Bihar Assembly Election 2020: तब सीम के पत्ते और खजूर की कूची से लिखी जाती थी प्रत्याशियों की किस्मत

1970 के दशक में इन सब से दूर प्रत्याशियों की किस्मत सीम के पत्ते और खजूर की कूची से लिखी जाती थी। उस वक्त प्रचार प्रसार के लिए अभी के जैसा ना तो सोशल साइट था और ना ही अखबार और टेलीविजन का इतना प्रचार प्रसार था।

By Dilip ShuklaEdited By: Publish:Fri, 09 Oct 2020 08:19 PM (IST) Updated:Fri, 09 Oct 2020 08:19 PM (IST)
Bihar Assembly Election 2020:  तब सीम के पत्ते और खजूर की कूची से लिखी जाती थी प्रत्याशियों की किस्मत
5 दशक से राजनीति में सक्रिय अंगराज राय

जमुई [अमित कुमार राय]। बिहार में विधानसभा चुनाव को लेकर इन दिनों प्रचार का तरीका हाईटेक हो गया है। विभिन्न दलों के प्रत्याशी चुनाव प्रचार में सोशल नेटवर्किंग साइट का धड़ल्ले से इस्तेमाल कर रहे हैं। लेकिन एक समय ऐसा भी था जब इन सब से दूर प्रत्याशियों की किस्मत सीम के पत्ते और खजूर की कूची से लिखी जाती थी।

71 वर्षीय भाजपा नेता और पिछले 5 दशक से राजनीति में सक्रिय अंगराज राय बताते हैं कि सन 1977 की बात है । उस वक्त निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चकाई विधानसभा क्षेत्र से फाल्गुनी प्रसाद यादव तराजू चुनाव चिन्ह से प्रत्याशी थे। उस वक्त प्रचार प्रसार के लिए अभी के जैसा ना तो सोशल साइट था और ना ही अखबार और टेलीविजन का इतना प्रचार प्रसार था। ग्रामीण क्षेत्रों में तो मुख्य रूप से जनसंपर्क और दीवार लेखन से ही प्रत्याशियों का प्रचार प्रसार होता था। लेकिन उस वक्त प्रत्याशियों के पास पैसे की कमी और संसाधन का अभाव होने के कारण सीम के पत्ते और खजूर के डाली की कूची से प्रत्याशियों की किस्मत लिखी जाती थी ।उन दिनों को याद करते हुए भाजपा नेता बताते हैं कि सुबह 8 बजे से ही सभी कार्यकर्ताओं की टोली झोले में सीम का पत्ता और खजूर के डंठल की कूची लेकर क्षेत्र में निकल जाते थे । इस दौरान दिनभर पैदल गांव-गांव में घूम-घूम कर दीवारों पर सीम के पत्ते से चुनाव चिन्ह और प्रत्याशियों के नाम का लेखन किया जाता था। वहीं देर शाम होने पर कार्यकर्ता घर लौट आते थे । घर लौटने के बाद कार्यकर्ता देर रात तक घर या दूसरे घरों में लगे पत्ते तोड़ तोड़ कर जमा करते थे । यह सिलसिला रात 10 बजे से 11 बजे तक चलता था। उसके बाद सभी कार्यकर्ता सो जाते थे। फिर सुबह उठकर पत्ते को लेकर सभी कार्यकर्ता क्षेत्र में निकल जाते थे। पूरे एक माह तक दिन भर यही प्रचार-प्रसार का तरीका खूब चलता था । आज के समय को याद करते हुए भाजपा नेता बताते हैं कि अब वैसा प्रचार का तरीका नहीं रहा और ना तो ऐसे निष्ठावान कार्यकर्ता रहे।

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