Delhi Water Crisis: यमुना नदी का जलस्तर कम होने से दिल्ली में जलापूर्ति व्यापक रूप से हो रही प्रभावित

Delhi Water Crisis गर्मी के दिनों में दिल्ली समेत तमाम इलाकों में जल संकट पैदा होना कोई नई बात नहीं है। परंतु तमाम वादों और दावों के बीच इस स्थिति में सुधार न हो पाना गंभीर चिंता का विषय है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Publish:Sat, 21 May 2022 12:28 PM (IST) Updated:Sat, 21 May 2022 12:28 PM (IST)
Delhi Water Crisis: यमुना नदी का जलस्तर कम होने से दिल्ली में जलापूर्ति व्यापक रूप से हो रही प्रभावित
राजधानी दिल्ली में पेयजल संकट का हो स्थायी समाधान

शुभम कुमार सानू। राजधानी दिल्ली में पेयजल की समस्या कोई नई बात नहीं है। गर्मी के मौसम में आपूर्ति की कमी एवं अत्यधिक खपत की वजह से यह समस्या और भी विकराल हो जाती है। संबंधित आंकड़ों के अनुसार दिल्ली में प्रत्येक घर को औसतन चार घंटे पानी की आपूर्ति की जाती है, पर वास्तव में कई ऐसे क्षेत्र हैं, जहां कई दिनों तक पानी का आपूर्ति नहीं हो पाती है। अगर होती भी है तो उसकी गुणवत्ता सही नहीं होती है।

जल संकट के बीच जिन क्षेत्रों में टैंकर के द्वारा पानी पहुंचाया जाता है वहां की स्थिति और भी विकराल है। दिल्ली जल बोर्ड और बीती जनगणना के आंकड़ों के अनुसार दिल्ली के 33.41 लाख घरों में से केवल 20 लाख घरों में ही पाइप लाइन की व्यवस्था है। शेष बचे घरों में जलापूर्ति मुख्य रूप से टैंकर के द्वारा की जाती है। इन क्षेत्रों में लोगों को घर का सारा काम छोड़कर टैंकर से पानी लेने के लिए घंटों लाइन में लगना होता है।

दिल्ली में वर्तमान जल संकट के लिए दिल्ली सरकार के अनुसार मुख्य रूप से जिम्मेदार हरियाणा की सरकार है, जो दिल्ली को उसके हिस्से का पानी नहीं मुहैया करा रही है, जिस कारण यमुना नदी का जलस्तर काफी कम हो गया है। इससे दिल्ली में पेयजल का उत्पादन प्रभावित हो रहा है। साथ ही जलापूर्ति लगभग 50 प्रतिशत तक प्रभावित हुई है। यमुना का जल स्तर सामान्य होने तक जल संकट कायम रहने की आशंका जताई जा रही है।

वहीं हरियाणा सरकार का कहना है कि प्रत्येक वर्ष दिल्ली में जल संकट के लिए हरियाणा सरकार को जिम्मेदार ठहराना दिल्ली सरकार की आदत बन गई है। पर वास्तविकता यह है कि जल समझौते एवं उच्च न्यायालय के दिशानिर्देश के अनुसार हरियाणा प्रतिदिन दिल्ली को 1069 क्यूसेक पानी उपलब्ध करा रहा है। पर दिल्ली सरकार 150 क्यूसेक और अधिक पानी की मांग कर रही है, जो वर्तमान परिस्थिति एवं हरियाणा के लोगों को ध्यान में रखते हुए संभव नहीं है। दिल्ली सरकार को चाहिए कि वह पंजाब सरकार को कहे कि वह हरियाणा के हिस्से का पानी उसे दे ताकि हरियाणा दिल्ली की मदद कर सके। हरियाणा सरकार का यह भी कहना है कि दिल्ली सरकार जल प्रबंधन की व्यवस्था में सुधार नहीं कर रही है, अगर वह समुचित स्तर पर प्रयास करे तो दिल्ली की जल समस्या का समाधान संभव हो सकता है। इन विवादों से इतर दिल्ली की वर्तमान जल समस्या की मूल जड़ मुख्य रूप से कुछ प्रमुख कारकों में निहित है।

