ब्रिटिश हुकूमत के बाद प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक का विश्राम स्थल रहा आलीशान सर्किट हाउस

पवन पासी : अंबाला शहर: सन 1843 में जब अंबाला में कैंटोनमेंट बसाया गया तो अंग्रेजों ने सर्किट हाउस के तौर पर विश्राम गृह का निर्माण किया। लगभग एक शताब्दी तक अंग्रेज अफसरों की विश्राम स्थली रहा यह सर्किट हाउस आजादी के बाद देश के प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति तक की चहलकदमी का गवाह बना रहा। आज भी अंबाला में जब राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री का दौरा निर्धारित होता है तो सबसे पहले सर्किट हाउस को सजाया संवरा जाता है।

By JagranEdited By: Publish:Sat, 09 Feb 2019 09:01 AM (IST) Updated:Sat, 09 Feb 2019 09:01 AM (IST)
ब्रिटिश हुकूमत के बाद प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक का विश्राम स्थल रहा आलीशान सर्किट हाउस
ब्रिटिश हुकूमत के बाद प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक का विश्राम स्थल रहा आलीशान सर्किट हाउस

पवन पासी : अंबाला शहर: सन 1843 में जब अंबाला में कैंटोनमेंट बसाया गया तो अंग्रेजों ने सर्किट हाउस के तौर पर विश्राम गृह का निर्माण किया। लगभग एक शताब्दी तक अंग्रेज अफसरों की विश्राम स्थली रहा यह सर्किट हाउस आजादी के बाद देश के प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति तक की चहलकदमी का गवाह बना रहा। आज भी अंबाला में जब राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री का दौरा निर्धारित होता है तो सबसे पहले सर्किट हाउस को सजाया संवरा जाता है। इस विश्राम गृह की शानो शौकत का जलवा आज भी ऐसा है कि इसे बुक कराने के लिए मंडल कमिश्नर की इजाजत लेनी पड़ती है। ऐसे में एचसीएस रैंक के अधिकारी को भी यहां कमरा बामुश्किल नसीब होता है। वहीं, बात भवन की शिल्प शैली, कारीगरी एवं मजबूती की करें तो यह इतनी अनुपम है कि सैकड़ों सालों बाद भी इस विश्राम गृह का शाही ठाठ बाठ बरकरार है। 11 एकड़ में फैले सर्किट हाउस के भवन की 27 इंच मोटी दीवारों पर 18 फीट, 22 फीट व 30 फीट तक की छत टिकी है। इस आलीशान इमारत को कुछ यूं बनाया गया है कि बीच की लॉबी से कमरे, डाय¨नग रूम, ड्राइंग रूम परस्पर जुड़े हैं और एक तरफ से दूसरे सिरे तक का नजारा साफ नजर आता है।

सर्किट हाउस में 4 बड़े कमरे हैं जिनमें फर्नीचर आज भी अंग्रेजों के जमाने का है। बाथरूम ऐसे हैं कि सामान्य घरों में इतने बड़े ड्राइंग रूम होते हैं। बाथरूम की छत की ऊंचाई 22 फीट है। कमरों की छत 22 फीट ऊंची है तो वीआईपी कमरा, डाय¨नग रूम व ड्राइंग रूम की छत की ऊंचाई 30 फीट तक ऊंची है। करीब सात फीट ऊंचे दरवाजों पर पीतल के कब्जे लगे हैं जो आज भी इतने मजबूत नजर आते हैं कि आने वाले सौ साल भी मरम्मत की जरूरत न पड़े। सर्किट हाउस की बाहर के बरामदे में कभी कड़ियों की छत हुआ करती थी लेकिन बाद में इसे तोड़कर लेंटर डाला गया। हालांकि, अंदर फ्लोर में संगमरमर लगाए जाने के बाद स्वरूप में कोई और बदलाव नहीं किया। अलबत्ता, पेंट का जरूर इस्तेमाल हो रहा है।

कभी आइएएस आफिसर का हॉस्टल भी चलता था

सर्किट हाउस में कभी आइएएस रैंक के अफसरों का हास्टल था। इस रैंक के अधिकारी यहां प्रशिक्षण के दौरान रूका करते थे। इसमें एक मैस का इंतजाम होता था लेकिन अब यह भवन पूरी तरह से खंडहर हो चुका है। इसको सहेजने की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया गया। हालांकि, सर्किट हाउस की देखरेख होती रहती है। यहां बड़े बड़े गार्डन हैं। हालांकि, इनकी देखरेख के लिहाज से एक माली है और भवन की देखरेख के लिए केयर टेकर तैनात है।

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी व राष्ट्रपति भी आए

केयर टेकर हजारा ¨सह ने बताया कि इस भवन में कभी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी, पूर्व राष्ट्रपति आर वेंकेट रमन, पूर्व राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा भी आ चुके हैं। जिन्होंने अपने दौरे के दौरान यहां विश्राम किया। अब भी राष्ट्रपति व प्रधानमंत्री के दौरे के दौरान यह बुक रहता है। राज्यपाल व मुख्यमंत्री अकसर यहां आते हैं।

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शिल्प शैली ऐसी है कि कहीं अधेरा नहीं होता

कैंटोनमेंट बोर्ड के उपाध्यक्ष अजय बवेजा के मुताबिक शिल्प एवं निर्माण शैली ऐसी है कहीं भी अंधेरा नहीं रहता है। आज भी इसकी इमारत इतनी आलीशान है कि इसकी खासियत खुद ब खुद ही समझ आती है। यहां इतने सालों बाद भी कोई बड़ा परिवर्तन नहीं हुआ है। यह सर्किट हाउस अंग्रेज अफसरों के बाद देश की बड़े बड़े नेताओं की चहलकदमी का गवाह है। इसे संजोए जाने की जरूरत है।

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