गुजरात चुनाव 2017: भाजपा के व्यूह के सामने बेबस कांग्रेस

भाजपा ने गुजरात में चुनाव के मायने बदल दिये हैं, चुनाव लड़ने का रंग ढंग और तौर तरीके बदल दिये हैं।

By Manish NegiEdited By: Publish:Wed, 22 Nov 2017 08:04 PM (IST) Updated:Thu, 23 Nov 2017 10:41 AM (IST)
गुजरात चुनाव 2017: भाजपा के व्यूह के सामने बेबस कांग्रेस
गुजरात चुनाव 2017: भाजपा के व्यूह के सामने बेबस कांग्रेस

प्रशांत मिश्र। दो दशक से ज्यादा वक्त से पार्टी प्रदेश की सत्ता से बेदखल हो और पूरे देश में उसकी रीति नीति के खिलाफ तेज बयार हो तो ऐसा ही होता है जैसा गुजरात में कांग्रेस का हाल है। दिखाने को उत्साह का नया संचार हुआ है। जातिगत और सामाजिक समीकरण दुरुस्त करने का दावा किया जा रहा है, लेकिन भरोसा..? जनता की बात तो छोड़िए खुद कांग्रेस के नेताओं से बंद कमरे में पूछ लीजिए तो पता चल जाएगा।

एक तरफ नीचे से लेकर ऊपर तक मजबूत संगठन, मोदी जैसा सशक्त चेहरा और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह जैसा मेहनतकश संगठनकर्ता। दूसरी ओर कांग्रेस में पांच प्रदेश अध्यक्ष और सवा सौ के आसपास अन्य पदाधिकारी। इसी से आप सांगठनिक ढांचे का अंदाजा लगा सकते हैं। टूटे-फूटे व आधे अधूरे मन से यहां गुजरात कांग्रेस चुनावी समर में उतरी है।

भाजपा ने गुजरात में चुनाव के मायने बदल दिये हैं, चुनाव लड़ने का रंग ढंग और तौर तरीके बदल दिये हैं। पारंपरिक चुनाव को हाईटेक कर दिया है और उसे इतना आगे लाकर खड़ा कर दिया है कि कांग्रेस अगर अब चाह भी ले तो मजबूती से मुकाबले की तैयारी में लगभग एक साल लग जाएगा। जातिगत समीकरण बनाने की कांग्रेस की कोशिश भी पूरी तरह परवान नहीं चढ़ सकी।

भाजपा ने प्रदेश स्तरीय कार्यालय की तर्ज पर जिला, तहसील व ब्लाक स्तर पर भी पार्टी कार्यालय बनाये हैं। ये सभी कार्यालय लगातार एक दूसरे के संपर्क में रहते हैं। रोजाना निगरानी होती है, जिसकी रिपोर्ट पर कई स्तरों पर अमल किया जाता है। खुद शाह रोजाना तीन बजे सुबह तक वार रूम और भाजपा के मीडिया कार्यालय में पूरे दिन की रिपोर्ट का मंथन भी करते हैं और आगे का रास्ता भी बताते हैं। पार्टी अपनी चुनावी तैयारियां पिछले एक साल से कर रही है। वह बूथ स्तर से भी नीचे मतदाता सूची के आधार पर पन्ना प्रमुखों की नियुक्ति तक काम में लगा चुकी है। उनके ऊपर निगरानी समितियां काम कर रही हैं। प्रदेश अध्यक्ष और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक उन पन्ना प्रमुखों से मुखातिब होकर प्रोत्साहित कर चुके हैं।

वहीं कांग्रेस अपने घिसे पिटे पारंपरिक नुस्खों से ही चुनावी समर में है। उसकी नौजवान पीढ़ी थोड़ा बहुत उसे हाईटेक बनाना चाहती है तो भी उसके नेता आपसी काटछांट और उलटबांसी बयानबाजी से उसे पीछे खींच लेते हैं।

कांग्रेस दफ्तर और भाजपा के दफ्तर में ही चुनावी तैयारियों का लेखा जोखा खुद बताता है कि वे एक दूसरे से कितना आगे खड़े हैं। भाजपा मुख्यालय कमलम् तो इतना हाईटेक है कि उसमें आधुनिक प्रौद्योगिकी के मार्फत मीडिया को रिसर्च सामग्री और इलेक्ट्रानिक मीडिया को हर संभव फीड मुहैया कराई जा रही है। यह कार्यालय चौबीस घंटे खुले हैं। वहीं दफ्तर से सटे एक मैदान में हैलीपैड तैयार है, जहां से कभी भी कोई नेता किसी भी चुनाव क्षेत्र के लिए प्रस्थान कर सकता है। अथवा किसी अन्य जगह से पार्टी कार्यालय पहुंच सकता है।

भाजपा नेता भरत भाई पांड्या कहते हैं ' कांग्रेस के भावी राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी को पहले शाला भेजें और राजनीति का 'क ख ग' सिखाएं। उसके बाद ही गुजरात में चुनाव लड़ने के लिए भेजना चाहिए। गुजरात में वह जिस तरह चुनावी दौरे कर रहे हैं और बाहें चढ़ाकर सभाओं को संबोधित कर रहे है, वह गुजरात के मिजाज को शायद समझ ही नहीं पाये हैं। न वह यहां का इतिहास समझते हैं और नहीं भूगोल और न ही समाजशास्त्र।

सच बात तो यह है कांग्रेस संगठन के एक बड़े नेता ने भी कहा कि पार्टी के पास यहां संगठन नाम की कोई चीज नहीं बची है। संगठन के नाम पर जिलों में नेता बचे हैं, लेकिन उस नेताओं के अपने कार्यकर्ता तो हैं, संगठन के नहीं।

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