हाईकोर्ट ने मदरसों को भी शिक्षा का अधिकार कानून के दायरे में लाने की मांग वाली याचिका पर केंद्र से मांगा जवाब

दिल्ली हाईकोर्ट ने मदरसों को शिक्षा अधिकार क्षेत्र में लाने वाली याचिका पर केंद्र से जवाब तलब किया है। अनुच्छेद 30 में केवल अल्पसंख्यकों को नहीं बल्कि बहुसंख्यकों को भी अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और प्रबंधन का अधिकार मिला हुआ है।

By Vineet TripathiEdited By: Publish:Tue, 22 Feb 2022 11:39 AM (IST) Updated:Tue, 22 Feb 2022 11:39 AM (IST)
हाईकोर्ट ने मदरसों को भी शिक्षा का अधिकार कानून के दायरे में लाने की मांग वाली याचिका पर केंद्र से मांगा जवाब
शैक्षणिक संस्थानों को अधिनियम के दायरे में लाने की मांग की गई है।

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। मदरसों को शिक्षा अधिकार कानून के दायरे में लाने की मांग वाली जनहित याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगा है। इस मामले में अगली सुनवाई के लिए 30 मार्च को होगी। दरअसल, दिल्ली हाईकोर्ट ने शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के प्रावधानों को चुनौती देने वाली एक जनहित याचिका पर केंद्र और दिल्ली सरकार को नोटिस जारी किया है। जिसमें मदरसों, वैदिक पाठशालाओं और धार्मिक शिक्षा प्रदान करने वाले शैक्षणिक संस्थानों को अधिनियम के दायरे में लाने की मांग की गई है। 

संविधान के अनुच्छेद 29 में सिर्फ अल्पसंख्यकों को ही नहीं बल्कि देश के सभी नागरिकों को अपनी संस्कृति, भाषा और स्कि्रप्ट को संरक्षित करने का अधिकार है। इसी तरह अनुच्छेद 30 में केवल अल्पसंख्यकों को नहीं बल्कि बहुसंख्यकों को भी अपनी पसंद के शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और प्रबंधन का अधिकार मिला हुआ है। इसलिए केंद्र सरकार का दायित्व है कि वह गुरुकुल, वैदिक स्कूल, मदरसा और मिशनरी स्कूल के लिए अनुच्छेद 14, 15, 16, 19, 29 और 30 की भावना के अनुकूल समग्र और समान शिक्षा संहिता बनाए। 

Delhi High Court issues notice to Centre and Delhi Govt on a PIL challenging the provisions of the Right to Education Act 2009 and seeking direction to bring Madrasas, Vedic Pathshalas and educational institutions imparting religious knowledge within the ambit of the Act.

— ANI (@ANI) February 22, 2022

दरअसल जनहित याचिका में कहा गया है कि शिक्षा के अधिकार अधिनियम 2009 की धाराएं एक (4) और एक (5) व्याख्या करने में सबसे बड़ी बाधा हैं। अपनी मातृभाषा में समान पाठ्यक्रम का नहीं होना असमानता को बढ़ावा देता है। इसके साथ ही समान शिक्षा प्रणाली को लागू करने की मांग की गई है।

याचिका में कहा गया है कि ‘समान शिक्षा प्रणाली लागू करना संघ का कर्तव्य है, लेकिन वह इस अनिवार्य दायित्व को पूरा करने में विफल रहा है, उसने 2005 के पहले से मौजूद राष्ट्रीय पाठ्यचर्या ढांचे को अपनाया हुआ है। फिलहाल इस जनहित याचिका पर दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार से जवाब मांगा है। मामले की अगली सुनवाई के लिए 30 मार्च 2022 की तिथि निर्धारित की है।

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