फ़िल्म समीक्षा: 'कैदी बैंड' की बैंड बज गई (डेढ़ स्टार)

अंडर ट्रायल जैसे गंभीर मुद्दे का बहुत ही सतही तौर पर प्रस्तुतीकरण क्या गया है।

By Hirendra JEdited By: Publish:Fri, 25 Aug 2017 08:37 AM (IST) Updated:Fri, 25 Aug 2017 08:47 AM (IST)
फ़िल्म समीक्षा: 'कैदी बैंड' की बैंड बज गई (डेढ़ स्टार)
फ़िल्म समीक्षा: 'कैदी बैंड' की बैंड बज गई (डेढ़ स्टार)

- पराग छापेकर

मुख्य कलाकार: आदर जैन, आन्या सिंह, सचिन पिलगांवकर आदि

निर्देशक: हबीब फैजल

निर्माता: आदित्य चोपड़ा

निर्देशक हबीब फैजल की फ़िल्म क़ैदी बैंड कहानी है अंडर ट्रायल्स की। यह अंडर ट्रायल किसी ने अपराध किया है या नहीं इस के फैसले के इंतजार में जेल में रहते हैं। न्यायपालिका में मेनफोर्स की कमी के कारण यह एक बहुत ही गंभीर मुद्दा है। हजारों अंडर ट्रायल्स अपनी ज़िंदगी के फैसले के इंतजार में सालों साल कैद मे सड़ते रहते हैं! गंभीर मुद्दे पर किसी भी गंभीरता के बगैर निर्देशक हबीब फैजल ने एक लव स्टोरी को बुना है।

पता नहीं किस जेल में महिला और पुरुष जेल के कुछ अंडर ट्रायल को मिलाकर एक बैंड बनाया जाता है। इस बैंड में संजू (आदर जैन)और बिंदु (आन्या सिंह) हैं जो फ़िल्म के नायक-नायिका हैं। बैंड का लक्ष्य है 15 अगस्त को देश भक्ति का गीत प्रस्तुत करना लेकिन, पता नहीं क्यों मुख्य अतिथि के तौर पर आए मंत्री उस बैंड को चुनाव तक ज़िंदा रखना चाहते हैं और इस मौके का फायदा उठाकर यह बैंड दुनियाभर में प्रसिद्ध हो जाता है।

इस बीच जाहिर तौर पर पनपति है हमारे हीरो हीरोइन की प्रेम कहानी! बैंड की आड़ में यह लोग जेल से भागने का प्लान बनाते हैं ताकि दुनिया को अंडर ट्रायल की समस्या से रुबरु करा सके। इसमें वह सफल होते हैं या नहीं इसी कहानी पर बनी है कैदी बैंड!

फ़िल्म शुरू होते ही लगता है फ़िल्म निर्देशक वाकई कुछ अलग लेकर आ रहे हैं। लेकिन, फ़िल्म शुरू होने के बाद 5 मिनट में ही यह समझ में आ जाता हैे कि इस तरह की फ़िल्म का आईडिया किसी हॉलीवुड फ़िल्म को देखकर आया है और इसका भारतीयकरण बिल्कुल जल्दबाजी में और बचकाने तरीके से बिना भारतीय व्यवस्था को समझे किया गया है!

अंडर ट्रायल जैसे गंभीर मुद्दे को बहुत ही सतही तौर पर प्रस्तुत किया गया है। अभिनय की बात की जाए तो आधार जैन को अभी काफी मेहनत करने की जरूरत है। उनमें संभावनाएं जरूर हैं मगर, उनके लॉन्चिंग में जल्दीबाजी की गई है! अान्या सिंह के रूप में बॉलीवुड को एक नई हीरोइन जरूर मिल गई है! सचिन पिलगांवकर को एक अलग रुप में देखना सुखद रहा। बाकी के कलाकारों ने भी अपने अपने किरदारों से न्याय किया है।

फ़िल्म का संगीत अच्छा है। कुछ गाने वाकई दिल को छू लेते हैं मगर, उनका चित्रण बहुत ही फॉल्स है। कुल मिलाकर निर्देशक हबीब फैजल की फ़िल्म कैदी बैंड एक कमजोर फ़िल्म है। आप चाहे तो यह फ़िल्म छोड़ भी सकते हैं।

जागरण डॉट कॉम रेटिंग: 5 में से 1.5 (डेढ़) स्टार

अवधि: 1 घंटे 58 मिनट

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