तंत्र के गणः JNU के शोधार्थी तीर्थांकर गरीब बच्चों के जीवन में भर रहे रंग
शोध छात्र तीर्थांकर के मुताबिक, वह यह सब नाम पाने के लिए नहीं करते हैं। उन्होंने कहा, व्यक्तिगत तौर पर मेरा मानना है कि यदि आप शिक्षित हैं तो आपका कर्तव्य है कि आप अशिक्षित वर्ग के लिए आगे आएं।
नई दिल्ली (अभिनव उपाध्याय)। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में इंटरनेशनल स्टडीज में शोध के छात्र तीर्थांकर भट्टाचार्य गरीब छात्रों को पढ़ाने के साथ ही आर्थिक मदद भी करते हैं। उनके प्रयास से जेएनयू कैंपस में काम करने वाले मजदूर की बेटी आज डीयू के कमला नेहरू कॉलेज में बीए ऑनर्स की पढ़ाई कर रही है।
न के सिन च्यांग के अल्पसंख्यक समुदाय उग्घूर पर शोध कर रहे तीर्थांकर ने बताया कि वह यह सब नाम पाने के लिए नहीं करते हैं। उन्होंने कहा, व्यक्तिगत तौर पर मेरा मानना है कि यदि आप शिक्षित हैं तो आपका कर्तव्य है कि आप अशिक्षित वर्ग के लिए आगे आएं।
वह चाहते हैं देश का हर व्यक्ति शिक्षित हो। खासकर उपेक्षित तबके के लिए लोग कार्य करें। जेएनयू में कई और छात्र हैं जो अपने प्रयास से ऐसा कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि जेएनयू परिसर में काम करने वाले अस्थायी कामगारों के बच्चे स्कूल नहीं जा पाते।
हम लोगों ने उन मजदूरों के बच्चों की तरफ ध्यान देना शुरू किया जो संसाधन के अभाव में पढ़ने नहीं जा सके। इसलिए हम यहां के मजदूरों के बच्चों को निकट के नगर निगम स्कूल में दाखिला दिलाते हैं और खुद भी तीन घंटे पढ़ाते हैं।
उन्होंने कहा, मेरा कोई गैर सरकारी संगठन नहीं है। इसलिए यह सब अपने स्तर ही करता हूं। उच्चशिक्षा की पढ़ाई के साथ सामाजिक गतिविधियों के लिए समय निकालने के बारे में तीर्थाकर का कहना है कि जो लोग समय न होने की बात करते हैं वह बहाना बनाते हैं।
यदि अपने लिए समय है तो दूसरों के लिए समय निकाला जा सकता है। उन्होंने कहा, मुङो खुशी है कि हमने प्रियंका बघेल को 12वीं तक पढ़ाया और अब वह डीयू के कमला नेहरू कॉलेज में बीए ऑनर्स कर रही है। प्रियंका अब आगे भी गरीब बच्चों को पढ़ाने में मदद करेगी।
जेएनयू के कुलपति प्रो. एसके सोपोरी ने कहा कि तीर्थाकर पढ़ाई के साथ-साथ इस तरह की गतिविधियों में भी लगे रहते हैं। यह उनकी समाज के प्रति निष्ठा को दर्शाता है। गणतंत्र दिवस को देश के लोगों को उत्सव की तरह मनाना चाहिए।
यह भी ध्यान रखना चाहिए कि यह सिर्फ एक दिन का उत्सव नहीं है। इस दिन और इस उपलब्धि को हासिल करने के लिए वीरों को बलिदान होना पड़ा है।