स्वीकार की हैं चुनौतियां: ए.आर. मुरुगदास

साउथ फिल्म इंडस्ट्री में सफल मुरुगदास बॉलीवुड में भी सफल निर्देशक की पहचान बनाना चाहते हैं।

By Edited By: Publish:Thu, 05 Jun 2014 11:36 AM (IST) Updated:Thu, 05 Jun 2014 12:44 PM (IST)
स्वीकार की हैं चुनौतियां: ए.आर. मुरुगदास

मुंबई। साउथ फिल्म इंडस्ट्री में सफल मुरुगदास बॉलीवुड में भी सफल निर्देशक की पहचान बनाना चाहते हैं। विपुल शाह की फिल्म 'हॉलीडेÓ है बतौर निर्देशक मुरुगदास की ताजा पेशकश। अक्षय कुमार और सोनाक्षी सिन्हा अभिनीत इस फिल्म को लेकर मुरुगदास से बातचीत के अंश:

'हॉलीडे में क्या लेकर आ रहे हैं आप?

थ्रिलर, एक्शन और रोमांस...तीनों का अच्छा मिश्रण दिखेगा। एक्शन तो है ही। रोमांस का भी खूबसूरत ट्रैक है। 'हॉलीडे मेरी पिछली फिल्म 'गजनी से बिल्कुल अलग है। इसमें थोड़ी सी कॉमेडी भी है।

एक्शन फिल्मों में आपकी विशेष रुचि है। इतनी रुचि क्यों और कैसे हुई?

मैं बहुत पढ़ता हूं। लिखता भी रहता हूं। हमेशा कुछ नया लिखना चाहता हूं। हम वास्तविक जिंदगी में जो नहीं होते, वह पर्दे पर दिखना और दिखाना चाहते हैं। मैं बहुत रिजर्व और शांत किस्म का व्यक्ति हूं। मेरे हीरो एक्शन करते हैं और बहुत जोश में रहते हैं। मेरी फिल्मों के हीरो मेरे आल्टर इगो होते हैं।


आपकी फिल्म के निर्माता विपुल शाह स्वयं एक निर्देशक हैं। उनके साथ फिल्म बनाते समय क्रिएटिव डिफरेंस तो होता होगा?

बिल्कुल नहीं। विपुल मेरी मदद कर रहे हैं। विपुल हिंदी समझने में मेरी मदद करते हैं। इस फिल्म के गीतों के अर्थ उन्होंने ही मुझे बताए। चूंकि वह स्वयं निर्देशक हैं, इसलिए दूसरे निर्देशक की जरूरतों को अच्छी तरह समझते हैं। स्क्रिप्ट फाइनल होने के बाद उन्होंने किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं किया। हां, फिल्म के प्रमोशन में मदद के लिए मेरे साथ रहे।

आप कितनी हिंदी समझते हैं? क्या हिंदी फिल्म डायरेक्ट करते समय कभी कोई दिक्कत भी होती है?

अपनी हिंदी फिल्मों के मैं अनुवाद करवा लेता हूं समझने के लिए। अभी हिंदी सीख रहा हूं। मेरे सहयोगी हिंदी संवादों के अर्थ बता देते हैं। मैं अपने दोस्तों की भी मदद लेता हूं। यह इतना मुश्किल काम नहीं है। अगर कुछ गलत हो रहा हो तो एक्टर या यूनिट का कोई सदस्य भी टोक देता है। मैं यह फिल्म पहले तमिल में कर चुका हूं, इसलिए फिल्म के प्रभाव को जानता हूं।

क्या तमिल और हिंदी फिल्मों में कोई फर्क होता है?

सिर्फ भाषा अलग होती है। बाकी हिंदी, तमिल या अन्य भाषाओं में शहर एक जैसे होते हैं। लैंडस्केप में थोड़ा सा फर्क रहता है। मेरी फिल्में शहरों के बैकड्रॉप पर होती है। अगर गांव-देहात की फिल्में हिंदी में बनानी हो, तो शायद दिक्कत हो। शहरों की वेशभूषा आदि तो एक जैसी ही होती है।

हिंदी में फिल्में क्यों बनाना चाहते हैं? आप तमिल में सफल हैं।

हिंदी की पहुंच बड़ी है। फिल्म इंटरनेशनल स्तर पर रिलीज होती है। तमिल सिनेमा के फिल्मकार और तकनीशियन हिंदी फिल्मों से जुड़ना चाहते हैं। यह उनका सपना होता है। राष्ट्रभाषा में आने से दर्शकों की संख्या बढ़ जाती है। हिंदी फिल्म हमेशा बड़ी चुनौती रहती है।

(अजय ब्रहा्रात्मज)

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