पारिवारिक मूल्यों, संस्कारों से उपजते हैं लोक गीत
मालिनी अवस्थी ने स्वीकार किया है कि लोक संगीत की विरासत को सहेजेने, संवारने और उसको प्रचारित करने के लिए हमारे संस्कार बेहद अहम हो जाते हैं..
लोक गायिका मालिनी अवस्थी से खास बातचीत लोक संगीत की विरासत को सहेजेने, संवारने और उसको नया आयाम देने वाली प्रसिद्ध गायिका मालिनी अवस्थी ने अपनी विशिष्ट गायन शैली से संगीत की दुनिया में एक अलग मुकाम बनाया है। भोजपुरी, अवधी के परंपरागत लोक गीतों में नये प्रयोग और शास्त्रीय संगीत के साथ उनका संयोजन कर प्रस्तुति देने का उनका अपना अलहदा अंदाज है। सूरजकुंड मेले में पहुंचीं मालिनी अवस्थी से दैनिक जागरण के उप मुख्य संपादक सुधाशु त्रिपाठी ने कई मसलों पर चर्चा की। खास अंश:- -आपको परंपरागत हरियाणवी और भोजपुरी लोक संगीत में कितनी साम्यता नजर आती है?
-भोजुपरी और हरियाणवी दोनों ही संस्कृतियों में परंपरागत लोक संगीतों के सुर, लय और ताल में एक रवानगी है। भारतीय संस्कारों की सादगी के साथ ही इसमें एक अल्हड़पन या खुलापन आपको दिखता है। यह पुराने दौर के लोगों के साथ ही नई पीढ़ी के युवाओं को भी बहुत लुभाता है। आजकल की पार्टियों में हरियाणवी रागिनी और भोजपुरी के लोकगीतों पर थिरकते युवा इसकी बानगी हैं। हिसार, पानीपत, रेवाड़ी में जो रागिनी गाई जाती है, कमोबेश उससे मिलती जुलती ही रागिनी मेरठ, मथुरा, बागपत में भी सुनने को मिलती है। बस, बोली और शब्द बदलते हैं। हमारी भावनाएं और संवेदनाएं एक जैसी ही हैं।
-लोक गीतों में मौसम, प्रेम संबंधों, पर्व-त्यौहारों, मानवीय मूल्यों, संवेदनाओं और पारिवारिक संबंधों पर तमाम गीत हैं। आपको क्या पसंद है?
-हमारे यहा भारतीय लोक संस्कृति में हर मौसम, तीज-त्यौहार, पारिवारिक संबंधों पर बहुतायत में लोक गीत हैं। यहा एक बसंत और फागुन की मस्त बयार बहती है। लोग फगुआ के उल्लास में रमे हुए नजर आते हैं। अन्नदाताओं का उत्साह बढ़ाने के लिए चैती भी खूब सुनाई जाती है। सावन के महीने में कजरी की फुहार है। वर्षा ऋतु, राधा-कृष्ण के महारास के अलावा प्रेम संबंधों के विरह-वर्णन भी इसमें शामिल हैं। ये सब मुझे पसंद हैं।
-आपको सूरजकुंड मेले का क्या अच्छा लगता है?
-सूरजकुंड मेले में देश की बहुरंगी और विविधतापूर्ण संस्कृतियों के अलावा विदेशी संस्कृतियों की झलक देखने को मिलती है। ये चीजें मुझे बहुत प्यारी लगती हैं। सालों पहले मैंने अपनी मा और दादी के साथ इस मेले में आना शुरू किया था। मैं पहले भी यहा लगातार आती रही हूं। हा, समय के साथ चीजें बदल जाती हैं। पहले मेला घूमने और खरीदारी के लिए आती थी। अब यहा पर लोक संगीत की प्रस्तुतियों के लिए आती हूं। इससे पहले भी कई बार मैं यहा की मुख्य चौपाल पर प्रस्तुति दे चुकी हूं। -लोक संगीत के क्षेत्र में आने वाले नई पीढ़ी के युवाओं के लिए आप कोई संदेश देना चाहेंगी..
-देखिए, आज की नई पीढ़ी बेहद ऊर्जावान है मगर वह खासी जल्दबाजी में दिखती है। लोक संगीत एक साधना है, एक तपस्या है। इसमें महारत हासिल करने के लिए आपको अथक परिश्रम और अभ्यास करना होगा। मैं और तुम की जगह हम को अपनाना होगा। पारिवारिक संस्कारों और मूल्यों की कद्र करनी होगी। हमारे लोक गीत इन्हीं मूल्यों से उपजते हैं। जिनको संरक्षित करने की महती जिम्मेदारी इस नई पीढ़ी पर है।