Loksabha Election 2019: नौ में से सात हलकों में गुटों में बंटा शिअद, गुरु कहां से करें शुरू

कभी शिरोमणि अकाली दल का गढ़ रही फतेहगढ़ साहिब सीट पर पार्टी उम्मीदवार दरबारा सिंह गुरु के लिए भीतरी गुटबाजी सबसे बड़ी चुनौती बन गई है।

By Edited By: Publish:Sat, 06 Apr 2019 07:29 PM (IST) Updated:Mon, 08 Apr 2019 01:07 PM (IST)
Loksabha Election 2019: नौ में से सात हलकों में गुटों में बंटा शिअद, गुरु कहां से करें शुरू
Loksabha Election 2019: नौ में से सात हलकों में गुटों में बंटा शिअद, गुरु कहां से करें शुरू

खन्ना, [सचिन आनंद]। शिरोमणि अकाली दल का कभी गढ़ रही फतेहगढ़ साहिब की पंथक सीट पर पार्टी उम्मीदवार दरबारा सिंह गुरु के लिए भीतरी गुटबाजी को खत्म करना किसी जंग को जीतने से कम नहीं है। फतेहगढ़ साहिब लोकसभा सीट के अधीन आने वाले विधानसभा हलकों में शिअद में गुटबाजी इस वक्त अपने चरम पर है। केवल साहनेवाल और अमरगढ़ विधानसभा हलका ही एक ऐसा हलका है जहां पार्टी की भीतरी लड़ाई नहीं के बराबर है।

नौ विधानसभाओं में से साहनेवाल एक सीट है जिस पर 2017 विधानसभा चुनावों में अकाली दल ने जीत हासिल की थी। यहां से पूर्व मंत्री शरणजीत ¨सह ढिल्लो विधायक हैं। अमरगढ़ में भी पूर्व विधायक इकबाल सिंह चूंदा ही शिअद के नेता हैं। सवाल यह है कि कलह के इस आलम में आखिर गुरु मान-मनौवल का काम शुरू कहां से करेंगे। बस्सी पठाना विधानसभा बस्सी पठाना विधानसभा सीट से 2017 में गुरु खुद चुनाव लड़े थे और तीसरे नंबर पर आए थे। 2012 में विधायक बने शिअद के जस्टिस निर्मल सिंह का टिकट 2017 में कटा तो पार्टी की फूट का नुक्सान गुरु को उठाना पड़ा।

यहां पर अब भी जस्टिस निर्मल ¨सह और दरबारा सिंह गुरु के गुटों में खींचतान कायम है। फतेहगढ़ साहिब विधानसभा 2012 विधानसभा चुनाव में शिअद ने विधायक दीदार सिंह भट्टी का टिकट काट प्रेम सिंह चंदूमाजरा को दे दिया। भट्टी पीपीपी से लड़े और जीत कांग्रेस की हुई। भट्टी की शिअद में वापसी हुई और 2017 में उन्हें फिर टिकट मिला।

माना जाता है कि चंदूमाजरा के गुट ने भट्टी को अंदरखाते विरोध किया और फिर से कांग्रेस जीत गई। इस सीट पर अब भी शिअद में इन्हीं दो गुटों की लड़ाई गुरु को भारी पड़ सकती है। अमलोह विधानसभा 2012 में शिअद की टिकट पर चुनाव लड़े जदगीप सिंह चीमा का टिकट काटकर 2017 में युवा नेता गुरप्रीत सिंह राजू खन्ना को चुनाव लड़ाया गया। दोनों के बीच लड़ाई इस कदर चरम पर थी कि चीमा गुट ने पार्टी दफ्तर को ही ताला लगा दिया था। राजू भी हार गए। तब से ही इस विधानसभा सीट पर पार्टी गुटबाजी से उबर नहीं पाई है।

खन्ना विधानसभा 1 अप्रैल को सुखबीर बादल के खन्ना दौरे में दरबारा सिंह गुरु की टिकट की घोषणा होते ही पार्टी की खन्ना सीट पर गुटबाजी भी जगजाहिर हो गई थी। सुखबीर बादल के सामने ही मौजूदा हलका इंचार्ज रणजीत सिंह तलवंडी और यूथ अकाली दल कोर कमेटी के सदस्य यादविंदर सिंह यादू के बीच का कलह लोगों ने देखा। मंच पर जगह नहीं मिलने से यादू और समर्थक जमीन पर बैठ गए। इस गुटबाजी का नुक्सान भी गुरु को झेलना होगा।

पायल विधानसभा सियासी जानकारों के अनुसार इस सीट पर अकाली दल चार धड़ों में बंट गया है। मौजूदा हलका इंचार्ज ईशर सिंह मेहरबान, पूर्व विधायक चरणजीत सिंह अटवाल, पायल नगर कौंसिल प्रधान भूपिंदर सिंह चीमा और 2007 में चुनाव लड़े महेश इंद्र सिंह गरेवाल इस सीट पर शिअद के चार पावर सेंटर बन गए हैं। चार गुटों में बंटी पार्टी को इकट्ठे करने में ही गुरु की पूरी ताकत लग जाएगी। समराला विधानसभा 2017 से पहले इस सीट पर शिअद की सियासत में खीरनिया परिवार का एक छत्र राज रहा था।

2007 में जगजीवन सिंह खिरनिया विधायक बने जो 2012 में हार गए। 2017 में पार्टी ने तत्कालीन जिला प्रधान संता सिंह उमैदपुर को टिकट दी, लेकिन आपसी खींचतान और सत्ता विरोधी लहर के चलते उमैदपुर अपने पैर नहीं जमा पाए। इस सीट पर अब भी पार्टी के दोनों गुटों में सामंजस्य नहीं बन पाया है।

रायकोट विधानसभा कभी अकाली दल का गढ़ रही इस सीट पर भी तीन गुटों में पार्टी बंटी है। पूर्व विधायक रणजीत सिंह तलवंडी, पूर्व विधायक बिक्रमजीत सिंह खालसा के गुट पहले से ही यहां एक दूसरे के सामने थे, लेकिन पार्टी ने 2017 में खालसा का टिकट काट यहां चरणजीत सिंह अटवाल को भेजा और तीसरे गुट का गठन हो गया। पूरी तरह से ग्रामीण वोट बैंक वाली सीट पर गुटबाजी के दलदल से वोट निकालना गुरु के लिए चुनौती से कम नहीं।

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