दिल्ली के चुनावी रण से मिली सितारों को राजनीतिक पहचान, राजेश खन्ना से लेकर गौतम गंभीर तक लिस्ट में हैं ये नाम

दिल्ली देश की राजधानी होने के साथ ही राजनीति की धुरि भी है। दिल्ली के चुनावी समर में अभिनेताओं के उतरने की कहानी 1991 में शुरू हुई। लोकसभा चुनाव में उस समय के मशहूर अभिनेता राजेश खन्ना ने यहां से राजनीति में कदम रखा था। भाजपा के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी की राजनीतिक राह मुश्किल बनाने के लिए कांग्रेस ने खन्ना को नई दिल्ली के रण में उतार दिया।

By Jagran NewsEdited By: Pooja Tripathi Publish:Thu, 18 Apr 2024 10:10 AM (IST) Updated:Thu, 18 Apr 2024 10:10 AM (IST)
दिल्ली के चुनावी रण से मिली सितारों को राजनीतिक पहचान, राजेश खन्ना से लेकर गौतम गंभीर तक लिस्ट में हैं ये नाम
दिल्ली ने हमेशा दी सितारों को पहचान। फाइल फोटो

HighLights

  • फिल्मी सितारों से लेकर खिलाड़ियों तक को मिली पहचान
  • राजेश खन्ना ने लालकृष्ण आडवाणी को दी थी कड़ी टक्कर

संतोष कुमार सिंह, नई दिल्ली। राजधानी देश के बड़े राजनीतिज्ञों की कर्मभूमि रही है। सुचेता कृपलानी से लेकर अटल-आडवाणी और सुषमा स्वराज सहित कई राजनीतिक दिग्गजों ने संसद में यहां से प्रतिनिधित्व किया है।

राजनीतिज्ञों के साथ ही रुपहले पर्दे और खेल के मैदान में चमक बिखरने वालों को भी यहां से नई पहचान मिली है। कई कलाकार और खिलाड़ी राजधानी से चुनाव मैदान में उतरने के बाद राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति में अपनी पहचान बनाने में सफल रहे हैं।

राजेश खन्ना ने आडवाणी को दी थी कड़ी चुनौती

दिल्ली के चुनावी समर में अभिनेताओं के उतरने की कहानी 1991 में शुरू हुई। लोकसभा चुनाव में उस समय के मशहूर अभिनेता राजेश खन्ना ने यहां से राजनीति में कदम रखा था।

भाजपा के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी की राजनीतिक राह मुश्किल बनाने के लिए कांग्रेस ने खन्ना को नई दिल्ली के रण में उतार दिया। भाजपा को अपने शीर्ष नेता को गुजरात के गांधीनगर से भी चुनाव लड़ाने का फैसला करना पड़ा था।

हालांकि आडवाणी मुश्किल से लगभग डेढ़ हजार मतों से अपनी सीट बचा सके थे। गांधीनगर से उन्हें बड़ी जीत मिली थी और दिल्ली छोड़कर गुजरात को अपनी राजनीतिक कर्मभूमि बना ली।

जिस पर 1992 में उपचुनाव हुआ, जिसमें कांग्रेस ने फिर से राजेश खन्ना को टिकट दिया। भाजपा ने शत्रुघ्न सिन्हा को मैदान में उतारा था। रोचक मुकाबले में शत्रुघ्न को पराजय का सामना करना पड़ा।

चेतन, कीर्ति और गंभीर कर चुके हैं चुनावी पिच पर बैटिंग

मतदाताओं को साधने के लिए दिल्ली में राजनीतिक दल अभिनेताओं और खिलाड़ियों की लोकप्रियता का सहारा लेते रहे हैं

अपने जमाने के धाकड़ बल्लेबाज चेतन चौहान व कीर्ति आजाद के साथ गौतम गंभीर भी दिल्ली में चुनावी किस्मत आजमा चुके हैं। चौहान भाजपा के टिकट पर वर्ष 1991 में उत्तर प्रदेश के अमरोहा से लोस चुनाव जीते थे।

