'हैदर' में शाहिद निभा रहे हैं इंटेंस किरदार

समय के साथ स्टारडम के मायने बदले हैं। अब उसका मतलब महज लार्जर दैन लाइफ इमेज की भूमिकाएं ही करना नहीं हैं। इस बात में शिद्दत से विश्वास करते हैं शाहिद कपूर। यही वजह है कि वह 'आर. राजकुमार', 'हैदर' और फिर उसके तुरंत बाद 'शानदार' जैसी अलग-अलग मिजाज की फिल्में कर रहे हैं। शाहिद से

By Edited By: Publish:Thu, 25 Sep 2014 11:39 AM (IST) Updated:Thu, 25 Sep 2014 11:39 AM (IST)
'हैदर' में शाहिद निभा रहे हैं इंटेंस किरदार

मुंबई। समय के साथ स्टारडम के मायने बदले हैं। अब उसका मतलब महज लार्जर दैन लाइफ इमेज की भूमिकाएं ही करना नहीं हैं। इस बात में शिद्दत से विश्वास करते हैं शाहिद कपूर। यही वजह है कि वह 'आर. राजकुमार', 'हैदर' और फिर उसके तुरंत बाद 'शानदार' जैसी अलग-अलग मिजाज की फिल्में कर रहे हैं। शाहिद से बातचीत के अंश:

युवा कलाकार इमेज कांशस नहीं हैं। क्यों?

मैं बहुत खुश हूं कि यंग लॉट के कलाकार दर्शकों को वरायटी फिल्में दे रहे हैं। मैं जब भी युवा दर्शकों से मिलता हूं, तो उनकी यही डिमांड रहती है कि बार-बार एक ही किस्म की फिल्में मत दो। उसकी पहली वजह तो यह है कि हर पीढ़ी की सोच व अप्रोच अलग होती है। ऐसे में आज के जमाने के दर्शक और कलाकार दोनों की सिनेमा के प्रति सोच बिल्कुल जुदा है। अब दर्शक विभिन्न कलाकारों से भिन्न-भिन्न किस्म की भूमिकाएं एक्सपेक्ट करते हैं। मुझे खुद इंडस्ट्री में नौ साल हो चुके हैं। नौ साल पहले ऐसा नहीं था। सब सेफ और सेट जोन में रहना पसंद करते थे। तभी शाह रुख रोमांटिक तो अक्षय कुमार एक्शन फिल्में करते थे। आज दोनों की फिल्मों के चयन में खासा बदलाव आ चुका है।

इस तब्दीली में नई पंक्ति के फिल्मकारों की क्या भूमिका है?

उन्होंने अहम भूमिका अदा की है। यह अनुराग कश्यप, विशाल भारद्वाज, इम्तियाज अली, अनुराग बसु, दिबाकर बनर्जी की किस्सागोई का नतीजा है, जिसने सितारों व दर्शक दोनों की पसंद बदली। रिएलिस्टिक और सटल किस्म की भूमिकाओं में भी हीरोइज्म दिखने लगा। तभी रणबीर कपूर जैसे सितारे 'बॉम्बे वेलवेट', 'बर्फी' जैसी फिल्में करते हैं। 'कमीने' जैसी फिल्म मेरे कॅरियर की सफलतम फिल्मों में से एक रही है।

सितारों की जिन अभिनेत्रियों व फिल्मकारों के संग फिल्म हिट हो जाती है वे सफलतम जोड़ी कहलाने लग जाते हैं। आपके मामले में अंतराल लंबा खिंचा है?

आप विशाल भारद्वाज और इम्तियाज अली के संदर्भ में बात कर रहे हैं। दरअसल इम्तियाज ने 'जब वी मेट' के बाद मुझे कभी अप्रोच नहीं किया। क्यों नहीं किया, उस बारे में तो वे ही बेहतर जवाब दे सकते हैं। हां, विशाल सर और हम लगातार बातें किया करते थे। फिर कई बार ऐसा होता है कि फिल्मकार भी अलग किस्म की फिल्में करते रहते हैं। जैसे विशाल सर ने बीच में 'सात खून माफ' जैसी महिला केंद्रित फिल्म बनाई। टॉम क्रूज और स्टीफन स्पीलबर्ग एक सब्जेक्ट पर दस साल बात करते रहे तब जाकर वे साथ आए और फिल्म बनाई। यह जरूरी नहीं है कि आप कब काम करते हैं? आप साथ काम करना चाहते हैं कि नहीं, वह अहम है।

विशाल के संग आप कैसे, कहां और कब मिले?

वे मेरे पिता के संग तो फिल्में कर चुके थे ही तो मुझे बखूबी जानते थे। बहरहाल, पहली बार मैं उनसे 'ओमकारा' के सेट पर मिला था। फिर उसके एक-डेढ़ साल बाद उन्होंने मुझे 'कमीने' ऑफर की।

एक कलाकार को स्टारडम का भार लेकर सेट पर जाना चाहिए?

चाहे कलाकार विशेष की फिल्में चली हों अथवा न चली हों। सेट पर वह अपने पिछले प्रदर्शन को दिमाग में लेकर जाएगा तो मुश्किल होगी। फिल्मों की एक अलग और सीक्रेट दुनिया है। सेट पर हर बार नई फिजां, नया माहौल व ऊर्जा होती है। कोई स्टारडम का बैगेज लेकर जाएगा तो तीनों के बीच का तारतम्य टूटेगा और असर फिल्म पर पड़ेगा।

(अमित कर्ण)

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