फिल्‍म रिव्‍यू: लागत, मेहनत और परिकल्‍पना पर लंबे डग भरती 'बाहुबली- द कंक्‍लूजन'

तीर-कमान के युग में मशीन और टेलीस्‍कोप का उपयोग उतना ही अचंभित करता हे, जितना गीतों और संवादों में संस्‍कृत और उर्दू का प्रयोग...थोड़ी कोशिश और सावधानी से इनसे बचा जा सकता था।

By मनोज वशिष्ठEdited By: Publish:Fri, 28 Apr 2017 03:52 PM (IST) Updated:Sat, 29 Apr 2017 07:54 AM (IST)
फिल्‍म रिव्‍यू: लागत, मेहनत और परिकल्‍पना पर लंबे डग भरती 'बाहुबली- द कंक्‍लूजन'
फिल्‍म रिव्‍यू: लागत, मेहनत और परिकल्‍पना पर लंबे डग भरती 'बाहुबली- द कंक्‍लूजन'

-अजय ब्रह्मात्‍मज

मुख्य कलाकार: प्रभास, राणा डग्गूबाती, अनुष्का शेट्टी, राम्या कृष्णनन आदि।

निर्देशक: एसएस राजामौली

निर्माता: शोबु यरलागड्डा

स्टार: ***1/2 (साढ़े तीन स्‍टार)

कथा आगे बढ़ती है... राजमाता शिवगामी फैसला लेती हैं कि उनके बेटे भल्‍लाल की जगह अमरेन्‍द्र बाहुबली को राजगद्दी मिलनी चाहिए। इस घोषणा से भल्‍लाल और उनके पिता नाखुश हैं। उनकी साजिशें शुरू हो जाती हैं। राज्‍य के नियम के मुताबिक राजगद्दी पर बैठने के पहले अमरेन्‍द्र बाहुबली कटप्‍पा के साथ देशाटन के लिए निकलते हैं। पड़ोस के कुंतल राज्‍य की राजकुमारी देवसेना के पराक्रम से प्रभावित होकर वे उन्‍हें प्रेम करने लगते हैं। उधर राजमाता भल्‍लाल के लिए देवसेना का ही चुनाव करती हैं। दोनों राजकुमारों की पसंद देवसेना स्‍वयं अमरेन्‍द्र से प्रेम करती है। वह उनकी बहादुरी की कायल है।

गलतफहमी और फैसले का ड्रामा चलता है। भल्‍लाल और उसके पिता अपनी साजिशों में सफल होते हैं। अमरेन्‍द्र को राजमहल से निकाल दिया जाता है। राजगद्दी पर भल्‍लाल काबिज होते हैं। उनकी साजिशें आगे बढ़ती हैं। वे अमरेन्‍द्र बाहुबली की हत्‍या करवाने में सफल होते हैं। पिछले दो सालों से देश में गूंज रहे सवाल ‘कटप्‍पा ने बाहुबली को क्‍यों मारा’ का जवाब भी मिल जाता है। फिल्‍म यहीं खत्‍म नहीं होती। पच्‍चीस साल के सफर में महेन्‍द्र बाहुबली राजगद्दी के उम्‍मीदवार के रूप में उभरते हैं।

भव्‍य और विशाल परिकल्‍पना 2015 में आई ’बाहुबली’ ने अपनी भव्‍य और विशाल परिकल्‍पना से पूरे देश के दर्शकों को सम्‍मोहित किया था। ‘बाहुबली 2’ भव्‍यता और विशालता में पहली से ज्‍यादा बड़ी और चमकदार हो गई है। सब कुछ बड़े पैमाने पर रचा गया है। यहां तक कि संवाद और पार्श्‍व संगीत भी सामान्‍य से तेज और ऊंची फ्रिक्‍वेंसी पर है। कभी-कभी सब कुछ शोर में बदल जाता है। फिल्‍म का पचास से अधिक प्रतिशत एक्‍शन है। फिल्‍म की एक्‍शन कोरियोग्राफी के लिए एक्‍शन डायरेक्‍टर और कलाकार दोनों ही बधाई और सराहना के पात्र हैं। उन्‍होंने लेखक के विजयेन्‍द्र प्रसाद की कल्‍पना को चाक्षुष उड़ान दी है। वीएफएक्‍स और तकनीक की मदद से निर्देशक एसएस राजमौली ने भारतीय सिनेमा को वह अपेक्षित ऊंचाई दी है, जिस पर सभी भारतीय दर्शक गर्व कर सकते हैं। हालीवुड के भव्‍य फिल्‍मों के समकक्ष ‘बाहुबली’ का नाम ले सकते हैं। बाहुबली- द कंक्लूज़न

