कैंसर की चपेट में सबसे ज्यादा आ रहे हैं दिल्ली के बच्चे

दिल्ली के एम्स के डाक्टरों ने एक अध्यन की एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें चौंकाने वाला खुलासा किया है कि दिल्ली में कैंसर की बीमारी से पीड़ित कुल मरीजों में करीब चार प्रतिशत (3.94 प्रतिशत) बच्चे होते हैं।

By Jagran NewsEdited By: Publish:Sat, 04 Feb 2023 09:03 AM (IST) Updated:Sat, 04 Feb 2023 09:03 AM (IST)
कैंसर की चपेट में सबसे ज्यादा आ रहे हैं दिल्ली के बच्चे
कैंसर की चपेट में सबसे ज्यादा आ रहे हैं दिल्ली के बच्चे। फोटो सोर्स- जागरण फोटो।

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। दिल्ली में बच्चे देश के अन्य हिस्सों के मुकाबले कैंसर से अधिक पीड़ित हो रहे हैं। एम्स द्वारा संचालित दिल्ली कैंसर रजिस्ट्री की रिपोर्ट में यह बात सामने आई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली में कैंसर की बीमारी से पीड़ित कुल मरीजों में करीब चार प्रतिशत (3.94 प्रतिशत) बच्चे होते हैं। यह देश के अन्य कैंसर रजिस्ट्री में पंजीकृत कैंसर पीड़ित बच्चों के मुकाबले ज्यादा है। हालांकि, दिल्ली कैंसर रजिस्ट्री की यह रिपोर्ट वर्ष 2015 में पंजीकृत मरीजों के आंकड़ों पर आधारित है।

एम्स के डाक्टरों ने अध्ययन कर इसकी रिपोर्ट अब जारी की है। इसमें कहा गया है कि दिल्ली में दस लाख की आबादी में 14 वर्ष तक के 151 लड़के और 121.9 लड़कियां कैंसर से पीड़ित होती हैं। इसका स्पष्ट कारण नहीं बताया गया है। बच्चों में ब्लड कैंसर, लिम्फोमा, न्यूरोब्लास्टोमा व रेटिनोब्लास्टोमा, किडनी इत्यादि के कैंसर देखे जाते हैं। एम्स डाक्टरों के अनुसार कैंसर से पीड़ित बच्चों में इलाज के लिए परिणाम बेहतर होते हैं। लगभग 80 प्रतिशत मरीज ठीक हो जाते हैं।

23 प्रतिशत बढ़ेगी कैंसर की बीमारी

दिल्ली कैंसर रजिस्ट्री की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि राष्ट्रीय राजधानी में 74 वर्ष की उम्र तक हर छह में एक पुरुष और सात में से एक महिला को कैंसर होता है। 59.1 प्रतिशत मरीजों को 35 से 65 वर्ष की उम्र में कैंसर की बीमारी होती है। इस उम्र में महिलाएं कैंसर से अधिक पीड़ित होती हैं। इसका कारण स्तन कैंसर अधिक होना है। 65 वर्ष की उम्र के बाद पुरुषों को कैंसर अधिक होता है। इस उम्र में कैंसर से पीड़ित 31 प्रतिशत पुरुष व 25 प्रतिशत महिलाए हैं।

सर्जरी के अगले दिन भी मरीजों को छुट्टी

डा. एसवीएस देव ने बताया कि अत्याधुनिक तकनीक से कैंसर से पीड़ित कई मरीजों को सर्जरी के अगले दिन अस्पताल से छुट्टी देना संभव हो पा रहा है। इससे सर्जरी में वेटिंग कम हुई है। पहले स्तन कैंसर की सर्जरी के लिए तीन माह तक वेटिंग थी। एक अतिरिक्त ओटी शुरू कर वेटिंग को दूर किया गया। स्तन कैंसर की सर्जरी की वेटिंग सिर्फ एक सप्ताह है। लेप्रोस्कोपीक सर्जरी बढ़ने से कई अन्य कैंसर के मरीजों को भी अस्पताल से जल्दी छुट्टी मिल पा रही है।