2009 में पार्टी ने उन्हें पूर्वी-दिल्ली सीट से उम्मीदवार बनाया, लेकिन हार का सामना करना पड़ा। बाद में वह उप्र सरकार में मंत्री बने।

कीर्ति आजाद को पार्टी ने लोकसभा के बजाय वर्ष 1993 में गोल मार्केट विस क्षेत्र से चुनाव लड़ाया था और वह विजयी हुए थे। वर्ष 1998 के विस चुनाव में हार का सामना करना पड़ा था।

बाद में वह बिहार के दरभंगा से भाजपा के टिकट पर जीतकर संसद पहुंचे थे। भाजपा ने 2019 में गौतम गंभीर को चुनाव मैदान में उतारा था और विजयी रहे थे।

विजेंदर सिंह राजनीतिक रिंग में उतर चुके हैं

कांग्रेस ने अंतरराष्ट्रीय मुक्केबाज विजेंदर सिंह को वर्ष 2019 में दक्षिणी दिल्ली से चुनाव मैदान में उतारा था, परंतु उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। कुछ दिनों पहले वह भाजपा में शामिल हो गए हैं।

विश्वजीत चटर्जी भी लड़ चुके हैं यहां से चुनाव

कजरा मोहब्बत वाला, अंखियों में ऐसा डाला... गीत में अपने अभिनय का दम दिखा चुके फिल्म अभिनेता विश्वजीत वर्ष 2014 के चुनाव में नई दिल्ली लोकसभा सीट से तृणमूल कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ चुके हैं। वह बुरी तरह से हार गए थे। फरवरी 2019 में भाजपा में शामिल हो गए थे।

चांदनी चौक से स्मृति इरानी चुनावी रण में उतरी थीं

टीवी धारावाहिक क्योंकि सास भी कभी बहू थी में तुलसी का किरदार निभाने वाली स्मृति इरानी ने दिल्ली से चुनावी रण में कदम रखा था।

भाजपा ने 2004 में उन्हें कांग्रेस के कपिल सिब्बल के खिलाफ चांदनी चौक से उतारा था। उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा था, परंतु राजनीतिक क्षितिज पर उनकी चमक लगातार बढ़ती गई।

2014 चुनाव में उन्होंने अमेठी से राहुल गांधी जबरदस्त टक्कर दी, लेकिन जीत में नहीं बदल सकी थीं, फिर भी पीएम मोदी ने उन पर भरोसा जताते हुए सरकार में केंद्रीय मंत्री बनाया।

उसके बाद उन्होंने 2019 में राहुल को अमेठी से पराजित कर वायनाड जाने को मजबूर कर दिया। उन्हें दोबारा केंद्र में मंत्री बनाया गया। इस बार भी उन्हें अमेठी से उम्मीदवार बनाया है।

मनोज तिवारी और हंसराज हंस भी यहां से संसद पहुंचे

समाजवादी पार्टी के टिकट पर गोरखपुर से योगी आदित्यनाथ के हाथों पराजित होने के बाद भोजपुरी कलाकार मनोज तिवारी को राजनीतिक पहचान दिल्ली में ही मिली।

वह वर्ष 2013 में भाजपा में शामिल हुए और 2014 एवं 2019 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली सीट से संसद पहुंचे। इस बार भी वह प्रत्याशी बनाया है। वर्ष 2016 में उन्हें दिल्ली प्रदेश भाजपा अध्यक्ष भी बनाया गया।

पंजाबी गायक हंसराज हंस को पहली चुनावी सफलता भी दिल्ली से मिली। शिअद बादल के टिकट पर पंजाब में चुनाव हारे हंस भाजपा के टिकट पर वर्ष 2019 में उत्तर-पश्चिमी दिल्ली सीट से संसद पहुंचे। इस बार पंजाब के फरीदकोट से चुनाव मैदान में हैं।

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