दरअसल: करण जौहर की ‘तख़्त' में मुग़ल सल्तनत

करण जौहर की घोषणा के पहले ही आशुतोष गोवारिकर ‘पानीपत में जुटे हैं तो डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी ‘पृथ्वीराज की तैयारी कर रहे हैं।

By Manoj VashisthEdited By: Publish:Thu, 09 Aug 2018 12:38 PM (IST) Updated:Thu, 09 Aug 2018 12:42 PM (IST)
दरअसल: करण जौहर की ‘तख़्त' में मुग़ल सल्तनत
दरअसल: करण जौहर की ‘तख़्त' में मुग़ल सल्तनत

 -अजय ब्रह्मात्मज

करण जौहर ने आज अपनी नई फिल्म ‘तख़्त' की घोषणा की है। अभी केवल यह बताया गया है कि यह फिल्म 2020 में आएगी। इस फिल्म में रणवीर सिंह, करीना कपूर खान, आलिया भट्ट, विकी कौशल, भूमि पेडणेकर, जान्हवी कपूर और अनिल कपूर मुख्य भूमिकाओं में हैं। धर्मा प्रोडक्शन की यह सबसे महत्वाकांक्षी फिल्म है। इस फिल्म से करण जौहर की एक नई निर्देशकीय यात्रा शुरू होगी। वह इतिहास के किरदारों को भव्य भंगिमा के साथ पर्दे पर ले आयेंगे। इस फिल्म की कहानी सुमित राय ने लिखी है घोषणा के अनुसार इसके संवाद हुसैन हैदरी और सुमित राय लिखेंगे। घोषणा में तो नहीं लेकिन करण जौहर ने एक ट्विट में सोमेन मिश्र का उल्लेख किया है।

दरअसल, इस फिल्म के पीछे सोमेन मिश्रा का बड़ा योगदान है। उन्होंने ही इस फिल्म की स्क्रिप्ट तैयार करवाई है। ‘तख्त’ मुग़ल सल्तनत के के बादशाह शाहजहां के अंतिम दिनों की कहानी होगी। बादशाह बीमार हो गए थे और उनके बेटों के बीच तख़्त पर काबिज होने की लड़ाई चालू हो गई थी। हम सभी जानते हैं कि शाहजहां के बाद औरंगजेब हिंदुस्तान के बादशाह बने थे। औरंगजेब की छवि कट्टर मुसलमान शासक की है, जिन्होंने अपने हिसाब से इस्लाम को भारत में फैलाने और मजबूत करने की कोशिश की। उनके शासन कल में ही मुग़ल सल्तनत की चूलें हिलीं और फिर देखते-देखते वह साम्राज्य ख़त्म हो गया। शाहजहां औरंगजेब के दिमाग, इरादे और हरकतों से वाकिफ थे। उन्होंने औरंगजेब को अपनी नजरों से दूर भी रखा था।

उनकी ख्वाहिश थी कि तख्त का वारिस उनका बड़ा बेटा दारा हो। दारा का पूरा नाम दारा शिकोह था। वे संत और सूफी मिजाज के इन्सान थे। तख़्त राज परिवार की कहानी है। इसमें छल कपट, ईर्ष्या, महत्वाकांक्षा, धोखा, मोहब्बत और तख़्त हथियाने का ड्रामा है। करण जौहर परिवार की कहानी से आगे बढ़ कर राज परिवार की कहानी सुनाने-दिखाने आ रहे हैं। हिंदी सिनेमा का यह नया दौर बेहद रोचक और विशाल होने जा रहा है। ’बाहुबली' की कामयाबी ने सभी को संकेत दिया है कि भारतीय इतिहास और मिथक को परदे पर लाने का समय आ गया है। इतिहास के किरदारों को झाड़-पोंछ कर जिंदा किया जा रहा है।

करण जौहर की घोषणा के पहले ही आशुतोष गोवारिकर ‘पानीपत' में जुटे हैं तो डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी ‘पृथ्वीराज' की तैयारी कर रहे हैं। डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी के नाम से याद आया कि कभी वह दारा शिकोह के जीवन पर फिल्म बनाने की सोच रहे थे। उनकी सनी देओल से आरंभिक बातें भी हुई थीं। फिल्म नहीं बन सकी तो उन्होंने दूरदर्शन के धारावाहिक ‘उपनिषद गंगा' में दारा शिकोह पर दो एपिसोड किये थे। ‘उपनिषद गंगा' के पांचवें एपिसोड के दो खण्डों में दारा शिकोह की झलक मिल जाएगी। फिल्म की कास्टिंग से स्पष्ट है कि यह सिर्फ औरंगजेब और दारा शिकोह के संघर्ष और विजय की कहानी नहीं है। इसमें उनकी दोनों बहनें जहांआरा और रोशनआरा की भी भूमिकाएं हैं।

जहांआरा विदुषी और दारा के मिजाज की थीं, इसलिए वह बड़े भाई के समर्थन में थीं और रोशनआरा महल में रहते हुए औरंगजेब की मदद कर रही थीं। इतिहास गवाह है कि सल्तनत कोई भी हो, बादशाहत के लिए भाइयों और रिश्तेदारों में खूनी संघर्ष होते रहे हैं। औरंगज़ेब ने अपने वालिद शाहजहां की ख्वाहिश के खिलाफ जाकर दारा को बंदी बनाया और सजा-ए-मौत दी। वह खुद बादशाह बना और उसने शाहजहां को भी कैदी बना दिया। उसने देश के रियाया पर ज़ुल्म किया। सच तो यही है कि उसके फैसलों से आख़िरकार मुग़ल सल्तनत का ही नुकसान हुआ। कहते हैं शाहजहां के तख़्तनशीं होने के पहले ही जहांगीर ने लाहौर के पीर मियां मीर को आगरा बुलाया था।

हर तताढ़ के मुशाव्रे के बाद उन्होंने शाहजहां के चारों बेटे दारा, शुजा, मुराद और औरंगजेब से उन्हें मिलवाया और पूछा था कि इनमें से कौन बादशाह हो सकता है? मियां मीर ने दारा की तरफ इशारा किया था। दारा कहीं और नेकदिल था। वह पढने-लिखने में रूचि रखता था। उसने 14 साल की छोटी उम्र में अपनी लाइब्रेरी में पढ़ा कि मोहम्मद गजनी ने भारत पर आक्रमण कर सोमनाथ मंदिर को लूटा था। दारा को यह बात समझ में नहीं आई।उन्होंने मिया मीर से अपनी जिज्ञासा रखी। मियां मीर ने उन्हें भारतीय वेद और उपनिषद पढ़ने की सलाह दी और साथ ही कहा कि उपनिषद का फारसी में अनुवाद करो।

हिन्दू शास्त्रों में दारा की रूचि को औरंगजेब ने इस्लाम के खिलाफ कह कर प्रचार किया और मुल्लों को लामबंद किया। उसने यह बात फैलाई कि काफ़िर दारा तख़्त पर बैठा तो हिंदुस्तान में इस्लाम का नाम-ओ- निशां नहीं रह जायेगा। उसने धर्म के नाम पर तख़्त हथियाने की साजिशें कीं और कामयाब रहा। अगर दारा शिकोह को तख़्त मिला होता तो आज हिंदुस्तान कुछ और होता। धर्म के नाम पर चल रही लड़ाइयाँ सदियों पहले ख़त्म हो गयी होतीं। उम्मीद है कि करण जौहर ‘तख़्त' में इस पक्ष को भी रखेंगे।

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