बेटी के लिवर को दान कर पिता ने पेश की मिसाल, दो लोगों को मिली नई जिंदगी

अपोलो अस्पताल में दिमागी रूप से मृत महिला के पिता ने बेटी के लिवर को दान कर दो लोगों की जान बचाकर मिसाल पेश की हैं।

By Mangal YadavEdited By: Publish:Sun, 14 Apr 2019 02:18 PM (IST) Updated:Sun, 14 Apr 2019 02:30 PM (IST)
बेटी के लिवर को दान कर पिता ने पेश की मिसाल, दो लोगों को मिली नई जिंदगी
बेटी के लिवर को दान कर पिता ने पेश की मिसाल, दो लोगों को मिली नई जिंदगी

नई दिल्ली, जेएनएन। अपोलो अस्पताल में दिमागी रूप से मृत महिला के पिता ने बेटी के लिवर को दान कर दो लोगों की जान बचाकर मिसाल पेश की हैं। संध्या(32) का इलाज अपोलो अस्पताल में पिछले कई दिनों से चल रहा था, लेकिन करीब एक हफ्ते पहले डॉक्टरों ने बताया कि उनका ब्रेन डेड हो चुका है। इसके बाद संध्या के पिता जय भगवान जाटव ने डॉक्टरों की सहमति से अपनी बेटी के लिवर को दान करने का फैसला लिया।

जय भगवान को कई लोगों ने अंग दान करने से मना किया। लेकिन, उन्होंने कहा कि उनकी बेटी लोगों की मदद को हमेशा तैयार रहती थी। ऐसे में यदि वह बोल पाती तो वह भी शायद अंगदान करने को ही कहती। बृहस्पतिवार को डॉक्टरों ने संध्या का लिवर महाराष्ट्र व असम के दो लोगों में ट्रांसप्लांट कर दिया। डाक्टरों ने मरीजों की पहचान छिपाते हुए बताया कि उनकी उम्र 45 व 49 वर्ष है।

संध्या अपने परिवार के साथ सफदरजंग एन्क्लेव में रहती थीं। उन्होने 2008 में लेडी श्री राम कॉलेज से स्नातक करने के बाद एमिटी कॉलेज से यात्र और पर्यटन में डिग्री ली। इसके बाद अपने घर के बाहर ही एक टूर एंड ट्रैवल्स एजेंसी खोल ली। 2014 में उन्हे किडनी में संक्रमण हो गया। जिसका इलाज चल रहा था । 18 मार्च को उनकी तबीयत खराब होने के कारण उन्हे अपोलो अस्पताल में भर्ती करवाया गया। डाक्टरों ने बताया कि उनकी दोनों किडनी खराब हो चुकी हैं। हालत इतनी खराब थी कि उन्हे एक हफ्ते में तीन बार डायलिसिस पर रखा जा रहा था। पिछले हफ्ते डाक्टरों ने उन्हे दिमागी रूप मृत घोषित कर दिया था।

जाति-धर्म से ऊपर उठकर करें अंगदान : जय भगवान

संध्या के पिता जय भगवान जाटव ने कहा कि लोगों को अंधविश्वास पर भरोसा न करके एक-दूसरे की मदद को आगे आना चाहिए। हम सभी का खून एक जैसा है। जिनको मेरी बेटी का अंग प्रत्यारोपित किया गया उनको मैंने देखा तक नहीं। यह भी नहीं पता किया कि वे किस जाति-धर्म के हैं। मैंने सिर्फ इंसानियत के नाते उनकी मदद की है।

बिना किसी भेदभाव के सबको अंग दान करना चाहिए, ताकि हमारे ही भाई-बहनों की जिंदगी संवर सके। इसमें कोई बुराई नही है। मेरी बेटी के दोस्तों ने भी किसी गुरु की बातों में आकर उसे सही करने की कोशिश की, लेकिन वह ठीक नहीं हुई। इसलिए हमें अंधविश्वास पर नहीं, विज्ञान पर भरोसा करना चाहिए। हमारी एक पहल कई लोगों की जिंदगी बदल सकती है।

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