज कर दिया गया। इसको लेकर लोग परेशान हैं और निगमायुक्त को ज्ञापन भी सौंपा है। निगमायुक्त ने इस संबंध में टैक्स ब्रांच से सारा रिकार्ड तलब किया है।

हमारे पास डाटा ही नहीं

''टैक्स संबंधित डाटा हमारे पास नहीं है। पुरानी एजेंसी ने शायद क्षेत्रीय कराधान अधिकारियों को डाटा आदि दिए लेकिन वेबसाइट पर तभी अपलोड किए जा सकते हैं जब उनका पूरा रिकार्ड मिल जाए। हमें क्षेत्रीय कराधान अधिकारी की ओर से पचास हजार बिल दिए गए थे उसे हमने वेबसाइट पर लोड कर दिया है।''

-रीता दलाल, आईटी मैनेजर, नगर निगम।

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