Movie Review: ये ‘सुई धागा’ कच्चे धागे से बना है, मिले बस ‘इतने’ ही स्टार्स

कुल मिलाकर ‘सुई धागा’ एक कच्चे धागे से बुनी हुई फिल्म है। इस कहानी को थोड़ा और पकाया होता तो शायद बेहतर फिल्म बन पाती!

By Hirendra JEdited By: Publish:Fri, 28 Sep 2018 03:18 PM (IST) Updated:Sat, 29 Sep 2018 05:40 PM (IST)
Movie Review: ये ‘सुई धागा’ कच्चे धागे से बना है, मिले बस ‘इतने’ ही स्टार्स
Movie Review: ये ‘सुई धागा’ कच्चे धागे से बना है, मिले बस ‘इतने’ ही स्टार्स

-पराग छापेकर

स्टार कास्ट: वरुण धवन, अनुष्का शर्मा और रघुवीर यादव

निर्देशक: शरत कटारिया

निर्माता: यशराज फिल्म्स

मौजी हमेशा कहता है ‘सब बढ़िया है’। सच भी है मौजी की दुनिया की दुनिया रचने वाले शरत कटारिया जिन्होंने ‘दम लगा के हईशा’ जैसी खूबसूरत फिल्म बनाई थी उन्हें लगा कि मौजी की दुनिया में सब बढ़िया है। लेकिन, जब इसे उन्होंने बड़े पर्दे पर फिल्माया तो दर्शकों को लगा सब तो बढ़िया नहीं है। यह कहानी है मौजी (वरुण धवन) की, कढ़ाई में माहिर और उसकी पत्नी ममता (अनुष्का शर्मा) की। मौजी जहां काम करता है वहां पर हर रोज उसका मजाक उड़ाया जाता है।

एक दिन जब हद पार हो जाता है तो ममता को गुस्सा आ जाता है और वह मौजी को कहती है कि उसे अपने पांव पर खड़ा होना चाहिए और इसके बाद शुरू होता है उनकी ज़िंदगी में संघर्ष। पूरी फिल्म में मौजी और ममता के साथ खराब ही होता रहता है। कहीं जाकर आखिरी के 15 मिनट में दर्शकों को थोड़ी राहत मिलती है और लगता है कि हमारे हीरो-हीरोइन की ज़िंदगी में कुछ अच्छा हुआ!

कमजोर स्क्रीनप्ले, कहानी का रुक-रुक कर आगे बढ़ना, बत्ती गुल मीटर चालु वाली गलती का दोहराव संवाद में क्षेत्रीय भाषा का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल फिल्म को बोझिल बनाता है! हालांकि फिल्म को रियलिस्टिक बनाने की भरपूर कोशिश की गई है। मगर उसमें सिनेमैटिक लिबर्टी का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल फिल्म के रियलिज्म को समय-समय पर तोड़ता रहता है!

अभिनय की बात करें तो वरुण धवन ने जी जान लगाकर मौजी को खड़ा तो कर दिया पर दुर्भाग्य से निर्देशक लेखक शरत कटारिया ने मौजी को खड़ा रहने के लिए बहुत ही सीमित जगह बनाई थी! अनुष्का शर्मा के पास करने के लिए तो काफी कुछ था लेकिन, अनुष्का अपने अभिनय का कमाल नहीं दिखा पाई। रघुवीर यादव के हिस्से जितना आया उन्होंने निभाया।

फिल्म के गाने भी फिल्म का साथ नहीं दे रहे हैं। अनिल मेहता की सिनेमैटोग्राफी के कारण फिल्म दर्शनीय बन पाई है। चारू श्री रॉय को एडिटिंग पर थोड़ा और काम करना था। कुल मिलाकर ‘सुई धागा’ एक कच्चे धागे से बुनी हुई फिल्म है। इस कहानी को थोड़ा और पकाया होता तो शायद बेहतर फिल्म बन पाती!

जागरण डॉट कॉम रेटिंग: पांच (5) में से दो (2) स्टार

अवधि: 2 घंटे 16 मिनट

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