यह कैक्टस खत्म करते हैं विकिरणों का दुष्प्रभाव

ऐसा कहा जाता है कि वास्तुशास्त्र की ²ष्टि से कैक्टस घर की सकारात्मक ऊर्जा को नष्ट कर देता है, पर सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले में सहभागी देश थाइलैंड के निवासी कमोलथिप विसुथिकुलपनिक कैक्टस की ऐसी प्रजातियां लेकर आए हैं, जो घर के अंदर के प्रदूषण को खत्म करता है और दावा यह भी कि इलेक्ट्रानिक्स उपकरणों टीवी, माइक्रोवेव, स्मार्टफोन, कंप्यूटर आदि से निकलने वाली विकिरणों(रेडिएशन) को सोख कर इनसे मानव शरीर पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को कम कर देता है।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 05 Feb 2019 07:08 PM (IST) Updated:Tue, 05 Feb 2019 07:08 PM (IST)
यह कैक्टस खत्म करते हैं 
विकिरणों का दुष्प्रभाव
यह कैक्टस खत्म करते हैं विकिरणों का दुष्प्रभाव

सुशील भाटिया, फरीदाबाद : ऐसा कहा जाता है कि वास्तुशास्त्र की ²ष्टि से कैक्टस घर की सकारात्मक ऊर्जा को नष्ट कर देता है, पर सूरजकुंड अंतरराष्ट्रीय हस्तशिल्प मेले में सहभागी देश थाइलैंड के निवासी कमोलथिप विसुथिकुलपनिक कैक्टस की ऐसी प्रजातियां लेकर आए हैं, जो घर के अंदर के प्रदूषण को खत्म करता है और दावा यह भी कि इलेक्ट्रानिक्स उपकरणों टीवी, माइक्रोवेव, स्मार्टफोन, कंप्यूटर आदि से निकलने वाली विकिरणों(रेडिएशन) को सोख कर इनसे मानव शरीर पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को कम कर देता है।

मुख्य चौपाल के मुख्य द्वार के ठीक सामने थाई पवेलियन में बीचों-बीच स्थित स्टॉल के संचालक कमोलथिप बताते हैं कि यह सर्वविदित है कि पीपल का पेड़ रात्रि में भी ऑक्सीजन देता है और कॉर्बन डॉई-आक्साइड को सोख कर पर्यावरण शुद्धता में सहायक है, उसी तरह से सुपारी का पेड़ भी कॉर्बन डॉईआक्साइड भी सोखता है, पर यह पेड़ बेहद लंबा होता है, इसलिए यह हर जगह आसानी से उपलब्ध नहीं होता। इधर अनुसंधान में यह सामने आया कि कैक्टस की कुछ प्रजातियां जिनमें पिगासुस, सेरोगाई कैकटाई, इचिनोकेकटस, ऑपटीना और ट्राईकोसेरेस आदि शामिल हैं यह सब कॉर्बन-डाईआक्साड के साथ-साथ विकिरिणों को भी सोख लेता है और घर के अंदर के वातावरण को स्वच्छ रखने में सहायक प्रदान करता है। कमोलथिप विसुथिकुलपनिक के अनुसार नासा ने भी यह प्रमाणित किया है कैक्टस में विकिरिणों का प्रभाव खत्म करने की क्षमता है और यह ऑक्सीजन छोड़ता है। ताउम्र रहता है एक ही साइज में

थाईलैंड से जो कैक्टस की जो प्रजाति कमोलथिप विसुथिकुलपनिक अपने साथ लाए हैं, उनका आकार मात्र तीन से चार इंच तक ही है। उनके अनुसार रेगिस्तान में जो कैक्टस पाए जाते हैं, वो हवा में मौजूद नमी को सोखते रहते हैं और लगातार बढ़ते रहते हैं। अगर रेगिस्तान में पानी की जरूरत पड़ जाए, तो इन बढ़े हुए कैक्टस में छेद कर पानी निकाला जा सकता है, पर उनके पास जो कैक्टस हैं, उनके लिए सप्ताह में मात्र एक ही दिन एक चम्मच पानी ही पर्याप्त है। विसुथिकुलपनिक के अनुसार यह कैक्टस एक तरह से बातें करते हैं और पालतू पशुओं की तरह होते हैं। अगर इन्हें सप्ताह में पानी न दिया जाए, तो यह मुरझाने के अंदाज में आ जाएंगे और अगर इन्हें जरूरत से ज्यादा पानी दे दिया जाए, तो यह अपने कांटों के जरिए निकालना शुरू कर देंगे। कांटों की नोक पर ओस की बूंदों की तरह यह दिखाई देगा। इसे ¨जदा रहने के लिए सिर्फ मिट्टी और कुछ धूप चाहिए।

नकारात्मक नहीं सकारात्मक ऊर्जा का संदेश

कमोलथिप विसुथिकुलपनिक से जब बातचीत हो रही थी, तभी एक महिला स्टॉल पर आई और अपने बेटे के आग्रह पर पिगासुस प्रजाति का 200 रुपये में कैक्टस खरीदा। इस महिला ने कहा कि जब यह कैक्टस ऑक्सीजन छोड़ता है, ऊर्जा देता है, हवा में रूखेपन को खत्म करता है, तो फिर यह नकारात्मक कैसे हुआ। यह तो फायदे का सौदा है।

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