नेचुरल एक्टिंग करती हूं

लुटेरा छठे दशक की कहानी है। मेरा नाम पाखी राय चौधरी है। बंगाली जमींदार की बेटी हूं। मासूम और भोली हूं। पहली बार प्यार में पड़ती हूं। एक विजिटिंग आर्कियोलॉजिस्ट से मेरा प्रेम होता है। 'लुटेरा' हम दोनों के प्यार के साथ-साथ विछोह की भी कहानी है। पाखी की जिंदगी में

By Edited By: Publish:Thu, 04 Jul 2013 10:56 AM (IST) Updated:Thu, 04 Jul 2013 11:04 AM (IST)
नेचुरल एक्टिंग करती हूं

मुंबई। 'लुटेरा' छठे दशक की कहानी है। मेरा नाम पाखी राय चौधरी है। बंगाली जमींदार की बेटी हूं। मासूम और भोली हूं। पहली बार प्यार में पड़ती हूं। एक विजिटिंग आर्कियोलॉजिस्ट से मेरा प्रेम होता है। 'लुटेरा' हम दोनों के प्यार के साथ-साथ विछोह की भी कहानी है। पाखी की जिंदगी में भावनात्मक उतार-चढ़ाव आते हैं। फिल्म में मुझे हल्के, तीव्र, नाटकीय और कुछ दृश्यों में अतिनाटकीय भाव दिखाने के मौके मिले।

कैमरा ऑन होने के पहले मैं एक्ट नहीं कर सकती। मेथड एक्टिंग मेरी समझ में नहीं आती। मैं ज्यादा से ज्यादा स्पॉन्टेनिटी का इस्तेमाल करती हूं। इस फिल्म के लिए मैंने कोई रिसर्च नहीं किया। सच कहूं, तो मैंने आज तक एक भी ब्लैक एंड वाइट फिल्म नहीं देखी है। इसके पीछे कोई वजह नहीं है। एक वजह यह हो सकती है कि मैं बचपन में फिल्म प्रेमी नहीं थी। निर्देशक विक्रम मोटवाणी और उनकी टीम ने इस फिल्म पर पूरा रिसर्च किया था। मुझे अलग से कुछ करने की जरूरत ही नहीं पड़ी।

विक्रम ने सीधे मुझे फोन किया था और कहानी सुनाने आ गए थे। मैंने उनकी पहली फिल्म 'उड़ान' देख रखी थी। वह मुझे बहुत बहुत पसंद है। स्क्रिप्ट सुनते समय ही मैं उस पीरियड में चली गई थी। कहानी सुनते समय ही हंसना और रोना आ रहा था। रोमांस का एहसास हो रहा था। उनकी प्रतिभा से सभी वाकिफ हैं। मैंने यही महसूस किया कि 'लुटेरा' मेरे कॅरियर की खास फिल्म होगी। उस समय कई लोगों ने मना किया था कि अभी तुम्हें ऐसी सीरियस फिल्म नहीं करना चाहिए। थोड़ी मैच्योरिटी के बाद ऐसी फिल्म करनी चाहिए। मैंने इसे एक चैलेंज के तौर पर लिया। मेरी सारी पिछली फिल्मों से यह अलग है।

फिल्म चुनते समय मैं केवल यही खयाल रखती हूं कि दर्शक के तौर पर वह मुझे अच्छी लगे। मैं उस पर अपनी मेहनत की कमाई खर्च कर सकूं। थिएटर में जाकर सीटी और ताली बजाऊं। फिल्म की हीरोइन के साथ मुस्कराऊं या रोऊं। अलग-अलग फिल्में चुनने की वजहें भी अलग-अलग होती हैं।

इस फिल्म की शूटिंग पुरूलिया, डलहौजी, कोलकाता और मुंबई में हुई। पुरूलिया और डलहौजी में भीड़ की वजह से शूटिंग करने में दिक्कत होती थी। शूटिंग के हिसाब से यह बहुत डिफिकल्ट फिल्म रही। कोलकाता से सेट पर जाने में तीन घंटे लग जाते थे। डलहौजी में जब हम शूटिंग कर रहे थे तब वहां जैसी बर्फबारी हुई, वैसी पिछले बीस साल में नहीं हुई थी। बर्फबारी से वहां सेट की छत गिर गई थी।

फिल्म में मेरे कोस्टार रणवीर सिंह अत्यंत प्रतिभाशाली एक्टर हैं। हमेशा उत्साह में रहते हैं। वर्किंग स्टाइल में वह मुझसे विपरीत हैं। वह मेथड एक्टर हैं। रोल की पूरी तैयारी करते हैं। 'लुटेरा' में उन्हें एक शांत किरदार निभाना था। उन्होंने पता नहीं कैसे इसे निभाया।

विक्रम मोटवाणी के बारे में कुछ भी कहना कम होगा। वह सुलझे हुए अनुशासित डायरेक्टर हैं। समझदार और बौद्धिक तो हैं ही। उनके सेट पर ऐसा लगता था कि मैंने फिर से स्कूल में दाखिला ले लिया है। 'लुटेरा' सिंक साउंड फिल्म है, इसलिए पूरी एहतियात रखी जाती थी। घड़ी की सुई के साथ काम होता था। उनके काम करने का तरीका क्रांतिकारी है। 'लुटेरा' का अनुभव ढेर सारी सीखें दे गया।

[अजय ब्रहा्रात्मज]

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