ओरल कैंसर की स्क्रीनिंग के लिए बनाया उपकरण

कैंसर की बीमारी देश भर में बढ़ रही है। समस्या यह है कि शुरूआती स्टेज में बीमारी पकड़ में नहीं आने से ज्यादातर मरीज इलाज के लिए एडवांस स्टेज में अस्पताल पहुंचते हैं। इस कारण इलाज का परिणाम बेहतर नहीं आता है। इसे देखते हुए आइआइटी दिल्ली के साथ मिलकर एम्स ऐसी तकनीक पर शोध कर रहा है जिससे कैंसर की स्क्रीनिंग आसान हो सके। एम्स ने आइआइटी दिल्ली के साथ फ्लोरोसेंस जांच की तकनीक के लिए सस्ता उपकरण तैयार किया है। इससे ओरल कैंसर की स्क्रीनिंग और जांच की जा सकेगी। यह जानकारी एम्स के कैंसर सेंटर की प्रमुख डा. सुषमा भटनागर व सर्जिकल आंकोलाजी विभाग के विभागाध्यक्ष डा. एसवीएस देव ने दी। कैंसर के इलाज की ज्यादातर दवाएं व उपकरण विदेश में तैयार होते हैं।

इस कारण यहां कैंसर का इलाज भी महंगा है। इसके मद्देनजर एम्स व आइआइटी के विशेषज्ञ ऐसी तकनीक विकसित करने के लिए शोध कर रहे हैं जिससे जांच व इलाज सस्ता होने के साथ स्क्रीनिंग कर बीमारी की पहचान हो सके। तैयार किया जा रहा हैंड हेल्ड उपकरण: डा. देव ने कहा कि एम्स के कैंसर सेंटर, टेंडल सेंटर व आइआइटी दिल्ली के बायोटेक्नोलाजी विभाग ने एक हैंड हेल्ड उपकरण तैयार किया है। इसके जरिये फ्लोरोसेंस जांच की जा सकती है। विकसित मशीन से अल्ट्रा वायलेट किरण मुंह में भेजकर जांच की जाती है।

मुंह में ट्यूमर नहीं होने के बावजूद अल्ट्रा वायलेट किरण से यह पहले पता चल जाता है कि कैंसर होने वाला है। पहले फेज में कैंसर के 40 मरीजों पर इसका ट्रायल किया गया। यह देखा गया कि यह उपकरण 80 से 90 प्रतिशत मरीजों में कैंसर की पहचान करने में सक्षम है। इसके बाद अभी दूसरे चरण का ट्रायल चल रहा है। इसके तहत कैंसर के मरीजों के अलावा ऐसे लोगों पर भी क्लीनिकल परीक्षण किया जा रहा है जिन्हें ओरल कैंसर होने की संभावना हो सकती है।

कैंसर से पीड़ित दिल्ली के कुल मरीजों में 3.94 प्रतिशत हैं बच्चे

ब्लड व थूक के सैंपल से भी हो सकेगी कैंसर की स्क्रीनिंग डा. देव ने कहा कि स्तन कैंसर की स्क्रीनिंग के लिए मैमोग्राफी होती है। अन्य कैंसर की जांच के लिए कोलोनोस्कोपी व सीटी स्कैन जांच होती है। भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश में इन तकनीकों की मदद से स्क्रीनिंग कर पाना संभव नहीं है। इसलिए ब्लड, थूक के सैंपल की जांच कर स्क्रीनिंग की तकनीक विकसित करने के लिए भी एम्स व आइआइटी मिलकर शोध कर रहे हैं। थूक के सैंपल से ओरल कैंसर की स्क्रीनिंग की तकनीक पर भी शोध चल रहा है। कैंसर होने पर जेनेटिक बदलाव होता है।

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