कांग्रेस में अहमद पटेल का स्‍थान लेने के दावेदारों में अशोक गहलोत सबसे आगे, गुजरात, पंजाब, राजस्थान के सियासी घटनाक्रम के संकेत

अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव रहे दिवंगत सांसद अहमद पटेल का स्थान कांग्रेस में किस नेता को मिलता है इसकी सब पर नजर है लेकिन पार्टी की हालिया घटनाक्रम पर नजर डालें तो गहलोत कांग्रेस में अहमद पटेल का स्थान लेते नजर आते हैं।

By Vijay KumarEdited By: Publish:Tue, 12 Oct 2021 04:30 PM (IST) Updated:Tue, 12 Oct 2021 04:30 PM (IST)
कांग्रेस में अहमद पटेल का स्‍थान लेने के दावेदारों में अशोक गहलोत सबसे आगे, गुजरात, पंजाब, राजस्थान के सियासी घटनाक्रम के संकेत
अशोक गहलोत लेंगे दिवंगत सांसद अहमद पटेल का स्थान!

शत्रुघ्न शर्मा, अहमदाबाद। अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव रहे दिवंगत सांसद अहमद पटेल का स्थान कांग्रेस में किस नेता को मिलता है, इसकी सब पर नजर है लेकिन पार्टी की हालिया घटनाक्रम पर नजर डालें तो गहलोत कांग्रेस में अहमद पटेल का स्थान लेते नजर आते हैं। चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर पूर्व केंद्रीय मंत्री भरत सिंह सोलंकी दिल्ली कांग्रेस के दिग्गज नेता अजय माकन, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह, लोकसभा में कांग्रेस पार्टी के नेता रहे मलिकार्जुन खडगे, पृथ्वीराज चौहान, पी चिदंबरम गुलाम नबी आजाद, जयराम रमेश, शशि थरुर सहित कई नेता अहमद पटेल का स्थान लेने में सक्षम नजर आते हैं लेकिन राजस्थान में तीसरी बार मुख्यमंत्री बने अशोक गहलोत इसमें बाजी मार ले जाते नजर आते हैं।

पंजाब में मुख्यमंत्री बदलने का मामला हो अथवा राजस्थान में मंत्रिमंडल विस्तार कर सचिन पायलट की करीबी विधायकों को मंत्री पद दिए जाने का मामला, गहलोत ने अपने तरीके से खुद को इन चुनौतियों से उबार लिया है।

गुजरात कांग्रेस के प्रभारी का जिम्मा अपने करीबी डॉ रघु शर्मा दिला कर गहलोत ने एक बार फिर अपने अनुभव व रणनीति का लोहा मनवा लिया। यह पद पहले सचिन पायलट को देने की चर्चा चली थी।

लेकिन प्रभारी के चयन में राजस्‍थान के मुख्‍यमंत्री अशोक गहलोत की ही चली और माना जा रहा है कि गुजरात की चुनावी रणनीति में भी उनकी अहम भूमिका होगी। दिग्‍गज नेता शंकरसिंह वाघेला की अब कांग्रेस में वापसी की संभावना नजर नहीं आती हैं, पिछले चुनाव में गुजरात कांग्रेस के प्रभारी रहते गहलोत ने ही वाघेला को पार्टी से बाहर होने को मजबूर कर दिया था।

इस बार भी चुनावी रणनीति की कमान गहलोत अपने हाथ में रहेगी। शर्मा को प्रभारी बनाने में गहलोत की ही चली है। लगातार चुनाव हारने के कारण कांग्रेस का संगठन कमजोर हुआ है साथ ही नए कार्यकर्ताओं की भी कमी नजर आती है। गौरतलब है कि गुजरात में भाजपा एक करोड़ सदस्‍य होने का दावा करती है, कांग्रेस अपने सदस्‍यों की संख्‍या लाखों में बताती है लेकिन उसने सही आंकडे कभी सार्वजनिक नहीं किये। कांग्रेस के कई कद्दावर नेता पार्टी छोड़कर जा चुके हैं/

गुजरात कांग्रेस को सबसे बड़ा नुकसान वरिष्‍ठ नेता अहमद पटेल के निधन से हुआ जिसकी भरपाई करना किसी नेता की बस की बात नहीं लेकिन डॉ शर्मा को मुख्‍यमंत्री गहलोत का पूरा समर्थन व सहयोग रहेगा यह उनका सबसे बड़ा प्‍लस पॉइंट है। गहलोत राजस्‍थान में तीसरी बार मुख्‍यमंत्री बने हैं तथा गत चुनाव में गुजरात कांग्रस के प्रभारी भी रह चुके हैं। गहलोत ने ही वाघेला को कांग्रेस से बाहर का रास्‍ता दिखाया था इसलिए अब उनके कांग्रेस में वापसी की संभावना नहीं है।

हालांकि वरिष्‍ठ नेता एवं पूर्व अध्‍यक्ष भरतसिंह सोलंकी दिग्‍गज नेता वाघेला व ओबीसी नेता व पूर्व विधायक अल्‍पेश ठाकोर दोनों को पार्टी में शामिल करने के लिए अहमदाबाद से दिल्‍ली तक दौड़ धूप कर चुके हैं लेकिन आलाकमान टस से मस नहीं हुआ। कांग्रेस अपने दलित वोट बैंक को साधने के लिए निर्दलीय विधायक जिग्‍नेश मेवाणी को साथ में ले आई है लेकिन वह कितना सफल होते हैं यह चुनाव के बाद ही पता चलेगा।

गुजरात कांग्रेस के प्रभारी सांसद राजीव सातव का मई 2021 में कोरोना से निधन के बाद से यह पद खाली था। इससे पहले फरवरी-मार्च 2021 में स्‍थानीय निकाय व पंचायत चुनावों में करारी हार के बाद प्रदेश अध्‍यक्ष अमित चावडा व विधानसभा में नेता विपक्ष परेश धनाणी ने भी अपने पद से इस्‍तीफा दे दिया था।

गुजरात में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में कांग्रेस आलाकमान पर लगातार दबाव बढ़ता जा रहा था। एक बार तो राजस्‍थान के मुख्‍यमंत्री अशोक गहलोत को ही इसकी जिम्‍मेदारी सौंपे जाने की चर्चा शुरु हुई चूंकि 2017 का विधानसभा चुनाव उनके प्रभारी रहते ही लड़ा गया था जिसमें कांग्रेस ने बीते ढाई दशक में 77 सीट जीतकर श्रेष्‍ठ प्रदर्शन किया था। अब उन्‍हीं के सिपहसालार डॉ रघु शर्मा को प्रभारी (गत गुरुवार रात्रि इसकी घोषणा की गई) बनाया गया है जिससे यह धारणा बनती जा रही है कि इस बार भी चुनावी रणनीति की कमान गहलोत अपने हाथ में रहेगी।

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