कहानी की दृश्‍यात्‍मक अभिव्‍यंजना श्रेष्‍ठ और अतुलनीय है। इस पैमाने पर दूसरी कोई भारतीय फिल्‍म नजर नहीं आती। बड़ी है,काश बेहतर भी होती ‘बाहुबली 2’ निस्‍संदेह पहली से बड़ी है। लागत, मेहनत और परिकल्‍पना हर स्‍तर पर वह लंबे डग भरती है। दर्शकों को आनंदित भी करती है, क्‍योंकि इसके पहले इस स्‍तर और पैमाने का विजुअल और वीएफएक्‍स नहीं देखा गया है। पर थोड़ा ठहरकर या सिनेमाघर से निकल कर सोचें तो यह आनंद मुट्ठी में बंधी रेत की तरह फिसल जाती है। राजगद्दी के लिए वही बचकाना द्वंद्व, राजमहल के छल-प्रपंच, राजमहल की चारदीवारी के अंदर फैली ईर्ष्‍या और शौर्य दिखाती असंभव क्रियाएं... एक समय के बाद दृश्‍य संरचना में दोहराव आने लगता है।

तीर-कमान के युग में मशीन और टेलीस्‍कोप का उपयोग उतना ही अचंभित करता हे, जितना गीतों और संवादों में संस्‍कृत और उर्दू का प्रयोग...थोड़ी कोशिश और सावधानी से इनसे बचा जा सकता था। कथा काल्‍पनिक बाहुबली का राज्‍य कल्‍पना पर आधारित है। इसका कोई ऐतिहासिक साक्ष्‍य नहीं है। फिल्‍म के संवादों में गंगा, कृष्‍ण, शिव आदि का उल्‍लेख होता है। गणेश की मूर्तियां दिखाई पड़ती हैं। फिर भी यह तय करना मुश्किल होता है कि यह भारत के काल्‍पनिक अतीत की किस सदी और इलाके की कहानी है। रंग, कद-काठी, वास्‍तु और परिवेश से वे विंध्‍यांचल के दक्षिण के लगते हैं। ‘बाहुबली’ की कल्‍पना को दर्शन, परंपरा और भारतीय चिंतन का आधार भी मिलता तो यह फिल्‍म लंबे समय तक याद रखी जाती।

वीएफएक्‍स के विकास और तकनीकी अविष्‍कारों के इस युग में पांच-दस साल के अंदर इससे बड़ी कल्‍पना और भव्‍यता मुमकिन हो जाएगी। भारतीय फिल्‍मों का अावश्‍यक तत्व है इमोशन... इस फिल्‍म में इमोशन की कमी है। वात्‍सल्‍य, प्रेम और ईर्ष्‍या के भावों को गहराई नहीं मिल पाती। सब कुछ छिछले और सतही स्‍तर पर ही घटित होता है। कलाकार और अभिनय कास्‍ट्यूम और एक्‍शन ड्रामा में कलाकारों के अभिनय पर कम ध्‍यान जाता है। फिर भी राणा डग्‍गुबाती, प्रभाष और अनुष्‍का शेट्टी पीरियड लबादों में होने के बावजूद एक हद तक आकर्षित करते हैं।

अवधि- 148 मिनट

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