Jharkhand Assembly Election 2019: चुनाव आते ही जान लेने-देने की बात क्‍यों करने लगे हेमंत सोरेन Special Report

बीते लोकसभा चुनाव में झामुमो का गढ़ माने जाने वाले संताल से पिता शिबू सोरेन की करारी हार के साथ ही सूपड़ा साफ हो जाने से असहज नेता प्रतिपक्ष के लिए विधानसभा चुनाव करो या मरो जैसा ह

By Alok ShahiEdited By: Publish:Sun, 15 Sep 2019 01:18 PM (IST) Updated:Sun, 15 Sep 2019 10:31 PM (IST)
Jharkhand Assembly Election 2019: चुनाव आते ही जान लेने-देने की बात क्‍यों करने लगे हेमंत सोरेन Special Report
Jharkhand Assembly Election 2019: चुनाव आते ही जान लेने-देने की बात क्‍यों करने लगे हेमंत सोरेन Special Report

रांची, [आलोक]। चुनाव आते ही नेता प्रतिपक्ष और झारखंड के पूर्व मुख्‍यमंत्री हेमंत सोरेन जान लेने और जान देने की बात करने लगे हैं। सत्‍तारुढ़ भाजपा के खिलाफ बेहद आक्रामक तेवर दिखा रहे हेमंत फिलहाल बदलाव यात्रा पर हैं। वे जनता से बदलाव के लिए वोट देने की अपील कर रहे हैं। ऐसे में चुनाव विश्‍लेषकों का मानना है कि बीते लोकसभा चुनाव में झामुमो का गढ़ माने जाने वाले संताल से पिता शिबू सोरेन की करारी हार के साथ ही सूपड़ा साफ हो जाने से असहज नेता प्रतिपक्ष के लिए विधानसभा चुनाव करो या मरो जैसा है। इस लिहाज से वे इस तरह  के आक्रामक बयान दे रहे हैं।

बीते दिन सरायकेला में बदलाव यात्रा के के दौरान हेमंत ने केंद्र और राज्‍य की भाजपा सरकारों पर निशाना साधते हुए कहा था कि वे झारखंड को बचाने के लिए अपनी जान दे सकते हैं और ले भी सकते हैं। झामुमो की राजनीति पर नजदीकी नजर रखने वाले जानकारों का कहना है कि इस बार विधानसभा चुनाव में अगर फिर से भाजपा सत्‍ता में आती है तो पार्टी बेहद असुरक्षित हो जाएगी। ऐसे में हेमंत अपने कार्यकर्ताओं में जोश भरने के लिए खास रणनीति के तहत ऐसे बयान दे रहे हैं।

वर्ष 2000 में झारखंड बनने के बाद से ही इस जल-जंगल-जमीन वाले वन प्रदेश में झारखंड मुक्ति मोर्चा की धाक रही है। आदिवासी बहुल इलाकों में उसकी गहरी पैठ का हाल यह है कि जेएमएम के विरोधी अब तक के चुनावों में यहां बुरी तरह मात खा चुके हैं। हालांकि बीते लोकसभा चुनाव में संथाल में भाजपा की धमक ने झामुमो की मिट्टी पलीद कर दी। अपने गढ़ दुमका को गंवाने के बाद से अब तक गुरुजी शिबू सोरेन भी सदमे में हैं। इस लिहाज से भी विधानसभा चुनावों की सुगबुगाहट के बीच छह साल में केंद्र की मोदी सरकार व पांच साल में राज्य की रघुवर सरकार के कामकाज पर तीखी टिप्‍पणी करना हेमंत सोरेन की चुनावी मजबूरी बन गई है।

महागठबंधन का नेता मानने से इन्‍कार करने पर कांग्रेस पर भी निकाल रहे खीझ
कांग्रेस के पूर्व अध्‍यक्ष राहुल गांधी के जमाने में हेमंत सोरेन की अगुआई में झारखंड विधानसभा चुनाव लड़े जाने का फैसला किया गया था। तब विपक्षी दलों कांग्रेस, झामुमो, झाविमो और राजद के नेताओं की ओर से दिल्‍ली में इस आशय का प्रस्‍ताव पारित कर एक चिट्ठी जारी की गई थी। वर्तमान दौर में कांग्रेस के प्रदेश नेतृत्‍व में परिवर्तन के बाद प्रदेश अध्‍यक्ष रामेश्‍वर उरांव ने कई बार सार्वजनिक मंच से हेमंत के महागठबंधन के नेता होने के दावे को खारिज कर दिया है। ऐसे में कांग्रेस पर भी इन बयानों के जरिये खीझ निकाल रहे हैं।

जान लेने और जान देने के हालिया बयान को संपूर्णता में देखा जाय तो इसका एक मायना यह भी है कि ऐसे बयान देकर वे विपक्षी पार्टियों के अगुआ होने की दावेदारी कर रहे हैं। पूर्व मुख्‍यमंत्री बाबूलाल मरांडी की झाविमो, कांग्रेस और राजद को विपक्ष में दूसरी पंक्ति में खड़ा करने की रणनीति भी यहां काम आ रही है। ताकि भविष्‍य में भाजपा विरोधी वोटों के बिखराव को रोकने के लिए जो विपक्षी महागठबंधन बने, उसमें सर्वमान्‍य रूप से झामुमो के नेता हेमंत सोरेन को मुख्‍यमंत्री पद का उम्‍मीदवार घोषित किया जा सके।

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