Gujarat: अदालतों को सार्वजनिक आलोचना, जांच स्वीकार करनी चाहिए: हरीश साल्वे
Gujarat अहमदाबाद में आयोजित एक व्याख्यान को वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से संबोधित करते हुए साल्वे ने कहा कि न्यायाधीशों न्यायिक मर्यादाओं और कार्यप्रणाली के तरीकों की आलोचना से अदालत पर लांछन नहीं लगता। जिस लहजे में इस तरह की आलोचनाएं की जाती हैं वह हल्के-फुल्के अंदाज में होनी चाहिए।
अहमदाबाद, प्रेट्र। सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कहा कि अदालतों को शासन प्रणाली की संस्थाओं के तौर पर सार्वजनिक जांच पड़ताल और आलोचनाओं को स्वीकार करना चाहिए। गुजरात के अहमदाबाद में आयोजित एक व्याख्यान को वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से संबोधित करते हुए साल्वे ने कहा कि न्यायाधीशों, न्यायिक मर्यादाओं और कार्यप्रणाली के तरीकों की आलोचना से अदालत पर लांछन नहीं लगता है। जिस लहजे में इस तरह की आलोचनाएं की जाती हैं, वह हल्के-फुल्के अंदाज में होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि आज हमने यह स्वीकार कर लिया है कि न्यायाधीश या कहें अदालतें और खासकर संवैधानिक अदालतें शासन प्रणाली की संस्थाएं बन गई हैं। इस नाते उन्हें सार्वजनिक जांच पड़ताल तथा सार्वजनिक आलोचनाओं को स्वीकार करना चाहिए।
इस मौके पर हरीश साल्वे ने कहा कि हमने यह हमेशा माना है कि अदालतों के फैसलों की आलोचना की जा सकती है, ऐसी भाषा में की गई आलोचना भी जो विनम्र न हो। अत: फैसलों की निंदा हो सकती है। क्या हम निर्णय लेने की प्रक्रिया की निंदा कर सकते हैं? क्यों नहीं? वरिष्ठ अधिवक्ता 16वें पीडी देसाई स्मृति व्याख्यान को संबोधित कर रहे थे, जिसका विषय था न्यायपालिका की आलोचना, मानहानि का न्यायाधिकार और इंटरनेट मीडिया के दौर में इसका उपयोग। व्याख्यान में उन्होंने कहा कि सूर्य की तेज रोशनी के उजाले तले शासन होना चाहिए। मेरा मानना है कि ऐसा वक्त आएगा जब उच्चतम न्यायालय सरकारी गोपनीयता कानून के बड़ी संख्या में प्रविधानों पर गंभीरता से विचार करेगा और देखेगा कि वे लोकतंत्र के अनुरूप हैं या नहीं है।
गौरतलब है कि हरीश साल्वे ने दिल्ली विधानसभा के खिलाफ एक मामले में फेसबुक उपाध्यक्ष का प्रतिनिधित्व किया और लोन स्थगन के मामले में इंडियन बैंक्स एसोसिएशन का भी प्रतिनिधित्व भी किया था। वहीं, कोरोना काल के बीच हरीश साल्वे ने कहा था कि वह लंदन से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए मामलों में बहस करने में बहुत सहज हैं।