खपत और आपूर्ति में अंतर : वर्ष 2011 की जनगणना आंकड़ों के अनुसार दिल्ली की आबादी 1.67 करोड़ थी, जिसके 2021 में सवा दो करोड़ का आंकड़ा पार कर जाने का अनुमान है। इस कारण पानी की मांग प्रतिदिन 1380 एमजीडी (मिलियन गैलन प्रतिदिन) हो चुकी है। दिल्ली आर्थिक सर्वेक्षण 2021 के डाटा के अनुसार दिल्ली जल बोर्ड प्रतिदिन 935 एमजीडी पानी की ही आपूर्ति कर पाता है। इस हिसाब से राजधानी में मांग की तुलना में करीब 445 एमजीडी (यानी 32 प्रतिशत) कम पानी की आपूर्ति हो पा रही है। लिहाजा यहां के कई इलाकों जल संकट की समस्या उत्पन्न हो जाती है।

अन्य राज्यों पर निर्भरता : राजधानी में पानी की मांग मुख्य रूप से पड़ोसी राज्यों द्वारा उपलब्ध कराए गए पानी पर निर्भर है। दिल्ली आर्थिक सर्वेक्षण 2021 के अनुसार अर्ध-शुष्क क्षेत्र में होने के कारण दिल्ली में पानी की उपलब्धता काफी कम है। यहां लगभग 41 प्रतिशत पानी यमुना, 26.5 प्रतिशत गंगा, 23.1 प्रतिशत भाखड़ा स्टोरेज एवं 8.8 प्रतिशत भूजल से प्राप्त होता है। गर्मी के दिनों में जब इन राज्यों में भी पानी की समस्या होती है तो वे दिल्ली को आपूर्ति कम कर देते हैं, जिस वजह से पानी की और भी किल्लत होती है।

भूजल का क्षय : दिल्ली में भूजल का अत्यधिक दोहन होने के कारण इसका स्तर साल दर साल गिरता जा रहा है। भूजल का दोहन रोकने के लिए अनेक उपाय किए गए हैं, परंतु यह अनवरत जारी है। हाल ही में जब देश के कई शहरों में भूजल स्तर के काफी नीचे चले जाने और यहां तक कि भूजल के लगभग खत्म हो जाने की खबरें आ रही हों तो हमें इस बारे में अधिक चिंता करनी चाहिए।

अपशिष्ट जल प्रबंधन : पानी का लगभग 80 प्रतिशत हिस्सा एक बार उपयोग के बाद अपशिष्ट जल के रूप में नाले में बेकार बह जाता है। व्यक्तिगत स्तर पर भी पानी की खूब बर्बादी होती है। लोग पेयजल का इस्तेमाल वाशिंग मशीन और वाहन धोने आदि के लिए भी करते हैं। साथ ही भूजल को पीने योग्य बनाने के लिए वाटर प्यूरीफायर मशीनों का धड़ल्ले से उपयोग किया जाता है। इसमें पानी की बहुत बर्बादी होती है।

इन सभी समस्याओं के समाधान के लिए सरकार और समाज को जल संरक्षण की दिशा में कार्य करने की आवश्यकता है। भारत सरकार ने अपनी दूरदर्शिता दिखाते हुए 2019 में ही जल से जुड़े सभी मामलों के लिए एक विशेष जल शक्ति मंत्रलय का गठन किया, ताकि एक पूरा विभाग सभी तक स्वच्छ जल की उपलब्धता सुनिश्चित कर सके। परंतु दिल्ली का वर्तमान जल संकट यह दर्शाता है कि मंत्रलय सुदूर ग्रामीण क्षेत्र तो छोड़िए दिल्ली में भी सभी को जल उपलब्ध कराने में अभी तक पूरी तरह से सक्षम नहीं हुआ है।

ऐसे में आज आवश्यकता इस बात की है कि यमुना नदी को पूरी तरह से प्रदूषण मुक्त करते हुए स्वच्छ बनाया जाए, ताकि शहर की मुख्य जल धमनी सभी जनमानस को स्वच्छ पानी दे सके। आज यमुना भारत की सबसे प्रदूषित नदी बन चुकी है। इस स्थिति को सामुदायिक प्रयास के साथ बदलना होगा। इसके अलावा दिल्ली सरकार को वर्षा जल संरक्षण को प्रोत्साहित करते हुए इस संबंध में ढांचागत सुधार भी करना होगा। साथ ही जल संचयन और संरक्षण को सामाजिक विमर्श के केंद्र में लाते हुए सभी की सहभागिता को सुनिश्चित करना होगा।

[शोधार्थी, दिल्ली स्कूल आफ इकनोमिक्स]

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