गुजरात में शराबबंदी को चुनौती देने वाली याचिका दाखिल, उठाए सवाल

शराबबंदी को चुनौती देने वाली याचिका पर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश आर एस रेड्डी व न्यायाधीश वीएम पंचोली की खंडपीठ सुनवाई कर रही है।

By Sachin MishraEdited By: Publish:Wed, 24 Oct 2018 07:57 PM (IST) Updated:Wed, 24 Oct 2018 07:57 PM (IST)
गुजरात में शराबबंदी को चुनौती देने वाली याचिका दाखिल, उठाए सवाल
गुजरात में शराबबंदी को चुनौती देने वाली याचिका दाखिल, उठाए सवाल

अहमदाबाद, जेएनएन। गुजरात में शराबबंदी को निजता का उल्लंघन, जीने का अधिकार व समानता के संविधान प्रदत्त अधिकार के खिलाफ बताते हुए एक याचिका दाखिल की गई है। हाईकोर्ट आगामी मंगलवार को सुनवाई करेगी। इससे पहले राज्य सरकार को अपना पक्ष रखने को कहा गया है। याचिका में कहा गया है कि एनआरआई व अन्य राज्यों से आने वालों को शराब का परमिट दिया जाता है तो प्रदेश के लोगों को अपने घर में बैठकर पीने से कैसे रोका जा सकता है।

शराबबंदी को चुनौती देने वाली याचिका पर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश आर एस रेड्डी व न्यायाधीश वीएम पंचोली की खंडपीठ सुनवाई कर रही है। अदालत ने याचिकाकर्ताओं से यह भी कहा कि जब अन्य राज्य गुजरात मॉडल का अनुसरण कर रहे हैं तो शराबबंदी को हटवाकर वे क्यों अन्य राज्यों का अनुसरण करना चाहते हैं। याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता बंदिश सोपारकर ने बताया कि गुजरात सरकार ने नशाबंदी कानून में संशोधन कर राज्य में शराब की हेराफेरी व खरीद-फरोख्त को अपराध मानते हुए दस साल तक की सजा का प्रावधान किया है, जबकि प्रवासी भारतीय व अन्य प्रांत से गुजरात आने वालों को ड्राइविंग लाइसेंस दिखाने भर से शराब पीने का परमिट मिल जाता है।

उनका कहना है कि एसइजेड में समूह में शराब पीने की छूट मिल सकती है तो आम आदमी को अपने घर में बैठकर शराब पीने की छूट क्यों नहीं दी जा सकती है। उनका कहना है कि बाहर पीकर गुजरात में आना भी अपराध माना गया है, जाति, भाषा व प्रांत के आधार पर भेदभाव नहीं हो सकता। अन्य राज्यों को शराब पीने की छूट है तो गुजरात के लोगों को इस अधिकार से वंचित रखना उनकी निजता के अधिकार को भंग करना तथा जीवन जीने के हक के विपरीत है।

अदालत ने राज्य सरकार को मंगलवार को अपना पक्ष रखने के लिए तलब किया है। अदालत ने याचिकाकर्ताओं से मौखिक रूप से यह भी कहा कि राज्य में शराब पीने से होने वाली दुर्घटनाएं कम हैं तथा शराब के चलते होने वाले अपराध भी नहीं हैं, ऐसे में गुजरात क्यों अन्य राज्यों का अनुसरण करे जबकि देश के कई राज्य गुजरात मॉडल का अनुसरण कर रहे हैं।

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