फिल्‍म रिव्‍यू: रॉय (डेढ़ स्‍टार)

बहुत कम फिल्में ऐसी होती हैं,जो आरंंभ से अंत तक दर्शकों को बांध ही न पाएं। विक्रमजीत सिंह की 'रॉय' ऐसी ही फिल्म है। साधारण फिल्मों में भी कुछ दृश्य, गीत और सिक्वेंस मिल जाते हैं,जिसे दर्शकों का मन बहल जाता है। 'रॉय' लगातार उलझती और उलझाती जाती है। हालांकि

By rohit guptaEdited By: Publish:Fri, 13 Feb 2015 09:04 AM (IST) Updated:Fri, 13 Feb 2015 09:07 AM (IST)
फिल्‍म रिव्‍यू: रॉय (डेढ़ स्‍टार)

अजय ब्रह्मात्मज

प्रमुख कलाकार: रणबीर कपूर, जैकलीन फर्नांडीस, अर्जुन रामपाल, अनुपम खेर और शिबानी डांडेकर।
निर्देशक: विक्रमजीत सिंह
संगीतकार: अंकित तिवारी, अमाल मलिक और मीत ब्रदर्स।
स्टार: 1.5

बहुत कम फिल्में ऐसी होती हैं,जो आरंंभ से अंत तक दर्शकों को बांध ही न पाएं। विक्रमजीत सिंह की 'रॉय' ऐसी ही फिल्म है। साधारण फिल्मों में भी कुछ दृश्य, गीत और सिक्वेंस मिल जाते हैं,जिसे दर्शकों का मन बहल जाता है। 'रॉय' लगातार उलझती और उलझाती जाती है। हालांकि इसमें दो पॉपुलर हीरो हैं। रणबीर कपूर और अर्जुन रामपाल का आकर्षण भी काम नहीं आता। ऊपर से डबल रोल में आई जैक्लीन फर्नांडीस डबल बोर करती हैं। आयशा और टीया में बताने पर ही फर्क मालूम होता है या फिर रणबीर और अर्जुन के साथ होने पर पता चलता है कि वे दो हैं। हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के बैकड्रॉप पर बनी 'रॉय' इंडस्ट्री की गॉसिप इमेज ही पेश करती है। फिल्म के एक नायक कबीर ग्रेवाल के 22 संबंध रह चुके हैं। उनके बारे में मशहूर है कि वे अपनी प्रेमिकाओं की हमशक्लों को फिल्मों की हीरोइन बनाते हैं। कुछ सुनी-सुनाई बात लग रही है न ?

रॉय

बहरहाल, 'रॉय' कबीर और रॉय की कहानी है। रॉय चोर है और कबीर उसकी चोरी से प्रभावित है। वह उस पर दो फिल्में बना चुका है। तीसरी फिल्म की शूटिंग के लिए मलेशिया जाता है। वहीं वह आयशा से टकराता है। आयशा उसकी जिंदगी के साथ फिल्म में भी चली आती है। दूसरी तरफ रॉय भी मलेशिया में है। वह अंतिम चोरी के लिए आया है,जिसके बाद उसे किसी अनजान देश के अनजान शहर में अनजान नाम से जिंदगी जीना है। रॉय और कबीर की इस कहानी में टीया और आयशा की वजह से गड्डमड्ड होती है। जैक्लीन फर्नांडीस दोनों रूपों में एक सी लगती हैं। डबल रोल सभी के वश की बात नहीं होती। खास कर जब हिंदी बोलने और पढऩे नहीं आता हो तो संवाद अदायगी में फर्क कैसे आएगा?

'रॉय' की सबसे कमजोर कड़ी जैक्लीन फर्नांडीस हैं। उन्होंने नाच-गाने में भरपूर ऊर्जा दिखाई है। अभिनय से अभी वह कोसों दूर हैं। अर्जुन रामपाल और रणबीर कपूर समर्थ अभिनेता हैं। निर्देशक ने इस फिल्म में उनके सामर्थ्य का उपयोग गैरजरूरी समझा है। दोनों ने बेपरवाही के साथ काम किया है। अन्य दिक्कते भी हैं। अर्जुंन रामपाल की दाढ़ी चिपकाई हुई दिखती है। रॉय के रूप में रणबीर कपूर भी खोए-खोए से हैं। उनका चरित्र ही वैसा गढ़ा गया है। दोनों एक समय के बाद नीरस और अप्रभावी हो जाते हैं।

फिल्म की थीम के हिसाब से सलेटी रंग चुना गया है, लेकिन वह अधिक काम नहीं आ पाता। निर्देशक और लेखक ने पटकथा पर अधिक मेहनत नहीं की है। कुछ नया करने और दिखाने के चक्कर में फिल्म फिसल गई है। फिल्म के गाने ठीक-ठाक हैं। उनकी लोकप्रियता से कुछ दर्शक भले ही आ जाएं। फिल्म में खामोशी, खामोशी का शोर और खामोशी का जहां जैसे शब्दों का प्रयोग बार-बार हुआ है। फिल्म में एक संवाद है कि जो बात समझ में नहीं आती, वह सुनाई भी नहीं पड़ती। उसी तर्ज में कहें तो जो दृश्य समझ में नहीं आते, वे दिखाई भी नहीं पड़ते।

अवधि: 147 मिनट

abrahmatmaj@mbi.jagran.com

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